नोट की चोट – नोटबंदी की मार कही न ले ले इस एचआईवी पाजिटिव की जान

अज़हरुद्दीन 
फतेहपुर. केंद्र सरकार के दावो के हिसाब से पी.एम.मोदी के नोटबंदी के ऐलान के साथ ही कालाधन रखने वालों की नींद उड़ गई। अब दावो में कितनी हकीकत है यह तो आने वाला कल ही बताएगा मगर इस आदेश के बाद बैंको से सामने से बीस दिनों के बाद भी लंबी-लंबी कतारें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। इस कतार अभी तक तो काले धन रखने वाला कोई चेहरा नज़र नहीं आया है कही भी मगर लाइन में केवल आम आदमी ही दिखाई दे रहा है। जो दो जून की रोटी के लिए जी-जान से मेहनत करता है, तब जाकर अपने और अपने परिवार का पेट भर पाता है। इस नोटबंदी के बाद से जनधन खाते में अचानक से आए हजारों करोड़ के बाद रिजर्व बैंक ने खातों के पैसो पर सख्ती बरतनी शुरु कर दी है मगर इसमें पिस आम आदमी रहा है, ऐसा ही एक मामला नऊवाबाग इलाके का है। जहां एचआईवी पीड़ित एक शख्स बैंक से पैसे ना मिल पाने की वजह से इलाज के लिए भटक रहा है।
नऊवाबाग की बरहरा में बैंक ऑफ बड़ौदा की ग्रामीण शाखा में एचआईवी पीड़ित अपने साढ़े चार हजार रुपये जमा करने गया था। लेकिन पीड़ित की माने तो बैंक मैनेजर आर.के.सिंह ने जनधन खातों में लगी रोक की बात कहकर रुपये जमा करने से मना कर दिया। अब पैसे के अभाव में पिछले कई साल से एचवाईवी से पीड़ित मजदूर इलाज के लिए भटक रहा है। और उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नियम और कायदे जब बनाए ही जनता की सहुलियत के लिए जाते हैं। तो फिर इस पीड़ित को गंभीर बीमारी के इलाज के लिए इधर-उधर क्यों भटकना पड़ रहा है। 

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