1942 में अंग्रेजों से सीधे लोहा लेने वाले चार वीर सपूत चरौवां गाँव के थे, महज 72 घंटे में हुए शहीद
उमेश गुप्ता
बलिया: बिल्थरा रोड आजादी के जंग में सन 1942 को बागी बलिया के क्रांतिकारी तेवर व हौसलों के समक्ष अंग्रेजों के तो होश उड़े हुए थे, उन्हीं दिनों बिल्थरारोड तहसील अंतर्गत चरौवां गांव के वीर सपूतों ने भी सिर पर कफन बांध अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। अंग्रेजों से सीधा लोहा लेते हुए चरौवां गांव के चार सपूत एक ही दिन शहीद हो गए। वहीं महज 72 घंटे में बिल्थरारोड की धरती ने कुल सात वीर जवानों की शहादत दी। जो अंग्रेजों से लोहा लेते हुए हंसते-हंसते शहीद हो गए। जिसके कारण इनकी अमर शहादत को सारा जमाना पूरी शिद्दत से याद करता है। जिनकी शहादत के बदौलत देश को आजादी मिली। चरौवां गांव के चार अमर शहीद सपूतों की शहादत को लेकर शनिवार को गांव के शहीद स्थल पर शहीद समारोह का आयोजन होगा। 24 अगस्त 1942 को चरौवां गांव में वीर सपूतों की अंग्रेजों से सीधे भिड़ंत हुई थी। इन्हीं दिनों अंग्रेजों ने पूरे गांव को घेरकर मशीनगन से निहत्थे ग्रामीणों पर कई राउंड घंटों गोलियां बरसाई थी और पूरे गांव को आग लगा दी थी।
अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता 1857 में निर्मित उभांव थाना तो बलिया जनपद समेत आसपास के इलाकों में फिरंगियों के क्रूरता का जबरदस्त गवाह था। चरौवां गांव में स्थित ऐतिहासिक खंडहरों में तब्दील इनकी स्मृतियां शहीदों के बलिदानी दास्तां को बयां करती है। गांव में शहीदी स्मारक व स्पूत समेत भव्य शहीदी द्वारा के समक्ष शहादत पर हर कोई गर्व करता है। उन दिनों अंग्रेजों के आर्थिक, यातायात व संचार स्त्रोत पर सीधा हमला करने के कारण यह क्षेत्र अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया था। इसके बाद तो अंग्रेजों ने इस गांव को ही मिटा देने का बुलेटप्रुफ प्लान बनाया और लगातार तीन दिन तक पूरे इलाके को घेर जमकर गोलियां बरसाई। बावजूद गांव के प्रत्येक बच्चा, बूढ़ा, जवान, पुरुष व महिला के एकजुटता, त्याग, बलिदान व साहस ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए। एक वीरांगना मकतूलिया मालीन समेत अमर शहीद चंद्रदीप ¨सह निवासी आरीपुर सरयां, अतवारु राजभर निवासी टंगुनिया, शिवशंकर ¨सह, मंगला ¨सह निवासी चरौंवा, खर बियार निवासी चरौवां में अंग्रेजों के गोलीबारी में शहीद हुए। जबकि सूर्यनारायण मिश्र निवासी मिश्रवलिया बिल्थरारोड उन्हीं दिनों बलिया शहर में सैनिकों की अंधाधुंध गोलीबारी में शहीद हो गए थे।
इसमें कई अंग्रेज सिपाही भी मारे गए और अंग्रेजी सेना के अगुवाई कर रहे कैप्टन समेत कई फिरंगी अधिकारियों गंभीर रुप से जख्मी हुए। बिल्थरारोड का स्टेशन व माल गोदाम फूंक डाला गया। बेल्थरारोड डम्बर बाबा मेले में स्टेशन पर धावा बोलने की योजना बनी और अंजाम तक पहुंचाया गया। इसके कारण हथियारों से लैस हो तीन दिन तक क्षेत्र में तांडव करने वाले अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौर के बीच 14 अगस्त 1942 को बिल्थरारोड में अंग्रेजों ने निहत्थे क्रांतिकारियों पर जमकर गोलियां बरसाईं। इससे चंद्रदीप ¨सह ग्राम आरीपुरसरयां व अतवारु राजभर ग्राम टंगुनिया शहीद हो गए ¨कतु अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी मिला। अगले ही दिन 15 अगस्त को कैप्टन मूर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने मशीनगन के साथ पूरे गांव को घेर लिया और घंटों जमकर गोलियां बरसाई। इससे श्रीखरवियार एवं शिवशंकर ¨सह शहीद हो गए। इस दौरान अंग्रेजों ने गांव में जमकर लूटपाट भी की।
गांव में पूरे दिन चले अंग्रेजों के आतंक से तंग मालीन फिरंगी सिपाहियों के नजर से बचकर कैप्टन मूर के सर पर मिट्टी की एक विशाल हांडी दे मारी। इससे लहूलुहान कैप्टन को देख अंग्रेज तिलमिला गए और मकतुलिया को गोलियों से छलनी कर दिया। ग्रामीणों के ¨हसक विरोध से बौखलाए अंग्रेज मकतुलिया का शव भी साथ लेते गए। इस दर्द से अभी लोग उबर भी नहीं पाए थे कि 17 अगस्त को फिर अंग्रेजी फौज ने गांव में हमला बोला। इस दौरान जमकर गोलियां चलाई, कई घरों को फूंक दिए और लूटपाट की। इस दौरान अग्रेंजों की गोली से मंगला ¨सह शहीद हो गए। आज भी यहां की लाल मिट्टी शहीद वीरों के बलिदानी गाथा को याद दिलाती है और लोगों में देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति का जज्बा जगाती है। देश की आजादी के बाद अप्रैल 1944 में उ.प्र. कांग्रेस कमेटी की तरफ से स्वयं फिरोज गांधी भी यहां अपने दल-बल के साथ पहुंचे और वीरों को श्रद्धांजलि दे यहां की बलिदानी मिट्टी को साथ लेते गए।