किसी और के गुस्से का शिकार होते हैं बच्चे

रमजान अली 
दफ्तर, बिज़नेस, पड़ोसी, मुकदमा, गरीबी, घरेलू किचकिच, बेरोजगारी, असफलता आदि का गुस्सा लोगो को अक्सर बच्चों पर उतारते हुए देखा गया है। आखिर क्यों? क्योकि बच्चे उपलब्ध रहते हैं, विरोध नही कर सकते। ऐसा करने वाले लोग गलत करते हैं। यदि यह प्रक्रिया बारम्बार हो तो बच्चे जिद्दी हो जाते हैं, बात नही मानते है, बच्चो के मन मे डर घर जाता है। उनका शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है। ऐसे बच्चो को बाद मे चाह कर भी उनके पैरेन्ट्स उन्हे नही सुधार सकते है। बच्चे कच्ची माटी के समान होते हैं। उन्हे प्यार से, प्यारे से खिलौने की तरह ढाला जा सकता है। जिस तरह कुम्हार कच्ची मिट्टी से सुन्दर खिलौना बना लेता है।
14 वर्ष से कम आयु के बच्चो से घरेलू कार्य भी कराना “बाल श्रम” मे आता है तथा उन पर हिंसा “बाल हिंसा” की श्रेणी मे आता है। इस पर सरकार ने कड़े कानून बनाये है। जेल तक का प्राविधान किया गया है। कुछ लोग अपने बच्चो को आवेश मे आकर अत्यधिक मार पीट देते हैं। दंड दे देते है। ऐसे लोग मानसिक विकृति से पीड़ित होते है। डिप्रेशन के शिकार होते है। उन्हे खुद का मनो चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए। बच्चे देश का भविष्य होते है। बुढ़ापे का सहारा होते है। घर के चिराग होते है। उन्हे सम्भाल कर रखना हमारा दायित्व एवं कर्तव्य है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *