बाघराय के 12 गांवों में होती है राजा तक्षक व दैत्यराज की पूजा

कनिष्क गुप्ता

इलाहाबाद : यूं तो यह देश अपनी कई अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है। वहीं पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ की धरती भी अपनी कई समृद्ध पौराणिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। उन्हीं में से एक तक्षक मेले की परंपरा की भी एक अलग कहानी है। जिले की कुंडा तहसील से तीस किलोमीटर दूर स्थित बारौं गांव में बरसों से लगते आ रहे तक्षक मेले का आकर्षण अभी भी बरकरार है। पुरानी मान्यता के अनुसार इस गांव में नागदेव यानि तक्षक व दैत्यराज की पूजा करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है।

स्थानीय लोग इस मेले की शुरुआत से ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ करते हैं। लोगों ने इस परंपरा के बहाने लोक संस्कार को ¨जदा रखा है। वहीं तक्षक धाम, दैत्यराज धाम व सरोवर आस्था की डोर को मजबूत करता है। यह धाम कुंडा तहसील के विकास खंड बिहार के बारौ गांव में स्थित है। इस गांव के आसपास के दर्जन भर गांवों की पहचान तक्षक मेले से जुड़ी है। इसमे रोर गांव भी शामिल है। तक्षक पूजा को लेकर चली आ रही किवदंती के अनुसार रोर गांव में राजा तक्षक किसान के रूप में आए थे। यहां पर उन्होंने एक किसान से कहा कि इस गांव में मेरा मंदिर बनवाकर पूजा करो तो खेती में पैदावार भी अच्छी होगी व सर्पदंश का भी भय नहीं रहेगा। साथ ही सर्पदंश से किसी की मृत्यु भी नहीं होगी। उसके बाद तक्षक ने एक राजा को अपनी मूर्ति व सरोवर बनवाने का सपना दिखाया।

लोग बताते हैं कि इसके बाद से यहां मंदिर बनवाकर पूजा की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का कहना है कि बारौ गांव मे एक राजा आए थे, जिन्होंने यहां रात्रि विश्राम किया था। रात्रि में स्वप्न आया और उस स्वप्न से प्रभावित होकर उस राजा ने तक्षक की देवखरी व कूप का निर्माण करवाया। यहां पर कोई अंधविश्वास नहीं है, बात केवल आस्था की है। यहां राजा तक्षक व दैत्यराज की मूर्ति लगी है। इसमें प्रतिदिन गांव व आसपास के लोग आकर पूजन कार्य करते हैं। तक्षक धाम क्षेत्रीय लोगों के आस्था व श्रद्धा का केंद्र बन गया है। आसपास गांव के लोग सबसे पहले गणेश जी की ही तरह राजा तक्षक की भी पूजा करते हैं। यही नहीं नवदंपत्ति भी पहले तक्षक धाम पर शीश झुकाने के बाद ही अपनी नई गृहस्थी बसाते हैं। बरात रवाना होने के पूर्व यहां दूल्हे को लाया जाता है।

मत्था टेकने के बाद ही बरात घर से निकलती है। गृहप्रवेश, कथा, मुंडन संस्कार व अन्य पुनीत कार्य भी तक्षक पूजा के बाद ही शुरू होती है। लोगों का मानना है कि इस गांव में सर्पदंश से कभी मृत्यु नहीं होती है। बारौ व रोर के लोगों का मानना है कि तक्षक के प्रभाव से कभी सर्प नहीं दिखाई पड़ते। कभी खेत व खलिहान में दिखाई भी पड़ गए तो वह काटते नहीं। सहसा विश्वास नहीं होता, मगर स्थानीय लोगों की आस्था इसे लेकर अटूट है।

बहुत मजबूत है तक्षक मेले की आस्था की डोर

तक्षक मेले से क्षेत्रीय लोगों की आस्था की डोर बहुत ही मजबूत है। क्षेत्रीय लोग राजा तक्षक की महिमा का गुणगान करना नहीं भूलते। प्रधान आशा यादव, समाजसेवी प्रबंधक छीरसागर तिवारी, समयलाल यादव, दुर्गेश और राजेश जैसे बहुत से ग्रामीण इस आस्था को लेकर भावुक हो उठते हैं। कहते हैं, उन्हें इतना विश्वास है कि राजा तक्षक की पूजा से उनकी रक्षा होती है और किसी भी शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं पहुंचती।

लकड़ी के सामानों के लिए प्रसिद्ध है मेला

बारौं का तक्षक मेला लकड़ी के प्रमुख सामानों के लिए प्रसिद्ध है। इस मेले में रायबरेली, कौशांबी, अमेठी, सुल्तानपुर, कानपुर के मशहूर लकड़ी के सामानों के विक्रेता आकर सामान बेचते हैं। मेले की खासियत है कि किसी व्यापारी का कोई सामान नहीं बचता। वह खाली हाथ ही अपने साधन से वापस जाता है। इसे भी आने वाले दुकानदार तक्षक की कृपा मानते हैं।

चतुर्थी को दिन मे चढ़ती है तक्षक को खीर

ऐसी मान्यता है कि तक्षक पूजन की तैयारी एक पखवारे पहले होती है। चतुर्थी के दिन पुजारी प्रमेश श्रीवास्तव द्वारा खीर बनाकर तक्षक को चढ़ाई जाती है। इसके बाद षष्ठी के दिन पूजा करने की अनुमति तक्षक महराज देते है।

तक्षक को प्रिय चांदनी

राजा तक्षक की पूजा भाद्रपद की षष्ठी को होता है, लेकिन पुरूषोत्तम मास लगने के बावजूद भी अपने समय पर ही षष्ठी को तक्षक की पूजा होगी। तक्षक को खुश करने के लिए महिलाएं अपने हाथ से खुद तक्षक को चांदनी (विशेष चादर)श्रद्धा से सिलकर स्वयं चढाती हैं। पूजा मे अक्षत, फल, बेलपत्र व झालर से तक्षक को खुश करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है।

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