दालमंडी – पहलवानी के वर्चस्व से लेकर अपराध के वर्चस्व तक. भाग – 8 जाने किसने सीचा नशे का कारोबार
तारिक आज़मी.
वाराणसी. दालमंडी में बदलाव की बयार बहुत तेज़ी के साथ चल रही थी. इसी दौरान नशे ने अपना रुख इस क्षेत्र के तरफ किया. हम यहाँ पर आपको बताते चले कि अब हमारा दालमंडी से तात्पर्य केवल एक दालमंडी ही नही बल्कि सराय हडहा, नई सड़क से लेकर कोदई चौकी तक रहेगा. क्योकि कारोबार के साथ अपराध और अपराधियों का दामन भी दूर तक पहुच चूका था. अपनी संजीदगी के लिये कभी मशहूर फाटक शेख सलीम इलाका अब अपराधियों की या तो चारागाह बन रहा था या फिर उनको संरक्षण देने वालो का रंग महल बन चूका था. बुज़ुर्ग शेख सलीम शाह रहमतुल्लाह के नाम से कायम इस इलाके में फाटक के ठीक पूरब तरफ नई सड़क के तरफ से जाने पर आपकी मजार आज भी है जहा अकीदत से उधर से गुजरने वाला हर शख्स सर झुका कर जाता है. अदब का मकाम आपका ऐसा है कि हिन्दू हो या मुस्लमान सभी आपके अदब में झुक जाते है. मगर इसको चिराग तले अँधेरा ही कहा जा सकता है कि इसी इलाके में हिष्ट्रीशीट रखने वालो का भी दबदबा है.
खैर साहब इलाके के इतिहास का क्या फायदा है जब इलाके का भूगोल ही बदल चूका है. दालमंडी जो रंग रस और शाही तरीको की शामो के लिये मशहूर थी या फिर बदनाम थी शरीफों के इलाके में अब अपना रंग ढंग बदल चुकी थी. लगभग हर शरीफ घरो के लोग इस इलाके में खरीदारी करने जाते है. इस इलाके में अपनी दूकान होने का मतलब करोडपति तो नही होता बल्कि लखपति ज़रूर होगा. कारोबार पर अल्लाह का करम हुआ और दिन दुनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ने लगा. इसी के साथ अपराधिक कृत्यों का भी जमावड़ा इस इलाके में होने लगा. बात निकली है तो बहुत दूर तक जायेगी के तर्ज पर हम एक एक अवैध कामो के ऊपर नज़र डालते चलते है जिसमे सबसे पुराना अवैध धंधा रहा नशे का कारोबार.
90 के दशक तक बनारस में नशे का मतलब शराब, गांजा भांग हुआ करता था. इसी दशक में मिर्ज़ापुर से बनारस में अपने पैर ज़माने वाले मुन्ना घोडा ने सबसे पहले इस इलाके में नशे का कारोबार शुरू किया. इसने अपना अड्डा दशाश्वमेघ थाने के सामने बनाया. जी सही समझे चिराग तले अँधेरे की बात चरितार्थ होना शुरू हो गई और लगभग डेढ़ से दो दशक तक इस इलाके में उसके द्वारा नशे का कारोबार जमकर किया गया, ऐसा नहीं की पुलिस को इसकी सुचना नहीं होती थी और कार्यवाही नहीं होती थी. पुलिस के लिये ये नशे का कारोबारी सरदर्द बना हुआ था. पुलिस ने इसके ऊपर जमकर कार्यवाही किया और कई बार इसको मुक़दमे में जेल भेजा मगर हर बार ज़मानत पर छुट कर आने के बाद यह फिर से अपने कारोबार में लग जाता था. इसके कारोबार से क्षेत्र में लोगो का जीना दुश्वार हो चूका था. हिरोईन के लती इस क्षेत्र में अपने नशे को पूरा करने के लिये चोरिया करना शुरू कर चुके थे. लोग इनके शिकार बन रहे थे और मुन्ना घोडा का कारोबार बढ़ता जा रहा था.
