फ़्रांस के प्रमुख अखबार का दावा – राफेल डील के बाद अनिल अम्बानी की कंपनी को 14.37 करोड़ यूरो का टैक्स हुआ था माफ़
तारिक आज़मी
राफेल डील पर चल रहा विवाद थमने का नाम नही ले रहा है। जहा एक तरफ भारत में कांग्रेस सहित सभी विपक्ष सरकार पर इस सौदे में गड़बड़ी का आरोप लगातार लगया जा रहा है वही फ़्रांस के एक अख़बार ल मोंदे (Le-Monde) ने इस मामले में एक गंभीर खबर प्रकाशित किया है। बताते चले कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद की घोषणा की थी। कांग्रेस इस सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाती रही है। विपक्षी दल ने आरोप लगाया है कि सरकार 1,670 करोड़ रुपये की दर से एक विमान खरीद रही है जबकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ की दर से सौदा पक्का किया था।
Breaking : French authorities waived taxes worth 143,7 million euros for Anil Ambani's French-based company just a few months after PM Modi announced his plans to buy 36 Rafale fighter jets from Dassault. Our story with @annemichel_LMhttps://t.co/Tpw50cJg0c
— julien bouissou (@jubouissou) April 13, 2019
अब फ्रांस के एक प्रमुख समाचार पत्र ल मोंदे (Le-Monde) ने शनिवार को एक खबर प्रकाशित किया है। खबर के मुताबिक रिलायंस कम्युनिकेशन की संबद्धी अनुषंगी कंपनी फ्रांस में पंजीकृत है और दूरसंचार क्षेत्र में काम करती है। अखबार ने कहा है कि फ्रांस के अधिकारियों ने रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस की जांच की और पाया कि 2007-10 के बीच उसे छह करोड़ यूरो का कर देना था। हालांकि मामले को सुलटाने के लिए रिलायंस ने 76 लाख यूरो की पेशकश की लेकिन फ्रांस के अधिकारियों ने राशि स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
अख़बार का दावा है कि अधिकारियों ने 2010-12 की अवधि के लिए भी जांच की और कर के रूप में 9.1 करोड़ यूरो के भुगतान का निर्देश दिया। खबर के मुताबिक अप्रैल, 2015 तक रिलायंस को फ्रांस के अधिकारियों को 15.1 करोड़ यूरो का कर देना था। हालांकि पेरिस में मोदी द्वारा राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद फ्रांस अधिकारियों ने अंबानी की कंपनी की 73 लाख यूरो की पेशकश स्वीकार कर ली।
वही दूसरी तरफ रिलायंस कम्युनिकेशन ने इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया में किसी भी तरह के गलत काम से इनकार किया है। कंपनी ने कहा है कि कर विवाद को कानूनी ढांचे के तहत निपटाया गया। उन्होंने कहा कि फ्रांस में काम करने वाली सभी कंपनियों के लिए इस तरह का तंत्र उपलब्ध है। रिलायंस कम्युनिकेशन्स के एक प्रवक्ता ने बताया कि कर की मांग पूरी तरह अमान्य और गैर-कानूनी थी। कंपनी ने किसी तरह के पक्षपात या सुलह से किसी तरह के फायदे की बात से इनकार किया।
वही दूसरी तरफ भारत के रक्षा मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कर मामले और राफेल के मुद्दे में किसी तरह का संबंध स्थापित करना पूरी तरह अनुचित, निहित उद्देश्य से प्रेरित और गलत जानकारी देने की कोशिश है। मंत्रालय ने यहां एक बयान जारी कर कहा है, हम ऐसी खबरें देख रहे हैं, जिसमें एक निजी कंपनी को कर में दी गयी छूट एवं भारत सरकार द्वारा राफेल लड़ाकू विमान की खरीद के बीच अनुमान के आधार पर संबंध स्थापित किया जा रहा है। ना तो कर की अवधि और ना ही रियायत के विषय का वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई राफेल की खरीद से दूर-दूर तक कोई लेना-देना है।