गज्जा पर इस्राईली हमले के जवाब में फिलिस्तीनीयो ने बरसाए मिसाइल जायोनी प्रधानमंत्री की आपात बैठक खुद को डूबता हुआ महसूस कर रहा है इस्राईल

अदिल अहमद

फ़िलिस्तीन के हमास आंदोलन के अलक़स्साम ब्रिगेड ने घोषणा की कि उसने बुधवार की शाम हमास का प्रतिनिधिमंडल मिस्र पहुंच जाने के बाद यहूदी बस्तियों पर 70 मिसाइल बरसाए। सूत्रों का कहना है कि इन मिसाइलों में से 11 को इस्राईल की मिसाइल ढाल व्यवस्था आयरन डोम ने बीच में ही ध्वस्त कर दिया लेकिन शेष सभी मिसाइल अपने निशाने पर लगे।

जिसके बाद इस्राईल में हड़कम्प मच गया और ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने रक्षा मंत्री तथा सैन्य अधिकारियों के साथ अपात बैठक की।

फ़िलिस्तीनियों ने यह हमला तब किया जब इस्राईल ने फ़िलिस्तीनी ठिकानों को निशाना बनाया और इसमें एक फ़िलिस्तीनी शहीद हो गया और कई घायल हो गए। इससे पहले ख़बरें आ रही थीं कि इस्राईल और हमास के बीच दीर्घकालिक युद्ध विराम पर सहमति बन गई है। मगर बार बार हो रहे इस्राईली हमले पर आपत्ति जताने के लिए हमास का प्रतिनिधिमंडल मिस्र गया क्योंकि संघर्ष विराम में मिस्र ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई है। जैसे ही यह प्रतिनिधिमंडल मिस्र की सीमा में पहुंचा। पहले से तैयारी कर चुके हमास संगठन ने इस्राईली इलाक़ों पर मिसाइलों की बौछार कर दी।

इस्राईल की कोशिश यह थी कि संघर्ष विराम हो जाए लेकिन वह अलग अलग बहानों से हमास के ठिकानों पर हमले भी करता रहे। अर्थात फ़िलिस्तीनी संगठन एकतरफ़ा तौर पर संघर्ष विराम का पालन करें जबकि इस्राईल को अपनी मर्ज़ी से हमले करने की छूट रहे और वह फ़िलिस्तीनियों कौ धौंस देता रहे कि यदि उन्होंने संघर्ष विराम तोड़ा तो ग़ज़्ज़ा पर बड़ा हमला कर दिया जाएगा।

फ़िलिस्तीनियों ने इस बारीकी को अच्छी तरह समझते हुए ज़ोरदार मिसाइल हमला करके कई संदेश दिए हैं। पहला संदेश तो यही है कि यदि संघर्ष विराम हुआ तो इस्राईल को किसी भी बहाने से ग़ज़्ज़ा के किसी भी इलाक़े पर हमले की अनुमति नहीं दी जाएगी। दूसरा संदेश यह है कि भले ही इस्राईल ने कई साल से ग़ज़्ज़ा की घेराबंदी कर रखी हो और इस पूरे इलाक़े को खुली जेल बनाकर कर दिया हो लेकिन वह फ़िलिस्तीनियों की मिसाइल शक्ति में लगातार विस्तार की प्रक्रिया को न तो रोक पाया है और न ही भविष्य में रोक पाएगा।

इस्राईल एसा शासन है जिसकी स्थापना फ़िलिस्तीन की धरती पर ग़ैर क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा करके और वहां बसने वाले फ़िलिस्तीनियों को ज़बरदस्ती बेदख़ल करके हुई है। यह फ़िलिस्तीनी आज भी दुनिया के अनेक देशों में फैले हुए हैं और स्वदेश वापसी के अधिकार से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।

इस्राईल ने इसके साथ ही इलाक़े के देशों पर अपनी ताक़त की धौंस जमाने की कोशिश शुरू से की। इस तरह देखा जाए तो इस्राईल का अस्तित्व ही हिंसा, अतिग्रहण, धौंस और धमकियों पर टिका हुआ है लेकिन इस बीच धीरे धीरे जो इलाक़ाई परिवर्तन हुए हैं उनके नतीजे में शक्ति का संतुलन और क्षेत्रीय समीकरण भी बहुत तेज़ी से बदलते गए हैं। आज स्थिति यह है कि इस्राईल अर्थत अवैध रूप से अधिकृत फ़िलिस्तीन की कोई भी सीमा सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि मिस्र और जार्डन की सीमा भी इस्राईल के लिए सुरक्षित नहीं है हालांकि वहां की सरकारों से इस्राईल के संबंध हैं और इन देशों में इस्राईल ने अपने दूतावास भी खोल रखे हैं। क्योंकि सरकारों से तो इस्राईल ने सांठ गांठ कर ली है मगर जनता के बीच इस्राईल के प्रति घोर निंदा पायी जाती है और उसके अतिग्रहणकारी अस्तित्व को लोग स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।

क्षेत्रीय देशों से इस्राईल के संबंध पहले भी ख़राब रहे हैं लेकिन अब यह बड़ा बदलाव हुआ है कि सीरिया, लेबनान और फ़िलिस्तीन में उन मोर्चों की ताक़त में लगातार वृद्धि हुई है जो इस्राईली क़ब्ज़ा ख़त्म करवाने के लिए दृढ़ संकल्प रखते हैं और इस लक्ष्य के लिए दीर्घकालिक और लघुकालिक योजनाओं पर काम कर रहे हैं।

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