मुन्ना घोडा ने इस दौरान इसी क्षेत्र में विवाह कर लिया और एक बड़े कुनबे को संरक्षण दे डाला. इस दौरान मुन्ना घोडा ने पैसे तो बहुत कमाये मगर उसकी बचत नहीं हो सकी. ये वह दौर था जब एक सौ रुपया की अहमियत होती थी और एक हिरोईन की पुडिया भी एक सौ रुपयों में आती थी. नशे का कारोबार शुरू तो मुन्ना घोडा ने बनारस में कर दिया था मगर उसके चेले चपाटी दूर तक अपनी पहुच बनाते जा रहे थे. उसके संरक्षण में उसके चेले चपाटी शहर को अपने आगोश में लेने के लिए बेताब हो रहे थे. इस दौरान दूसरा नशे के कारोबार का अड्डा गौरीगंज बन चूका था. जहा के कई नवजवान लड़के इसका शिकार हो चुके थे. इसी नशे ने अपने ज़द में सलेमपुरा को भी ले रखा था. जहा दालमंडी का मोर्चा मुन्ना घोडा का साथ देने के लिये नाटे अनवर था तो वही सलेमपुर में इकबाल, शकील का नाम चर्चित था इसके अलावा इस क्षेत्र के शमीम ने भी कारोबार शुरू किया वही गौरीगंज का मोर्चा सँभालने वालो में बाबु मुख्य था. मगर वक्त की मार ऐसी थी कि ये सभी हिरोईन के लती हो चुके थे.
दुसरे को ज़हर की पुडिया बेचते बेचते ये सभी खुद भी इस ज़हर के गिरफ्त में आ चुके थे. इनमे सबसे ज्यादा हिरोईन का नशा मुन्ना घोडा खुद करता था, जानकारों और पारिवारिक सूत्रों की माने तो अकेले मुन्ना घोडा एक दिन में 15 से 20 पुडिया खुद सेवन करता था. मुन्ना घोडा के साथ सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये था कि उसने अपने जिस दूसरी पत्नी के घर शरण लिया था उसके छत से थाना एकदम साफ़ नज़र आता था. जैसे कोई थाने से निकलता तो छत पर बैठा इसका आदमी उस समय बाजा (जो बैंड में बजाय जाता था) से इशारा कर देता था और माल हटा दिया जाता था. यही कारण था कि मुन्ना घोडा कभी भी बहुत ज्यादा माल के साथ नही पकड़ा गया.
समय बीता और मुन्ना घोडा हिरोईन पीते पीते ही दुनिया से चला गया. धीरे धीरे करके उसके सभी साथी एक एक कर काल के गाल में इसी नशे की लत के कारण चले गये. आज भी अगर ध्यान दिया जाये तो जितने भी मुगलसराय से लेकर सोनारपुरा तक पुराने हिरोईन के कारोबारी थे सभी इसी मुन्ना घोडा के पैदा किये हुवे थे. इनमे से सिर्फ एक बचा नाटे अनवर जो इस कारोबार के एक एक गुर सीख चूका था. मगर उसको कारोबार करने के लिये पैसे नहीं थे. यह वह समय था जब अन्नू त्रिपाठी गैंग अपने शबाब पर था. जानकारों की माने तो अन्नू और बाबु के गैंग के साथ नाटे अनवर ने कारोबार का प्रस्ताव रखा. अन्नू ने पहले तो मना किया मगर जब नाटे अनवर ने इसके फायदे गिनवाये तो इस कारोबार को टेस्ट स्कीम के तौर पर पहले कुतबन शहीद में अन्नू ने नाटे अनवर के साथ शुरू करवाया. यहाँ बैठ कर माल बेचने की ज़िम्मेदारी नाटे अनवर की रहती थी. नाटे अनवर ने इस इलाके में कारोबार को जमकर फैला लिया. इस काम के मुनाफे को देखते हुवे अन्नू ने इस काम को और इलाको में भी फैलाना शुरू कर दिया. अगर जानकारों की माने तो ये वह दौर था जब अन्नू गैंग के पास लड़के थे अपराध करने के लिये और उनको बाकायदा बढ़िया वेतन मिलता था. किसी काम को सफलता के साथ करने के बाद उनको इन्सेन्टिव भी मिलता था. इसके अलावा मुफ्त के महगे कपडे और जूते उपलब्ध रहते थे. पॉवर की तलाश में नई सड़क के दो बड़े कारोबारी अन्नू गैंग के लडको को ये सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध करवाते थे. अन्नू ने सबसे अधिक इस नशे के कारोबार को दालमंडी क्षेत्र में फैलाया. दालमंडी में लगभग अन्नू का हर लड़का हिरोईन बेचता था.
