राफेल विवाद – केंद्र सरकार को दिया सुप्रीम कोर्ट का तगड़ा झटका, कहा दस दिनों में न्यायालय और याचिकाकर्ताओ को बताये कीमत और उसकी विस्तृत जानकारी
अनीला आज़मी
डेस्क (नई दिल्ली) : राफेल मामले में भाजपा सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका देते हुवे निर्देशित किया है कि महज़ दस दिनों के भीतर राफेल की कीमत और उसकी विस्तृत जानकारी वह कोर्ट से साझा करे। यही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार यह जानकारी याचिकाकर्ताओ को भी साझा करे। साथ ही कहा है की यदि इसमें कोई गोपनीय जानकारी ऐसी है जो याचिकाकर्ताओ से साझा नही किया जा सकता है तो उस सम्बन्ध में केंद्र सरकार उस जानकारी को याचिकाकर्ताओ से साझा करने से मना कर सकती है।
न्यायालय अरुण शौरी और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से दस दिनों के भीतर सील बंद लिफाफे में राफेल विमान की कीमत और उसके डिटेल जमा करने को कहा है। बता दें कि पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ सौदे की प्रक्रिया की जानकारी मांगी थी। मगर इस बार सुप्रीम कोर्ट ने महज 10 दिनों के भीतर राफेल की कीमत और उसकी विस्तृत जानकारी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार जो भी जानकारी कोर्ट को दे, वह याचिकाकर्ताओं को भी दे ताकि वह इस पर अपना जवाब दे सके। कोर्ट ने कहा कि सरकार को लगता है कि कोई जानकारी गोपनीय है तो वह उसे याचिकाकर्ता को देने से मना कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कहा है कि वह राफ़ेल डील में क़ीमत के बारे में जानकारी दस दिनों में सीलबंद लिफ़ाफ़े में कोर्ट को दें और ऑफसेट पार्टनर कैसे चुना गया ये भी बताएं।
याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले में कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। तो इस पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि अभी उसके लिए वक्त लग सकता है। पहले उन्हें अपना घर तो व्यवस्थित कर लेने दो। यहाँ उन्हें का तात्पर्य कोर्ट का सीबीआई से था और अपना घर का तात्पर्य विभाग से था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो पब्लिक डोमेन में जानकारियां हैं, उसे दें। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राफेल से जुड़े कुछ दस्तावेज ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के तहत आते हैं। जिन्हें दिया नहीं जा सकता। इस पर सीजेआई ने कहा कि आप कोर्ट में हलफनामा दायर करो कि आप क्यों दस्तावेज नहीं दे सकते ?
बताते चले कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कि हम केंद्र को नोटिस जारी नहीं कर रहे है। ये भी साफ कर रहे हैं कि याचिकाकर्ताओं की दलीलों को भी नहीं रिकार्ड कर रहे हैं, क्योंकि उनकी दलीलें पर्याप्त नहीं हैं। हम सिर्फ डील को लेकर फैसले की प्रक्रिया पर खुद को संतुष्ट करना चाहते हैं। दरअसल, राफेल सौदे को लेकर विवाद बढ़ने के बीच फ्रांस से 58000 करोड़ रुपये की लागत से भारत के 36 लड़ाकू विमानों को खरीदने के समूचे मामले को समझाते हैं:
आखिर क्या है राफेल ?
राफेल अनेक भूमिकाएं निभाने वाला एवं दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण डसॉल्ट एविएशन ने किया है। राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है।
क्या था पूर्ववर्ती यूपीए सरकार का सौदा ?
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था। लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। डसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला। मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 विमान भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे। रिपोर्ट्स की मानें तो 2012 से लेकर 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला। कहा गया कि डसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी।
क्या किया गया मोदी सरकार द्वारा सौदा ?
फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी। घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया। मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए।
पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे। वहीं लंबे समय तक विमानों के रख रखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी। आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ।
भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए। विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी।
क्या है आरोप ?
कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रहा है। उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया
। यही नही राफेल पर सरकार लगातार कहती आ रही है कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से हम इस सौदे के सम्बन्ध में सूचनाये साझा नही कर सकते है। इस बयान के बाद विपक्ष हमलावर हो गया। खास तौर पर कांग्रेस ने जमकर बवाल काट रखा है। राहुल गाँधी आम राजनैतिक मंचो से प्रधानमंत्री पर घोटाला करने का आरोप लगाते रहते है। राहुल गाँधी ने लगातार अपने मंचो से कहा है कि चौकीदार चोर है। यहाँ चौकीदार का मतलब राहुल गाँधी का प्रधानमंत्री मोदी से रहता है। पांच राज्यों में हो रहे चुनावों में राहुल ने कांग्रेसियों को एक नारा भी देते हुवे मंच से कहा था कि फ़्रांस की गलियों में शोर है चौकीदार ही चोर है।
अनिल अम्बानी की भूमिका पर भी है सवाल
दूसरे तरफ कांग्रेस सहित विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के असंतुष्ट कई सांसद इस डील में अनिल अम्बानी की भूमिका पर भी गहरा सवालिया निशाँन लगा रहे है। उनका सवाल है कि आखिर भारत की सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनाटिकस के जगह इस जहाज हेतु सभी ठेके अनिल अम्बानी की कंपनी जो केवल पंद्रह दिनों पहले ही बनी थी को क्यों दिया गया ? जबकि अनिल अम्बानी की कंपनी को पूर्व का कोई अनुभव भी नही है। सब मिलाकर सत्तारूढ़ दल राफेल डील पर घिरता दिखाई दे रहा है।