इलाहाबाद म्यूजियम की शोभा होगी शहीद चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल

कनिष्क गुप्ता

इलाहाबाद । जिस पिस्टल से अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने पहले अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए और फिर अंग्रेजों के हाथ न आने के लिए खुद को गोली मार ली थी, वह अब इलाहाबाद म्यूजियम में मुख्य आकर्षण होगी। उसे बुलेटप्रूफ ग्लास के बॉक्स में बंदकर सेंट्रल हॉल के मध्य में रखा जाएगा, जिसमें विभिन्न तरह की लाइट भी लगाई जाएगी। ऐसे में संग्रहालय में प्रवेश करने वाले शख्स का ध्यान सबसे पहले इस पिस्टल की तरफ ही जाएगा। बॉक्स भी जल्द ही बनवाया जाएगा।

देश की आजादी के 70 बरस बाद भी क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह का क्रेज युवाओं में सबसे ज्यादा है। यह क्रेज इतना है कि इलाहाबाद आने वाला हर शख्स उनसे जुड़ी हुई चीजें देखना चाहता है। इसमें खास है आजाद की ऐतिहासिक पिस्टल। इस पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इसे संग्रहालय का मुख्य आकर्षण बनाने के निर्देश दिए हैं।

पिस्टल का इतिहास

27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क (आजाद पार्क) में चंद्रशेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया गया था। उस समय आजाद ने इसी पिस्टल से फायरिंग की और कई पुलिस अफसरों को घायल कर दिया था। बाद में उसी पिस्टल से खुद को गोली मार ली तो तत्कालीन अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जॉन नॉट बावर ने उस पिस्टल को जब्त कर लिया था। आजादी के बाद यह पिस्टल भारत सरकार को सौंप दी गई थी। तब से यह इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित है।

पिस्टल की खासियत

आजाद की यह पिस्टल अमेरिकन फायर आर्म्स बनाने वाली कोल्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी ने 1903 में बनाई थी। यह कंपनी अब कोल्ट पेटेंट फायर आर्म्स मैन्यूफैक्चरिंग के नाम से जानी जाती है। प्वाइंट 32 एसीपी (ऑटो कोल्ट पिस्टल) की यह पिस्टल हैमरलेस सेमी आटोमेटिक है। इसमें आठ बुलेट की मैगजीन है। सिंगल एक्शन ब्लोबैक सिस्टम वाली इस पिस्टल की रेंज 25 से 30 यार्ड तक है।

धरोहर के कारण परीक्षण नहीं

यह पिस्टल देश के लिए धरोहर है। पूछने पर म्यूजियम के निदेशक डा. सुनील गुप्त कहते हैं कि इसे चलाने की अनुमति नहीं है। इसे केवल देखा जा सकता है। इलाहाबाद म्यूजियम के निदेशक डॉ. सुनील गुप्त बताते हैं कि पिस्टल को बुलेट प्रूफ सुरक्षा में रखे जाने का काम कुंभ से पहले हो जाएगा, ताकि कुंभ में आने वाले देशी-विदेशी मेहमान इसका दीदार कर सकें।

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