वाराणसी –सपा के तेज़ बहादुर ने कहा चौकीदार से मुकाबला करने असली चौकीदार आया है, जाने कैसे उतनी आसन तो नही रहेगी इस बार मोदी की राह

तारिक आज़मी

वाराणसी. लगता है कि वाराणसी लोकसभा से विपक्ष किसी तरीके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वाक्ओवर देने के मूड में नहीं है। शायद यही कारण था कि आज सपा ने वाराणसी लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी में बदलाव कर दिया और शालिनी यादव के स्थान पर तेज बहादुर को टिकट दिया है। बताते चले कि कांग्रेस छोड़ सपा का दामन थामने वाली शालिनी यादव को वाराणसी लोकसभा सीट से सपा ने टिकट दिया था। शालिनी यादव कांग्रेस के पूर्व सांसद और राज्यसभा के पूर्व उपसभापति श्यामलाल यादव की पुत्रवधू हैं। आज उनका नामांकन जुलूस भी निकला और धूमधाम जोर शोर के साथ जिला मुख्यालय नामांकन स्थल पंहुचा। यही नही शालिनी यादव ने नामांकन भी अपना किया है।

नाटकीय मोड़ से दो चार होते हुवे काशी की राजनीत में सुबह एक और नाटकीय मोड़ आया था जब शालिनी यादव के टिकट को काट कर सपा ने तेजबहादुर को टिकट दिया था। तेजबहादुर के साथ पूर्व राज्यमंत्री और अखिलेश यादव के काफी करीबी माने जाने वाले मनोज राय जिला मुख्यालय पहुचे और तेजबहादुर का सिम्बल जमा करवाया। इसके बाद शालिनी यादव का जुलूस नामांकन स्थल पहुचा और शालिनी यादव ने भी नामांकन किया है। इस नामांकन के पीछे एक कारण ये भी बताया जा रहा है कि सपा नेताओ को शंका है कि कही किसी एक प्रत्याशी का नामांकन रद्द हुआ तो दूसरा प्रत्याशी मुकाबिल रहेगे। इस एक प्रत्याशी के सपा का तात्पर्य तेज बहादुर यादव से है। सपा को शंका है कि कही तेज बहादुर यादव के नामांकन को चुनाव आयोग रद्द न कर दे।

बताते चले कि तेज बहादुर यादव बीएसऍफ़ के बर्खास्त सिपाही, जिसे सैनिकों को दिए जाने वाले भोजन की क्वालिटी से जुड़ा वीडियो जारी करने के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। गौरतलब है कि तेज बहादुर यादव ने बीएसएफ में रहते हुए खराब खाने की शिकायत की थी, जिसके बाद उन पर कार्रवाई की गई और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। सपा द्वारा तेज बहादुर को टिकट देने के पीछे मंशा स्पष्ट है। तेज बहादुर और मोदी के बीच सीधा मुकाबला वाराणसी लोकसभा सीट से गठबंधन करना चाहता था। तेज बहादुर यादव को मिलने वाले मतों को दरकिनार कर तेज बहादुर यादव के द्वारा चुनाव को नई दिशा दिया जा सकता है।

मतों के दृष्टिकोण से देखे तो यह गठबंधन के लिए एक लाभकारी फैसला हो सकता है। वाराणसी लोकसभा सीट पर मतों को जातिगत आधार पर देखे तो यहाँ दो वर्ग गेम चेंजर बन सकता है एक ब्राह्मण और दूसरा वैश्य समाज। जातिगत समीकरण की बात की जाए तो वाराणसी में बनिया मतदाता करीब 3।25 लाख हैं जो कि बीजेपी के कोर वोटर हैं। अगर नोटबंदी और जीएसटी के बाद उपजे गुस्से को भुनाने में कामयाबी हासिल होती है तो यह वोट भाजपा के ओर से खिसक सकता है। वहीं ब्राह्मण मतदाता की संख्या ढाई लाख के करीब है। माना जाता है कि विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने में जिनके घर सबसे ज्यादा हैं उनमें ब्राह्मण ही हैं और एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर भी नाराजगी है। इस मतों पर भी विपक्ष की पैनी नज़र है।

दूसरा वर्ग डेढ़ लाख के करीब यादव समुदाय है। विगत कई चुनावों में देखा गया है कि वाराणसी से यादव वोट भाजपा के खाते में गया है। मगर 2017 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद ये वोटर भाजपा से नाराज़ चल रहे है। इस नाराज़गी को भुनाने और अपने कोर वोटरों को वापस अपने पास लाने में सपा प्रयासरत है। तेजबहादुर यादव इन मतों को अपने तरफ झुकाने में कामयाब हो सकते है। वही दूसरा बड़ा वर्ग है मुस्लिम। वैसे तो वाराणसी के मुस्लिम किसी दल को समर्थित नही रहे है मगर लगभग दो दशक पूर्व तक ये वोट सपा को जाते रहे है। अब स्थिति ये है कि लगभग तीन लाख की संख्या में मुस्लिम मतदाता उस प्रत्याशी को वोट करते है जो भाजपा को हरा रहा होता है। वही दलित मतों में 80 हज़ार की गिनती है मगर पोलिंग लगभग 40 हज़ार के करीब की होती है।

अब अगर तीन मतों को एक पाले में खड़ा करे तो डेढ़ लाख यादव, तीन लाख मुस्लिम और 80 हज़ार दलित मतों को मिला ले तो लगभग ५ लाख मतों की संख्या ये होती है। तेज बहादुर यादव को बतौर प्रत्याशी उतार कर सपा इन पांच लाख मतों पर दावेदारी करेगी। वही दूसरी तरफ अगर नाराज़ ब्राह्मण और बनिया वर्ग का समर्थन हासिल हो गया तो मोदी की राह वाराणसी लोकसभा से आसान नही होगी। क्योकि पिछले लोकसभा चुनावों में जिन राजभर समाज के मतों को भाजपा अपनी झोली में भरने में कामयाब रही है वही राजभर समाज में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर ने अपना प्रत्याशी उतार कर राजभर मतों पर अपना एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास किया है।वैसे तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी वाराणसी के कुल 4 लाख पिछडो की हमदर्दी अपने साथ होने की बात कही है। मगर पिछले मुकाबलों पर नज़र डाले तो भारतीय समाज पार्टी पिछले विधानसभा चुनावों को छोड़ कर कोई चुनाव तो नही जीत सकी है मगर किसी भी विधानसभा पर 20 हज़ार से कम वोट भी नही पाई है।

अब देखना होगा कि चुनावी समीकरण क्या कागजों पर ही सीमित रहता है अथवा सपा उसको मतों में तब्दील कर लेगी। अगर ये चुनावी समीकरण मतों में तब्दील हुवे तो वास्तव में प्रधान मंत्री मोदी की राह वाराणसी से इस बार उतनी आसन नही होगी।

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