दालमंडी – पहलवानी के वर्चस्व से लेकर अपराध के वर्चस्व तक. भाग – 3

तारिक आज़मी.

वाराणसी. पहलवानी युग का सूरज अब डूब चूका था. क्षेत्र में दो पार्षदों की हत्या हो चुकी थी. अपराध अपना सर उठाना शुरू कर चूका था या फिर कह सकते है कि अपराध अपने बाजू तान क्षेत्रीय व्यवसाय कर रहे कारोबारियों को डराने लगा था. सच कहा जाये तो डर का कारोबार अपनी दुकाने सजा चूका था. अपराध का परचम इलाके में लहरा रहा था. हसीन के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद छोटे छोटे गुट और बन चुके थे.

इसी बीच सबसे अधिक आकर्षण हुआ सीडी का. इसको इंटरटेनमेन्ट माफिया युग भी कहा जा सकता है. सफ़ेदपोशो का संरक्षण प्राप्त कर सीडी माफिया फिल्म जगत की कमाई पर डाका डाल रहे थे. शिकायतों पर पुलिस कार्यवाही करती मगर दालमंडी की मशहूर तंग गलियाँ अपराधियों को भागने का सहारा बन जाती थी. इसी सीडी के व्यापार में एक नाम उभर कर सामने आया हैदर का. हैदर जल्द ही क्षेत्र में अपना नाम और दाम दोनों ही कमाने लगा था. हैदर के साथ कई अन्य भी जुड़े थे और फिल्म जगत की कमाई पर बड़ा धक्का लगने लगा था. यह वह दौर था कि फिल्म जगत नुक्सान के दौर से गुज़र रहा था. नकली सीडी बनाने वालो ने फिल्म जगत की कमाई को बड़ा झटका दिया था. इस झटके में दालमंडी का भी योगदान था.

पुलिस इन सीडी माफियाओं पर बड़ी कार्यवाही करने जाती उसके पहले ही बड़े कारोबारी सरक लेते और पकडे जाते छोटे दुकानदार. इस पुरे दौर में पुलिस की कार्यवाही की ज़द में कभी भी बड़े कारोबारी नहीं आ सके और छोटे तथा मझोले कारोबारियो को पकड़ कर पुलिस को अपना काम चलाना पड़ता था. स्थानीय प्रशासन भी भली भाति समझ रहा था कि उनके गिरफ्त में आये हुवे ये लोग छोटे और मझोले कारोबारी है असली व्हेल नहीं है. फिर भी पुलिस का प्रयास जारी रहा और हर शिकायत पर पुलिस दबिश ज़रूर डालती थी. मगर इन लोगो का नेटवर्क इतना तगड़ा था कि पुलिस के दालमंडी के अन्दर घुसते के साथ ही इनको भनक लग जाती थी और ये अपना सामान बटोर कर रफूचक्कर हो जाते थे.

इसी दौरान सीडी का युग अपने पतन के तरफ जाने लगा और चाइनीज़ मोबाइल ने अपनी बाज़ार में धाक जमानी शुरू कर दी. सीडी से कारोबार को बढाने वाला गुट अब चाइनीज़ मोबाइल पर ध्यान देने लगा और चाइनीज़ मोबाइल में सीडी छोड़ प्रवेश कर गये. इसी बीच हैदर गुट के बराबरी करने के लिए एक अन्य गुट उभर के सामने आया जिसका नाम मिर्ज़ा गुट था, मिर्ज़ा गुट सीडी युग में भी अपना पैर जमा रहा था और मोबाइल युग में भी. इसके बाद दोनों गुट एक दुसरे का विरोधी बनकर काम कर रहा था. कई बार तो दोनों आमने सामने भी हुवे मगर कोई बड़ी घटना नहीं हो पाई. इस दौरान दोनों ही गुट अपनी अपनी धाक दालमंडी पर जमाना चाहता था. इसी दौरान बड़े मिर्ज़ा का भाई छोटे मिर्ज़ा मारा गया और वही हैदर का भाई वकील भी मारा गया.

इन दोनों ही हत्याओ में पारिवारिक इतिहास के मद्देनज़र अरशद खान उर्फ़ विक्की खान का नाम आया और उसको नामज़द किया गया. हालाकि विक्की खान इन दोनों ही केस में अदालती प्रक्रिया से गुजरने के बाद बाइज्ज़त बरी भी हो गया. बाद में विक्की खान नगर निकाय चुनाव जीत कर राजनीत में पदार्पण कर लिया. साथ ही कंस्ट्रक्शन लाइन में खुद का भाग्य आजमाने के लिये खुद की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी खोल लिया जो काफी तरक्की करने लगी. इस दौरान मिर्ज़ा गुट और हैदर गुट की आपसी तनातनी कुछ कम होने लगी और ये तना तानी का रंग रूप बदलने लगा था. यही नहीं बल्कि विक्की खान को मिलती कामयाबी उसके दुश्मनों की लिस्ट लम्बी कर रही थी. इसमें प्रतिस्पर्धा कम और जलन अधिक थी.