कुछ समय के बाद नाटे अनवर अपने नशे की लत के कारण मर गया. नाटे अनवर के मरने के बाद ये कारोबार अन्नू को बंद करना पड़ा था क्योकि इस कारोबार की बारिकिया सिर्फ नाटे अनवर जानता था. काम भले अन्नू के संरक्षण में बंद हो चूका था मगर इस क्षेत्र में फुटकर बेचने वाले काफी पनप चुके थे जो आज भी कायम है. भेलूपुर थाने का प्रभार पाते हु विपिन राय ने इस कारोबार पर जमकर डंडा चलाया और कारोबारियों को या तो सलाखों के पीछे पहुचाया या फिर कारोबारी इलाका छोड़ के भाग गये. नाटे अनवर के मरने के बाद ये क्षेत्र मुख्य सप्लाई का अड्डा बना हुआ था. काम भले बंद हो चूका था मगर कारोबारी फिर भी अपनी गिद्ध दृष्टि लगाये हुवे थे. इसी तरह चूहे बिल्ली का खेल खेलते हुवे नशे के कारोबारी अपना कारोबार जारी रखे हुवे थे. इस कारोबार को दुबारा एक संरक्षण की ज़रूरत थी.
इस कारोबार को दुबारा संरक्षण मिला वर्ष 2012 में. और ये संरक्षण बड़ा संरक्षण साबित हुआ जो आज भी प्राप्त है. वर्ष 2011 रईस बनारसी के कानपुर में शानू ओलंगा की हत्या के बाद से रईस का नाम काफी बड़ा हो चूका था. खालिसपुरा से लेकर दालमंडी और काशीपुर तक बाहुबल के भूखे लोगो ने रईस को पनाह देना शुरू कर दिया था. असल में रईस ने ओलंगा की हत्या ही सिर्फ नहीं किया था बल्कि अपनी दहशत कायम किया था. इस दहशत को कायम करने के लिये वह घटना स्थल पर तब तक खड़ा रहा जब तक उसको लोग पहचान न जाये. इसके अलावा रईस का मौके का फोटो खबरिया लोगो ने खीचा, ये फोटो कई अखबारों में कई दिनों तक सुर्खिया बना हुआ था. इस वजह से छोटे अपराधी रईस को अपना बॉस बनाने को आतुर थे.
इधर कानपुर में शानू बॉस और शानू ओलंगा के बाद जो बड़ा नाम था वह सिर्फ टायसन का था. रईस जानता था कि टायसन उसका खुल के सामना नहीं कर सकता है. अपराध जगत में अपना सिक्का चलाने को बेताब रईस ने वहा के अपराधियों को संरक्षण देना शुरू कर दिया था. सूत्रों की माने तो इसी कड़ी में कानपुर के अपराध जगत में अपनी पहचान रखने वाले शरीफ डफाली, बेकनगंज क्षेत्र के एक अंडारोल वाला, शानू लफ्फाज़, शहीद पिच्चा आदि ने काफी समय कानपुर से फरारी काट कर बनारस में वक्त गुज़ारा. जानकारों की माने तो खालिस्पुरा की तंग गलियों से लेकर दालमंडी की पेचीदा दलीलों जैसी गलियों में इन्होने अपने फरारी का वक्त गुज़ारा था. एक एक गली से ये सभी यहाँ की वाकिफ थे. इस दौरान रईस के संरक्षण में आया रिजवान अत्ता.
कौन है रिजवान अत्ता
रिजवान अत्ता कानपुर का एक खतरनाक अपराधी है जिसका मुख्य काम ट्रेनों में लूट, ज़हरखुरानी, छिनैती और नशे का काला कारोबार है. कानपुर में ही इसके ऊपर दर्जनों मुक़दमे है. जानकारों और सूत्रों की माने तो इसके परिवार की दो महिला सदस्य नशे का काला कारोबार करती है. कानपुर के सीपीसी कंपाऊंड में मालगोदाम के पास इसका आवास है. वैसे ये वहा रहता तो नहीं था मगर इसके लोग काफी वहा थे. रिजवान अत्ता को भी किसी बड़े नाम के संरक्षण की आवश्यकता थी. सूत्र बताते है कि शरीफ डफाली जो रईस का बचपन का साथी था और रिजवान अत्ता की अच्छी बनती थी. पुलिस रिजवान अत्ता के पीछे पड़ी हुई थी और रिजवान अत्ता का कारोबार करना मुश्किल हो रहा था. सूत्र बताते है कि रिजवान अत्ता ने कानपुर से फरार होकर बनारस में दिन गुज़ारे. कारोबार भले सफ़ेद हो या काला कारोबारियों को अपनी काम की जगह दिखाई दे जाती है.
