साहेब ऐसे कैसे सब पढेगे, सब बढ़ेगे.
फारुख हुसैन
इससे अभिभावकों में जागरुकता आए और बच्चे आगे आकर शिक्षा ग्रहण करें।इसके साथ ही रैलियां,मिड डे मील,निशुल्क ड्रेस वितरण,निशुल्क पाठ्य पुस्तकें आदि,सहित तमाम योजनाये जिससे शिक्षा को पूरे प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके स्कूलों में अधिकतर अध्यापकों की भी कम दिलचस्पी से बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रेरित ना कर पाना भी बाल श्रमिकों की संख्या में बढ़त और ग्रामीण क्षेत्र से विद्यालय में पढ़ने योग्य बच्चों की संख्या घटती जा रही हैं।अगर विकास खंड क्षेत्र का भ्रमण कर लिया जाए तो बड़ी संख्या में पढ़ने योग्य बच्चे स्कूल में नाम लिखाकर वह अपने परिवार का भरण पोषण के लिए काम करते हैं।जैसे कई बच्चे वर्कशॉप,ईंटभट्ठों,जोखिम वाले कारखानों,दुकानों, होटलों आदि पर मजदूरी करते नजर आते हैं,और हर किसी के नजर के सामने रोजाना आते जाते हैं,पढ़ने की ललक तब खत्म हो जाती हैं।जब बड़े परिवारों के बच्चे परिवार का खर्च चलाने के लिए काम करने के लिए विवश हो जाते हैं।और पढ़ाई लिखाई में मन न लगाकर काम करके परिवार का भरण पोषण करने का मन बना लेते हैं।इसे रोकने के लिए बाल श्रम कानून बनाया गया हैं।जिसके लिए बाकायदा हर तहसील क्षेत्र में सरकारी अमला भी तैनात किया जाता हैं।लेकिन विभाग के अधिकारी कागजी खानापूर्ति कर के काम चला रहे हैं।इस अमले के कोई भी प्रयास कारगर होते नहीं दिखाई देते हैं।इस दिशा की ओर काम कर रहे सामाजिक संगठनों,एनजीओ की भूमिका भी अपने प्रयासो मे असफल होती नजर आ रही हैं।जिसके लिए सरकारों को टीम गठित कर कोई ठोस कदम उठाना चाहिए जिससे स्कूलों में बच्चों की संख्या में इजाफा हो सके,और कोई भी बच्चा शिक्षा से महरुम न हो सके।