दालमंडी की मार्किट अपने शबाब पर पहुच चुकी थी और बोसीदा मकानों के बीच कटरे निकलने शुरू हो चुके थे. इस क्षेत्र के कारोबार की स्थिति कुछ ऐसी हो चुकी थी कि कटरा निकलने के पहले ही सभी दुकाने बुक हो जाती थी और मकान मालिक का एक पैसा भी मकान में नहीं लगता था. ये वह दौर था जब दालमंडी में दुकानदारों से भी वसूली होती थी और दुकानदार चुपचाप पैसे देते थे. ये अवैध वसूली की शिकायत कभी पुलिस तक पहुची ही नहीं. हा यह ज़रूर था कि इसकी सूचनाये वसूली के बाद मुखबिरों के माध्यम से थाना स्थानीय को पता चलती थी. कई बार कई थानेदारो और उच्चाधिकारियों ने प्रयास किया कि आम जनता पुलिस के करीब आये मगर हुआ उल्टा ही, इस क्षेत्र में एक विचार ने घर कर लिया कि हम कारोबार कर रहे है कौन थाने चौकी के चक्कर में पड़े. इसका दुष्प्रभाव भी काफी हुआ और थाना पुलिस के करीब आम जनता तो नहीं आई बल्कि पुलिस थाने के नाम पर अपनी रोटिया चलाने वाले कई थाने चौकियो पर दिखाई देने लगे. हकीकत का आईना देखा जाये तो ये क्रम आज भी बदस्तूर जारी है और यही कारण है कि अपराध को कही न कही से बढ़ावा मिल जा रहा है.

समय अपना रंग रूप जहा बदल रहा था वही दालमंडी को भी बदलाव की ज़रूरत रही. इस बदलाव में सबसे बड़ा अगर कोई रोड़ा था तो विवादस्पद भवन रहे. जो भवन विवादस्पद नहीं रहे उनके निर्माण नीचे कटरो को निकाल कर हो चूका था और जो भवन विवादस्पद रहे उनके निर्माण रुके हुवे थे. विवाद के क्रम कुछ इस तरह थे कि कही पुश्तैनी किरायदार तो कही आपसी बटवारा. अगर बारीक नज़रिये से देखा जाये तो इस क्षेत्र में अपराध को बढ़ावा यही से मिला और नित नये अपराधी पैदा होने लगे. खैर ये तो अगली कडियों में मौज़ू हो सकता है मगर जिस क्रम में हम आगे बढ़ रहे है वह है गुटों का क्रम. अब दालमंडी में कई गुट काम करने लगे थे जिसमे सबसे मजबूत मिर्ज़ा गुट और हैदर गुट था. हैदर का नाम ही बिकता था और वही मिर्ज़ा का नाम आज भी कायम है. इस दौरान दालमंडी में नशे के कारोबार ने भी अपने पैर 90 के दशक से मजबूती से जमाने शुरू कर दिये थे दालमंडी जो फैलते हुवे नई सड़क तक पहुच चुकी थी के दुसरे छोर पर कोदई चौकी के पास ठीक दशाश्वमेघ थाने के सामने की गली नशे के कारोबारियों को काफी रास आई थी इस दौरान मुन्ना घोडा नामक व्यक्ति (वर्त्तमान में मृत) के द्वारा सबसे बड़ा नशे का कारोबार चलाया जाता था.

वही दुसरे छोर पर आस पास छोटे छोटे कारोबारी और भी उभर चुके थे. इसको बताने का तात्पर्य केवल यह है कि अपराध अपने पैर 90 के दशक से हर तरीके से जमा चूका था. प्रशासन के लिये जहा दालमंडी के अपराध जगत को लेकर सरदर्द रहा वही दुसरे तरफ कतूआपूरा भी काफी बड़ा सरदर्द हो रहा था. यहाँ दूसरा गुट पुरे शहर में ही नहीं बल्कि पूर्वांचल में अपना सिक्का चलाने को बेताब था. अन्नू गुट और बाबु यादव गुट ने एक दुसरे से हाथ मिला कर अपना पल्ला मजबूत कर लिया था यह गुट भी दालमंडी में घुसने को बेताब था और अपने गुर्गो को मार्किट के अन्दर छोड़ रखा था. जानकारों की माने तो इस गुट के अवैध कारोबार तो दालमंडी में हो रहे थे मगर वसूली नहीं हो पा रही थी. इनके हाथ नई सड़क तक पहुच थे जहा कुछ कारोबारी खुद को संरक्षण प्राप्त करने अथवा बाहुबल प्राप्त करने के लिये इनकी मागो पूरा करते थे. इनमे छोटे कारोबारी कम थे मगर कुछ बड़े कारोबारी ख़ास थे. तभी कानून का शिकंजा कुछ इस तरह से इनके ऊपर कसा कि एक एक करके यह गुट खत्म हो गया, मगर इनके गुर्गे दालमंडी में अपनी अलग पैठ बना चुके थे वही दालमंडी के अन्दर अपनी मजबूत पकड़ के साथ मिर्ज़ा और हैदर गुट था.

अगले भाग में हम आपको बतायेगे किस तरह दो गुटों का संगम हुआ और फिर दालमंडी के अपराध को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारण क्या रहे. जुड़े रहे हमारे साथ

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