रिजवान अत्ता के कारोबार करने के तरीके पर अगर गौर करे तो रिजवान अत्ता लम्बे समय से नशे का कारोबार करता है. ये कारोबार हमेशा महिलाओ के आड़ में करवाता है. बनारस में इसने अपने कारोबार को फैलाने के लिये भी जगह तलाश कर लिया. जानकारों की माने तो रिजवान अत्ता ने दालमंडी में पारो का साथ जहा पकड़ा वही मुगलसराय में भी एक महिला का साथ पकड़ा, आदमपुर थाना क्षेत्र के सलेमपुरा में ;लंगड़ा की बीबी का साथ पकड़ा और काम अपना नशे का शुरू कर दिया. ये वो नाम है जिनको कई बार पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. पारो तो एक बार गिरफ़्तारी से बचने के लिये ऊपर छत से कूद पड़ी थी. वही लंगड़ा की बीबी के नाम से सलेमपुरा में जानी जाने वाली भी कई बार पकड़ी गई. मगर पुलिस को कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी.
इस दौरान वर्ष 2018 में रिजवान अत्ता गैंग और पुलिस में कानपुर में मुठभेड़ हुई और रिजवान अत्ता का दाहिना हाथ रणजीत मुठभेड़ में घायल हुआ और गिरफ्तार हुआ. यह मुठभेड़ थाना कोहना क्षेत्र में हुई थी.. इस दौरान रिजवान अत्ता वहा से भाग निकला. जानकार बताते है कि फरार होकर अत्ता ने अपने कारोबार का काम सबको सहेजा और कुछ दिन बनारस में भी गुज़ारे. इसके बाद रिजवान अत्ता ने सरंडर कर दिया और खुद जेल चला गया. कहानी यही खत्म नहीं होती है. सूत्रों और जानकारों की माने तो कानपुर के सीपीसी कालोनी के मालगोदाम से शुरू चार पांच लोगो का रिजवान अत्ता का गैंग आज बड़ा गैंग बन चूका है. गैंग के सदस्यों का काम बटा हुआ है. नशे का कारोबार महिला सदस्य के द्वारा करवाया जाता है.
रिजवान अत्ता भले अभी जेल में है मगर उसके गैंग के लोग अपना कारोबार जमकर चला रहे है. सूत्र बताते है कि कोर्ट में पेशी के दौरान उसके साथी उसको पिछली पेशी के दिन से लेकर उस दिन तक का हिसाब बताते है. हर जगह लोगो की सेट है. ट्रेन वाला गैंग अलग है, तो ज़हार्खुरानी वाला अलग है. अत्ता का गैंग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो पुलिस के लिये चिंता का विषय बना हुआ है. क्षेत्रिय चर्चोओ के अनुसार आज भी अत्ता के महिला सदस्यों द्वारा मालगोदाम में चट्टा लगता है. एक फिक्स समय है. खरीदार आते है और माल लेकर चले जाते है. महिला सदस्य एक युवक के साथ बाइक से आती है और आधे घंटे में ही माल बेच कर चली जाती है.
सब मिलाकर अत्ता का काम जारी है और हमारी सीरिज़ भी जारी है. अगले अंक में हम बतायेगे कि कौन है जो दालमंडी में अपने नाम से नहीं बल्कि पानसौवा के नाम से जाना जाता है. आखिर इस पान्सौवा का मतलब क्या होता है. आखिर ये चाईना क्या है ? अभी पिक्चर बाकी है हम बतायेगे किस तरह करोडो की संपत्ति लाखो में लेकर लोग अचानक रातो रात करोड़पति बन गये. आखिर क्या है कारण कि लोग अपने सभी काम छोड़ कर बिल्डर बन गये. हम जल्द ही बतायेगे किस तरह नाम चमकाने के लिये मामूली बात पर चली थी गोली. जुड़े रहे हमारे साथ.
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