आरबीआई बनाम सरकार – जाने क्यों है नाराज़ उर्जित पटेल से सरकार, क्या है विवाद ?

अनीला आज़मी

डेस्क (नई दिल्ली)। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच जारी विवाद गहराता जा रहा है। विवाद की इन्तहा इसी से समझी जा सकती है कि स्वदेशी मंच जो संघ के आर्थिक मामले देखते है ने बयान जारी करके कहा है कि या तो उर्जित पटेल सरकार के मंशानुसार काम करे या फिर इस्तीफा दे दे। इस प्रकरण में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने बीते शुक्रवार को सरकार को चेतावनी देते हुए सार्वजनिक तौर पर साफ कहा कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को नजरअंदाज करना भारी पड़ेगा। विरल आचार्य को रिजर्व बैंक में उर्जित पटेल ही लेकर आए थे। आचार्य उस वक्त न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे।

उर्जित पटेल के कई फैसलों से इंडस्ट्री है नाराज 

आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने कुर्सी संभालने के बाद पिछले दो साल में कई सख्त फैसले लिए हैं। रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी को एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि अगर कर्जदार किस्त चुकाने में एक दिन का भी विलंब करता है तो बैंकों को कार्रवाई करनी होगी। सरकार इससे खुश नहीं थी। अब दोनों के बीच दरार और बढ़ गई है। हाल में IL&FS के डिफॉल्ट के बाद फंड की कमी और उससे एनबीएफसी शेयरों में बिकवाली के बाद इंडस्ट्री राहत की मांग कर रही है। उसका कहना है कि इस मामले में रिजर्व बैंक ने अभी तक संतोषजनक कदम नहीं उठाया है। हालांकि दबाव में आकर रिजर्व बैंक ने नए नियम जारी किए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार और आरबीआई गवर्नर के बीच काफी लंबे समय से संवाद का अभाव है। उधर, ऑल इंडिया रिजर्व बैंक इंप्लायीज एसोसिएशन ने सोमवार को सरकार को फिर चेताया कि आरबीआई को नजरअंदाज करने के परिणाम गंभीर होंगे। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक पिछले सप्ताह हुई थी जो कि बेनतीजा रही। अगली बैठक की तिथि निर्धारित नहीं की जा सकी है क्योंकि सभी मेंबर की मौजूदगी तय नहीं हो पाई है।

बड़ा सवाल यही है कि आरबीआई और सरकार के बीच टकराव की असली वजह क्या है? रिजर्व बैंक पर नजर रखने वालों ने इसकी प्रमुख वजह की ओर इशारा करते हुए कहा कि आरबीआई इंडस्ट्री बैंकिंग, म्यूचुअल फंड या मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के प्रतिनिधियों से मिलना नहीं चाहता। इस वजह से सरकार को आरबीआई बोर्ड में अपने नॉमिनी के जरिये लॉबिस्ट की भूमिका निभानी पड़ रही है। सरकार की ओर से आरबीआई बोर्ड में नामित सदस्य छोटे एवं लघु उद्योगों के लिए कई नियमों में ढील देने के लिए दबाव बना रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, बोर्ड के एक सदस्य एस गुरुमूर्ति, जो कि स्वदेशी जागरण मंच से हैं, ने पिछले हफ्ते की बोर्ड मीटिंग में छोटे एवं लघु उद्योगों की फंडिंग के लिए दबाब डाला। उधर, आरबीआई का मानना है कि एमएसएमई को ऋण देने के नियमों में ढील देने और अलग से भुगतान विनियामक बनाने से पूंजी बाजार में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है। सरकार की ओर नामित अन्य सदस्यों के भी आरबीआई के पूर्णकालिक सदस्यों से कई मुद्दों पर मतभेद की खबरें हैं। हालांकि गुरुमूर्ति ने मतभेद की बात से इनकार किया है। उन्होंने मीडियम और स्मॉल एंटरप्राइजेज की फंडिंग पर मतभेद के सवाल पर ट्वीट करके बताया, ‘मैं मीटिंग में मौजूद था। सभी डायरेक्टर्स इसकी तस्दीक करेंगे कि पांच मामलों में से चार पर सहमति थी, सिर्फ एक पर विवाद था। कोई दबाव नहीं था।’ आरबीआई की वेबसाइट के मुताबिक, सेंट्रल बोर्ड में कुल 18 सदस्य हैं जिसमें 5 फुल टाइम निदेशक हैं।

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