शारदा का जल स्तर बढने से गावों में घुसा बाढ का पानी, लोग पलायन को हो रहे मजबूर
पानी में घुसकर विद्यालय जाने को मजबूर बच्चे
फारुख हुसैन
पलिया कलां खीरी। पहाड़ो पर हो रही तेज बारिश के चलते शारदा नदी का जलस्तर बढ़ गया है जिसने लोगों की धड़कनों को बढ़ा दिया है और शारदा नदी का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर आ गया है ।फिलहाल हालात अभी काबू में नजर आ रहें हैं परंतु फिर भी बाढ़ का पानी नदी के समीप के गावों और रास्तों में घुस गया है जिससे जन जीवन पूरी तरह अस्त वयस्त हो गया है और लोग अपने अपने सामान सहित ऊंचे स्थानों पर जाने को मजबूर हो गये हैं ।
उल्लेखनीय है कि लखीमपुर जिले के तराई इलाको में प्रत्येक वर्ष आमजन को बाढ की विनाश लीला झेलने पड़ती है और एक बार फिर पहाड़ों पर लगातार होने वाली भारी बारिश के चलते शारदा नदी ने फिर एक बार खतरे के निशान को क्रॉस कर दिया है। खतरे के निशान से शारदा नदी ऊपर बहने लगी हैं। शारदा नदी का जलस्तर जल आयोग के खतरे के निशान को पार करता हुआ ऊपर पहुंच गया है। हालांकि अभी गांवों में ज्यादा तेज बाढ़ आने की कोई संभावनाएं तो नहीं हैं लेकिन नदी ने तेजी से कटान शुरू कर दिया है नदी हर बार अपना रूख लगातार बदल रही है और एक बार फिर अपना रूख बदल दिया है श्रीनगर गांव के पास नदी तेजी से कटान कर रही है।
नदी का रफ्तार इतनी तेज है कि श्रीनगर गांव के ग्रामीणों की भी दिलों की धड़कनें तेज हो गईं हैं। पहाड़ों पर होने वाली लगातार तेज बारिश से स्थिति काफी ज्यादा खराब होते नजर आ रहें हैं ,श्रीनगर गांव मे बाढ़ का पानी घुस गया है शारदा नदी का कटान भी लगातार जारी है। पलिया-भीरा रोड पर अतरिया रेलवे क्रासिंग के पास तक बाढ़ का पानी भर गया है। उधर भीरा इलाके के इमलिया फार्म जाने वाले रास्ते पर बाढ़ का पानी भरने कि कगार पर आ गया है और ग्रामीण बमुश्किल जान मुसीबत में डालकर नाव के द्वारा आवाजाही कर रहे हैं। नदी के निकट के इलाकों में भी कई गांवों में खेती की जमीनों को नदी ने तेजी से काटना शुरू कर दिया है। जिससे ग्रामीणों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं, इसके साथ ही रास्तों में पानी भरा होने के कारण बच्चों को विद्यालय जाने के लिये खतरा उठाकर पानी में से ही होकर विद्यालय जाने पर मजबूर हो रहें हैं ।
नदी की कटान से ग्रामीण हो रहे परेशान=
आप को बता दें कि हर वर्ष होने वाले नदी के कटान से लोग काफी परेशान हो चुकें है जिसके चलते लोग कटान से परेशान होकर पलायन करने को मजबूर हो रहें है हर वर्ष न जाने कितने एकड़ जमीने नदी में समा जातीं हैं, लोग भुखमरी के कगार पर आ जाते हैं और वह लोग खाना बदोश की जिंदगी जीने पर मजबूर हो रहें हैं ।
आखिर कब तक सही जायेगी बाढ की वीनाश लीला=
हर ग्रामीण यह सोचने पर मजबूर हो रहा है कि आखिर कब तक हम इस बाढ की विनाश लीला को झेलते रहेगें आखिर कब ऐसा दिन आयेगा जो हम इस मुश्किलों भरे जीवन से निजात पायेगें । यह उन ग्रामीणों की सोच है जो हर वर्ष बाढ़ की विनास लीला झेल रहें हैं ।ग्रामीण शासन प्रशासन के साथ खुद भी अपनी तरफ से कटान रोकने का काफी प्रयास करते हैं लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाते।परंतु देखा जाये तो इसमें सरकारी अमला गर पूरी निष्ठा के साथ अपना काम करें तो शायद कामयाबी मिल सकती थी।
हर बार होती है बाढ़ की रोकथाम की केवल खानापूर्ति
हर बार सिंचाई खण्ड लाखों रुपया बेवजह पानी में बहा देती है परंतु काम कितना होता है यह तो सभी जानते हैं ।एक प्रश्न यह भी उठता है कि हर बार जब वर्षा श्रतु का समय आता है तब ही क्यों शासन प्रशासन बाढ की रोकथाम के लिये आगे आता है इससे पहले क्यों नहीं ? क्या बाढ़ की विनाश लीला का इंतजार किया जाता है ।फिलहाल जो भी रहता हो पर यह सब होना उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाता है ।