दुधवा के बाघों को पसंद आ रहा नेपाल
गौरीफंटा
पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके…. यह पंक्तियां दुधवा के बाघों पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं दुधवा नेशनल पार्क के वन्यजीव अधिकारी कागजों में बाघों की संख्या दिन-प्रतिदिन चाहे जितनी बढ़ती हुई दिखाएं लेकिन वास्तव में दुधवा नेशनल पार्क के बाघों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है! वह नेपाल के बर्दिया नेशनल पार्क जैसे नेपाल के अन्य पार्कों में विस्थापित होते नजर आ रहे हैं इसके ताजा आंकड़े बर्दिया नेशनल पार्क और शुक्ला फांटा पार्क की गणना में देखे जा रहे हैं।
आपको बता दें कि दुधवा नेशनल पार्क से भागे हुए चंदू बाघ को वापस लाने में दुधवा प्रशासन जिस तरह नाकाम हुआ है। ऐसा उदाहरण यह पहला नहीं इससे पहले भी दुधवा के गंडे , बाघ आदि वन्य जीव नेपाल का रूख कर चुके हैं। यह कुछ मामले जगजाहिर हुए हैं जिससे लोगों को पता चला है। ऐसे ना जाने कितने मामले होंगे जिनकी चर्चा ही नहीं होती।
भारत के नेशनल पार्कों में चल रहे प्रोजेक्ट टाइगरों की असफलता की कहानी जगजाहिर हो चुकी है। प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल राजस्थान के सरिस्का नेशनल पार्क से बाघ गायब हो चुके हैं। जबकि नेपाल के नेशनल पार्को में बाघों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। नेपाल के राष्ट्रीय पार्कों में बाघों की संख्या 235 बताई गई है। इसमें चितवन नेशनल पार्क में 93,बर्दिया नेशनल पार्क में 87 बाँके नेशनल पार्क में 21 और शुक्ल फांटा नेशनल पार्क में में बाघों की संख्या 16 बतायी गई हैं। इस तरह नेपाल मेंबाघों की संख्या बढ़ रही है। और भारत में तमाम इंतजाम होने के बाद भी बाघों की संख्या में आशातीत बढोत्तरी नहीं हो रही है । यह अपने आप में ही प्रश्नचिन्ह है।ऐसी दशा मेंअगर सिर्फ दुधवा नेशनल पार्क की बात की जाए तो पहले क़भी यहां बाघों की संख्या बहुत थी और इसी का प्रिंण था कि जंगल और जंगल के बाहर अक्सर बाघ दिखाई देते थे। और अब बाघ के दर्शन दुर्लभ हो चले हैं।अब जंगल के अंदर भी कहीं भूले भटके बाघ दिख जाए तो लोग आश्चर्य मानते हैं।
दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विली अर्जन सिंह जब जीवित थे तो हमेशा कहा करते थे कि दुधवा में बाघों की संख्या तीन दर्जन के आसपास ही है।सरकारी अधिकारी अपनी नाकामयाबी छिपाने के लिए दुष्व में बाघों की संख्या बढ़ाचढ़ाकर बताते हैं।
उनकी बात इस हिसाब से भी सही लगती है कि कभी अक्सर दिखायी देने वाले बाघ अब कभी कभार ही दिखाई देते हैं। यह कहा जय तो गलत नहीं होगा कि दुधवा में अब बाघ के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं।
अस्सी के दशक में दुधवा के समीपवर्ती इलाक़ों में बाघों द्वारा आये दिन किसानों पर हमला कर उनको मार देने की घटनाएं बहुतायत में होती थीं। पूरा इलाका बाघों की दहशत के साये में रहने को विवश था।इसके अलावा दुधवा के बाघों द्वारा की गई आत्महत्त्याओं की गूंज विधानसभा में भी हुई थी।उसके बाद इलाके में धीरे धीरे बाघों की चहलक़दमी में भी खासी कमी आई।जो अभीतक बदस्तूर जारी है।बाघों के दर्शन दुर्लभ ही बने हुए हैं।
अगर सिर्फ दुधवा नेशनल पार्क की बात की जाए तो पहले क़भी यहां बाघों की संख्या बहुत थी और इसी का प्रमाण था कि जंगल और जंगल के बाहर अक्सर बाघ दिखाई देते थे। और अब बाघ के दर्शन दुर्लभ हो चले हैं।अब जंगल के अंदर भी कहीं भूले भटके बाघ दिख जाए तो लोग आश्चर्य मानते हैं।