जाने क्या है छठ महापर्व जानें क्यों किया जाता है छठ माता की पूजा
अन्जनी राय
छठ महापर्व पर विशेष
सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में बेहद धूमधाम और हर्सोल्लास पूर्वक मनाया जाने वाला छठ पर्व साल 2016 में 04 नवंबर से 07 नवंबर तक मनाया जाएगा।
छठ व्रत की मुख्य तिथियां निम्न हैं:
04 नवंबर 2016: खाए नहाय
05 नवंबर 2016: खरना
06 नवंबर 2016: शाम का अर्घ्य
07 नवंबर 2016: सुबह का अर्घ्य, सूर्य छठ व्रत का समापन
छठ व्रत विधि
खाय नहाय : छठ पूजा व्रत चार दिन तक किया जाता है। इसके पहले दिन नहाने खाने की विधि होती है। जिसमें व्यक्ति को घर की सफाई कर स्वयं शुद्ध होना चाहिए तथा केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए।
खरना : इसके दूसरे दिन खरना की विधि की जाती है। खरना में व्यक्ति को पूरे दिन का उपवास रखकर, शाम के समय गन्ने का रस या गुड़ में बने हुए चावल की खीर को प्रसाद के रूप में खाना चाहिए। इस दिन बनी गुड़ की खीर बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ठ होती है।
शाम का अर्घ्य : तीसरे दिन सूर्य षष्ठी को पूरे दिन उपवास रखकर शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी के डाले में रखकर घाट पर ले जाना चाहिए। शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसी ही रखना चाहिए। इस दिन रात के समय छठी माता के गीत गाने चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए।
सुबह का अर्घ्य : इसके बाद घर लौटकर अगले (चौथे) दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना चाहिए। उगते हुए सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम कर उनसे संतान-रक्षा का वर मांगना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर सभी में प्रसाद वितरण करना चाहिए तथा स्वयं भी प्रसाद खाकर व्रत खोलना चाहिए।
छठ पर्व की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस महाव्रत को निष्ठा भाव से विधिपूर्वक संपन्न करता है वह संतान सुख से कभी अछूता नहीं रहता है। इस महाव्रत के फलस्वरूप व्यक्ति को न केवल संतान की प्राप्ति होती है बल्कि उसके सारे कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं माता जानकी ने भी किया था ये छठ पर्व, जाने क्या है पूरी कहानी –
छठ महापर्व बिहार में लोक आस्था से जुड़ा है। इससे जुड़ी कई अनुश्रुतियां हैं। ऐसी ही एक धार्मिक मान्यता इसे माता सीता व भगवान श्रीराम से जोड़ती है। कहा जाता है कि माता सीता ने पहला छठ बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था। आज भी इसकी निशानी के रूप में माता के चरण चिन्ह मौजूद है।
वाल्मीकि रामायण में चर्चा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब पिता की आज्ञा से वन के लिए निकले थे, तब वे पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे थे। वहां सीता ने मां गंगा से वनवास की अवधि सकुशल बीत जाने की प्रार्थना की थी। जब लंका विजय के बाद श्रीराम आयोध्या लौटे, तब उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया। लेकिन, वाल्मीकि ऋषि ने कहा कि बिना मुद्गल ऋषि के आए राजसूय यज्ञ सफल नहीं होगा।
इसके बाद श्री राम व माता सीता तत्काल मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे। वहां रात्रि विश्राम के दौरान ऋषि ने माता सीता को छठ व्रत करने की सलाह दी। उनकी सलाह पर माता सीता ने मुंगेर स्थित गंगा नदी में एक टीले पर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर पुत्र की प्राप्ति की कामना की।
पत्थर पर मौजूद है निशानी
कहते हैं कि माता सीता ने जहां छठ पूजा की, वहां आज भी उनके पदचिन्ह हैं। कालांतर में स्थानीय लोगों ने वहां एक मंदिर का निर्माण कराया, जो सीताचरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर हर साल गंगा की बाढ़ में डूबता है। महीनों तक माता सीता के पदचिन्ह वाला पत्थर भी गंगा के पानी में डूबा रहता है। इसके बावजूद ये पदचिन्ह धूमिल नहीं पड़े हैं।
श्रध्दालुओं की गहरी आस्था
श्रद्धालुओं की इस मंदिर व माता के पद चिन्ह पर गहरी आस्था है। ग्रामीण रामवती देवी, मुन्नी देवी, चांदो देवी आदि ने बताया कि दूसरे प्रदेशों से भी लोग यहां मत्था टेकने आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के पुरोहित रामबाबा के अनुसार सीताचरण मंदिर आने वाला कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता है। लेकिन, इतना प्रसिद्ध होने के बाद भी सीताचरण मंदिर के विकास को लेकर अब तक कोई पहल नहीं की गई है।