अम्बेडकरनगर – तो हो सकता है टाण्डा में मतों का ध्रुवीकरण
टाण्डा में इस बार फिर होगी कमल खिलाने की चुनौती
बसपा ने फिर लगाया कुर्मी पर दांव
सपा से अजीमुलहक पहलवान की है दावेदारी
मनीष मिश्र
अम्बेडकरनगर। जिले के सबसे संवेदनशील विधानसभा क्षेत्र के रूप में माने जाने वाले टाण्डा विधानसभा क्षेत्र में इस बार का विधानसभा चुनाव काफी रोचक होने की संभावना बनती जा रही है। समाजवादी पार्टी के मुलायम गुट ने यहां के सिटिंग विधायक व मंत्री अहमद हसन के बेहद करीबी अजीमुलहक पहलवान का टिकट काटकर विवादित नगर पालिका अध्यक्ष हाजी इफ्तिखार अंसारी पर दांव लगाया था लेकिन अब असली समाजवादी पार्टी के रूप में अखिलेश यादव को मान्यता मिल जाने के कारण अंसारी के प्रत्याशी बने रहने पर सवाल उठ खड़ा हुआ है। इसके पूर्व अखिलेश गुट ने अजीमुलहक पहलवान को ही अपना प्रत्याशी घोषित किया था।
आजादी के बाद से टाण्डा विधानसभा क्षेत्र की स्थिति पर नजर डाले तो इस क्षेत्र के मतदाताओं ने कई बार पुराने लोगों को पर ही विश्वास जताया है। पहले कांग्रेस फिर जनता दल व उसके बाद बहुजन समाज पार्टी पर इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने अपना विश्वास जताया। 2012 में चली समाजवादी पार्टी की आंधी में बहुजन समाज पार्टी का यह किला भी भरभरा कर ढह गया। उस दौरान इस क्षेत्र की जनता ने समाजवादी पार्टी पर विश्वास जताया। सपा की सरकार बनने के कुछ ही महीने के बाद टाण्डा विधानसभा क्षेत्र साम्प्रदायिकता की आग में जल उठा। परिणाम हुआ कि जिला प्रशासन को यहां पर कफ्र्यू तक लगाना पड़ गया। मौजूदा समय मंे टाण्डा विधानसभा क्षेत्र का पूरा माहौल हिन्दू, मुस्लिम में बंट चुका है। इस विधानसभा क्षेत्र से अब तक चुने गये जन प्रतिनिधियो पर नजर डाले तो 1952 में रामसुमेर ने सबसे पहले इस क्षेत्र की रहनुमाई की। 1962 से लेकर 1974 तक टाण्डा विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस का बर्चस्व रहा। जयराम वर्मा, रामचन्दर आजाद व निसार अहमद अंसारी ने समय-समय पर इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1980 में गोपी नाथ वर्मा ने यहां से जीत दर्ज की लेकिन 1985 में जयराम वर्मा ने अपनी स्वच्छ छवि के चलते फिर से जीत दर्ज कर ली। इसके बाद शुरू हुआ बसपा का युग। 1991 में इस विधानसभा क्षेत्र से लालजी वर्मा ने जनता दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर डा0 मसूद ने 1993 में जीत का जो सिलसिला शुरू किया वह लगातार 2007 तक जारी रहा। 1996 से 2007 तक बसपा प्रत्याशी के रूप में लालजी वर्मा ने लगातार जीत दर्ज कर हैट्रिक बनायी। विधानसभा क्षेत्रों के नये परिसीमन के बाद लालजी वर्मा ने टाण्डा को छोड़ कटेहरी विधानसभा क्षेत्र की तरफ रूख कर लिया जिसके कारण बसपा ने यहां पर विशाल वर्मा पर दांव लगाया। हालांकि 2012 में सपा की आंधी के सामने विशाल वर्मा टिक नहीं सके व उन्हे अजीमुलहक पहलवान के सामने पराजय का सामना करना पड़ा। बहुजन समाज पार्टी में एक बार फिर से यहां पर कुर्मी प्रत्याशी पर ही दांव लगाया है जबकि भारतीय जनता पार्टी से अभी तक कोई चेहरा सामने नहीं आया है। बसपा ने मनोज वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है। यदि भारतीय जनता पार्टी से संजू देवी को टिकट हासिल हुआ तो टाण्डा विधानसभा का चुनाव निश्चित रूप से हिन्दू बना मुस्लिम के रूप में तब्दील होना तय है। ऐसी परिस्थिति में बसपा का यह गढ एक बार फिर से हिल सकता है। विधानसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या जहां लगभग एक लाख से अधिक है वहीं हिन्दू मतदाताओं की संख्या दो लाख के ऊपर है। इनमें कुर्मी मतदाताओं की संख्या लगभग 32 हजार व दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 70 हजार है। बहुजन समाज पार्टी इन्ही दो मतो पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए है। साथ ही उसकी नजर सपा की जंग के बाद अल्पसंख्यक मतदाताओं पर भी है। देखने वाली बात यह होगी कि टाण्डा में अल्पसंख्यक मतदाता एक बार फिर से अजीमुलहक पहलवान के साथ जाता है अथवा वह भाजपा के विरूद्ध विकल्प के रूप में किसी और दल की तरफ झुकता है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि हिन्दू मतो को एक जुट रख पाना भारतीय जनता पार्टी के लिए कम चुनौती पूर्ण नहीं होगा। आजादी के बाद से भारतीय जनता पार्टी का कमल इस विधानसभा क्षेत्र में आज तक नहीं खिल सका है। देखना यह होगा कि क्या टाण्डा एक बार कमल खिलाने की ओर अग्रसर होगा अथवा वह पुराने पद चिन्हो पर चलते हुए फिर पुनरावृत्ति करेगा।