अयोध्या प्रकरण – जस्टिस खालिफुल्लाह के अध्यक्षता में हल होगा मध्यस्था के माध्यम से मामला – सुप्रीम कोर्ट, जाने कौन है वह तीन मध्यस्थ

आदिल अहमद 

नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बहुत प्रतीक्षित फैसला आज आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में मध्यस्थ तीन सदस्यों की कमेटी का गठन कर दिया है। अयोध्या मामले पर मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस विवाद को मध्यस्थता और बातचीत के जरिए तय किया जाएग। मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष जस्टिस खलीफुल्ला होंगे और पूरी प्रक्रिया गोपनीय रखी जाएगी। मध्यस्थों में श्री श्री रविशंकर  भी शामिल होंगे। इसके अलावा वरिष्ठ वकील श्री राम पंचू होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मध्यस्थता की कार्रवाई पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी और इसकी मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी। कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले में क्या प्रगति रही इसकी रिपोर्ट चार हफ्ते में दी जाए। इसके साथ ही मध्यस्थता के लिए बातचीत फैजाबाद में होगी। इससे पहले बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर फैसला सुरक्षित रख लिया था कि अयोध्या विवाद को मध्यस्थ के पास भेजा जा सकता है या नहीं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर विभन्न पक्षों को सुना था।

पीठ ने कहा था कि इस भूमि विवाद को मध्यस्थता के लिए सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में बाद में आदेश दिया जायेगा। इस प्रकरण में निर्मोही अखाड़ा के अलावा अन्य हिन्दू संगठनों ने इस विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के शीर्ष अदालत के सुझाव का विरोध किया था, जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस विचार का समर्थन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था।

जस्टिस कलीफुल्ला : 

स्वर्गीय जस्टिस फकीर मोहम्मद के बेटे हैं। जस्टिस कलीफुल्ला तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कराईकुडी के रहने वाले हैं।  उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ।  20 अगस्त 1975 से उन्होंने बतौर वकील प्रैक्टिस शुरू की थी।अप्रैल 2012 में वह सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे। 2016 में वह सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए। सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले वहजम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में कार्यरत रहे। जहां वह कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बने थे। पहली बार उन्होंने दो मार्च 2000 को न्यापालिका में बतौर जज कदम रखा, जब मद्रास हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश के तौर पर तैनाती मिली। देश के पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की उस पीठ का सदस्य रह चुके हैं, जिसने बीसीसीआई में सुधारों के लिए अहम आदेश जारी किए थे।

श्री श्री रविशंकरः

रविशंकर धर्म और अध्यात्म के प्रख्यात गुरु हैं। दुनिया भर में उनकी पहचान है। अनुयायी श्री श्री रविशंकर के नाम से अनुयायी पुकारते हैं। वे ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक हैं। रविशंकर का जन्म तमिलनाडु  में 13 मई 1956 को हुआ।  उनके पिता का नाम वेंकट रत्न था जो भाषाविद थे। आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए पिता ने उनका नाम रविशंकर रखा। रविशंकर पहले महर्षि योगी के शिष्य थे। उन्होंने तब अपने नाम के आगे श्रीश्री लगाना शुरू किया, जब प्रख्यात सितार वादक रविशंकर ने आरोप लगाया था कि वे उनके नाम की प्रसिद्धि का लाभ उठा रहे हैं। 1982 में रविशंकर ने ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना की। सुदर्शन क्रिया ऑर्ट ऑफ लिविंग कोर्स का आधार है।

श्रीराम पंचू : 

श्रीराम पंचू चेन्नई के रहने वाले हैं। वह मद्रास हाई कोर्ट के वकील होने के साथ मशहूर मध्यस्थ यानी मीडिएटर हैं। कई केस में बतौर मीडिएटर और आर्बिट्रेटर वह सुलह-समझौते करवा चुके हैं। वह मीडिएशन चैंबर्स के फाउंडर हैं। यह फाउंडेशन  मध्यस्थता कराने के लिए जाना जाता है। वह इंडियन मीडिएटर्स एसोसिएशन  के प्रेसीडेंट होने के साथ ही इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट(आईएमआई) के डायरेक्टर हैं। उन्होंने 2005 में उन्होंने भारत का पहला मध्यस्थता केंद्र स्थापित किया। उन्होंने मध्यस्थता को भारत की कानूनी प्रणाली का हिस्सा बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कॉमर्शियल, कारपोरेट और कांट्रैक्चुअल झगड़ों का निपटारा किया। वह मध्यस्थता पर सहित दो किताबें लिख चुके हैं।

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