पानीदार समाज ही आज पानी के संकट से जूझ रहा, यह सोचने का विषय – के एस तिवारी
अंकित तिवारी
भोपाल. मप्र जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान (वाल्मी) द्वारा विश्व जल दिवस के उपलक्ष्य में जल साक्षरता संगोष्ठी का आयोजन वन- प्रक्षेत्र में किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता भू-जलविद् एवं सलाहकार राजीव गांधी सेड मिशन कृष्ण गोपाल व्यास, डॉ.एनसी घोष वैज्ञानिक, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान आईआईटी रुड़की एवं बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के लोकपाल डॉ.केएस तिवारी रहे, कार्यक्रम की अध्यक्षता संचालक मप्र पंचायती राज एवं वाल्मी उर्मिला शुक्ला ने की। वक्ता डॉ के एस तिवारी ने कहा कि
प्राचीन परम्पराओं एवं पद्धतियों के आधार पर ही हम जल को बचा सकते हैं आज देश की 90 करोड़ आबादी पानी की कमी से जूझ रही है और पानी का एक ही विकल्प है वह है पानी। उन्होंने कहा कि हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने जांच परखने के बाद प्रबंधन की तकनीकों को विकसित किया और दुनिया का ऐसा कोई धर्म नहीं है जहां पानी की पूजा नहीं होती हो। लेकिन आज विकास की अंधी दौड़ में हम अपने कुआं- बावड़ी को भूल गए हैं। एक समय ऐसा था जब जबलपुर में 52 तालाब एवं यूपी के बीबीपुर गांव में 60 कुआं,9 तालाब हुआ करतें थे। आज गांव के गांव पानी की उपलब्धता ना होने के कारण पलायन कर रहे हैं यह चिंता का विषय है।
प्रसिद्ध भू-जलविद् डॉ कृष्ण गोपाल व्यास ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे पास जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त पानी हैं,पानी की उपलब्धता ज्यों की त्यों है बस पानी के ठिकाने बदल गये है कहीं बर्फ के रुप में तो कहीं अन्य रूप में ।हम नदी को समझे बगैर उसे जिंदा नहीं रख सकते हैं। वर्तमान में उन नवाचारों पर विचार करें जिससे हम जल की कमियों को दूर कर सकें। आंकड़ों से बाहर निकल कर बुद्धि का इस्तेमाल भी करना चाहिए। पतों पर पानी डालने से पेड़ हरे नहीं होंगे। उन्होंने जबलपुर के गौड़ जनजातियों द्वारा विकसित तालाबों का उदाहरण देते हुए कहा कि पांच सौ वर्षों पूर्व से ही उन्हें जल संरक्षण का ज्ञान था जिसके फलस्वरूप उन्होंने तालाब- विस्तार की विशेष पद्धति प्रस्तुत की। वर्तमान समय में शैक्षणिक ज्ञान के साथ परम्पराओं का अध्ययन करना चाहिए। डॉ.एनसी घोष ने जल संरक्षण के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में नेहरू युवा केंद्र के जिला युवा समन्वयक डॉ सुरेंद्र शुक्ला सहित विभिन्न महाविद्यालयों के 250 से अधिक युवा उपस्थित रहे।
जल संरक्षण की विधियों से हुए रूबरू
संगोष्ठी में सहभागिता करने वाले सभी प्रतिभागियों को वाल्मी द्वारा किए गए नवाचार एवं जल संरक्षण की विधियां जैसे नैनों वाटर सेड,रुफ वाटर हार्वेस्टिंग, जैविक बांगड़,ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन,सघन वनीकरण से अवगत कराया गया।
मेरा खेत- मेरा पानी
गांवों में जल संरक्षण एवं प्राचीन पद्धतियों के साथ नैनों वाटर शेड प्रक्रिया में माध्यम से जल संग्रहण कर छोटे- छोटे जल स्त्रोत विकसित कर किसान ‘मेरा खेत मेरा पानी’ अपनी जमीन पर जल का संग्रहण करें। संचालन डॉ.रविन्द्र ठाकुर एवं आभार प्रो.विवेक भट्ट ने व्यक्त किया। इस अवसर पर प्रश्नोत्तरी भी आयोजित हुई।