राम सीता विवाह का सजीव चित्रण देख श्रद्धालु हुवे भाव विभोर
बबुनंदन मिश्रा
रतनपुरा मऊ/ राम सीता विवाह का भावपूर्ण वर्णन एवं आकर्षक झांकियों के माध्यम से विवाह के विभिन्न अवसरों का सजीव चित्रण देख श्रद्धालु भाव विभोर एवं निहाल हो उठे स्थानीय काली मंदिर परिसर में अयोध्या से पधारे पूज्य संत राम दयाल बापू ने अपने प्रवचन के दौरान राम सीता विवाह के लोकाचार का वर्णन करते हुए कहा कि मिथिला नरेश राजा जनक सीता स्वयंवर का आयोजन किया था ,देश विदेश के अनेक भूपति मौजूद थे
वहीं अपने गुरु के साथ राम लक्ष्मण किशोर भाई दोनों भाई मिथिला नगरी में पहुंचे थे। राम और लक्ष्मण को देख कर जनकपुर वासी आह्लादित तो उठे, नगर भ्रमण को निकले सभी इन की अलौकिक छवि को देख कर मंत्रमुग्ध हो गए और जब स्वयंवर का समय आया स्वयंवर के पूर्व सीता गौरी पूजन के लिए जब मंदिर जाते हैं और मां गौरी का पूजन कर उनसे आशीर्वाद लेती हैं तो आप फुलवारी में सखियों के साथ गई सीता और इन दोनों भाइयों के बीच पहला आमना सामना होता है।
सुनु सिय सत्य आशीष हमारी …
पूजही मनोकामना तुम्हारी….
मां गौरी से आशीर्वाद लेकर सीता अपने महल वापस लौटती हैं सभी राजा स्वयंवर में बैठे हुए हैं सभी धनुष उठाने का प्रयास करते हैं परंतु धनुष टस से मस नहीं होती सभी विफल हो जाते हैं राजा जनक को कहना पड़ता है कि-वीर विहीन महि मैं जानी…इतना सुनकर लक्ष्मण क्रोधित होते हैं और गुरु का आशीर्वाद लेकर राम जब आगे बढ़ते हैं धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते ही धनुष टूट जाती है चारों तरफ जय कार होता है देवता फुल की वर्षा करते हैं सखियां मंगल गीत गाती हैं और सीता राम के गले में जयमाला वरमाला डालते हैं ,लेकिन तभी धनुष टूटने की आवाज सुनकर परशुराम का आगमन होता है और शिव धनुष टूटा देख क्रोधित परशुराम अपना फरसा लिए कहते हैं धनुष किसने तोड़ा धनुष तोड़ने वाले को कभी माफ नहीं करूंगा
तभी परशुराम की बात सुनकर लक्ष्मण उत्तेजित होते हैं परंतु राम उन्हें शांत करवाते हैं और शांत कराकर जब परशुराम के आगे नतमस्तक होकर श्री राम कहते हैं नाथ शंभू धनु भंजन हरा हुई है को एक दास तुम्हारा विनम्र राम की वाणी सुन उनका दर्शन होते ही परशुराम को इस बात का एहसास हो जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम है उन्हें आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं इसके बाद पूरे अयोध्या में खुशियों का सैलाब छा जाता है हर तरफ ढोल नगाड़े और मंगल गीत की आवाज गूंजती है और जैसे ही खबर जनकपुर से अयोध्या पहुंचती है राजा दशरथ बारात लेकर पहुंचते हैं चारों भाइयों का जनकपुर में विवाह होता है और इस विवाह में सारे लोकाचार अपनाए जाते हैं मंडप बनती है हल्दी लगती है पानी ग्रहण संस्कार होता है और जब चारों बेटियों की विदाई होती है तो बड़ा ही भावुक दृश्य उपस्थित होता है
राजा जनक और उनकी पत्नी का विलाप बेटियों की विदाई के समय जो होता है उसका वितरण करते हुए उन्होंने कहा बहुत ही मार्मिक था इसे सुनकर सभी की आंखों में आंसू भर गए और जब चारों भाई अपनी पत्नियों के साथ जनकपुर से अयोध्या पहुंचते हैं अयोध्या का माहौल भी उसी तरह खुशियों में डूबा रहता है सारे नगर को सजाया जाता है हर तरफ खुशियां ही खुशियां हैं-आ गईली दुल्हनिया आनंद भईल हो, जैसे गीत अयोध्या गुजरती है इस अवसर पर आकर्षक झांकियों को देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।