तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – पर्दे पर सियासत, शिवसेना और हिन्दू सेना की मांग, भारत में भी बैन हो बुर्का
तारिक आज़मी.
सियासत करने के लिए किसी लफ्ज़ की ज़रूरत नही होती है। पहले तीन तलाक जो शरियत में पहले से ही बिदत (प्रतिबंधित) थी पर सियासत उसके बाद पीआईएल के तहत महिलाओ को मस्जिद में नमाज़ पढने की मांग जबकि कही से मस्जिद में महिलाओ का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं है के बाद अब श्री लंका के तर्ज पर भारत में भी बुर्के पर बैन करने की मांग हिंदूवादी संगठनी ने उठानी शुरू कर दिया है। भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने तो अपने मुखपत्र सामना में विशेष रूप से सम्पादकीय में इसका मांग को उठाया है और श्री लंका सरकार द्वारा बुर्के पर प्रतिबन्ध का स्वागत किया है। बताते चले कि श्री श्री लंका सरकार ने पिछले पखवाड़े हुवे आतंकी हमलो के बाद सार्वजनिक स्थल पर बुर्के पर बैन लगा दिया है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में बुर्के पर बैन की मांग करते हुए संपादकीय लिखा गया है। संपादकीय में ‘प्रधानमंत्री मोदी से सवाल : रावण की लंका में हुआ, राम की अयोध्या में कब होगा’ शीर्षक के साथ लिखा गया है। श्रीलंका में आतंकी हमले के बाद वहां की सरकार में बुर्के पर पाबंदी लगा दी है। इस पर शिवसेना ने फ्रांस, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए भारत में भी बुर्के और उस तरह के नकाब पर पाबंदी को राष्ट्रहित में बताया है। संपादकीय में दावा किया गया है कि अधिकांश मुस्लिम महिलाएं भी बुर्के के खिलाफ हैं।
संपादकीय में लिखा गया है, ‘सरकारी आंकड़ें जो भी हो, फिर भी कोलंबो के बम विस्फोट में 500 से अधिक मासूमों की बलि चढ़ी है। लिट्टे के आतंक से मुक्त हुआ यह देश अब इस्लामी आतंकवाद की बलि चढ़ा है। हिंदुस्तान, विशेषकर इसका जम्मू-कश्मीर प्रांत उसी इस्लामी आतंकवाद से त्रस्त है। सवाल इतना नही है कि श्रीलंका, फ्रांस, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन जैसे देश जिस तरह सख्त कदम उठाते हैं, उसे तरह के कदम हम कब उठाने वाले हैं?’
साथ ही कहा गया है कि भीषण बम विस्फोट के बाद श्रीलंका में बुर्का और नकाब सहित चेहरा ढकने वाली हर चीज पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह फैसला लिया गया है। हम इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं और पीएम मोदी को भी श्रीलंका के राष्ट्रपति के कदमों पर कदम रखते हुए हिन्दुस्तान में भी ‘बुर्का और उसी तरह के नकाब’ बंदी करें, ऐसी मांग राष्ट्रहित के लिए कर रहे हैं।
शिवसेना के अलावा हाशिए पर पड़े दक्षिणपंथी समूह हिन्दू सेना ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर मांग की है कि आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए श्रीलंका की तर्ज पर सार्वजनिक स्थानों और सरकारी तथा निजी संस्थानों में बुर्का, नकाब आदि पर पूर्ण रोक लगायी जाए। हिन्दू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने गृह सचिव राजीव गौबा को लिखे पत्र में कहा है कि श्रीलंका में पिछले दिनों खुफिया नाकामी के कारण आतंकवादी हमले हुए जिनमें 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
खत में गुजारिश की गई है कि भारत में इस तरह के हमलों को रोकने के लिए सामरिक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर तुरंत नीतियां तैयार की जाए। उन्होंने मांग की कि सभी सार्वजनिक स्थानों तथा सरकारी और निजी संस्थानों में बुर्का और नकाब सहित पूरा चेहरा ढंकने वाली चीजों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। गुप्ता ने कहा कि चेहरा ढंक कर आतंकवादी सीसीटीवी कैमरों और अन्य निगरानी उपायों से अपनी पहचान छिपा सकते हैं।
क्या कहता है इस्लाम
यहाँ आपको हम ये भी बताते चले कि पर्दा इस्लाम में अवश्य है, परन्तु इसके लिए कोई ऐसा प्रावधान धर्म में नही है कि बुर्का पहनना आवश्यक ही है। देश में काफी ऐसी मुस्लिम महिलाये है जो नकाब अथवा हिजाब अथवा बुर्का नही पहनती है। मगर हिंदूवादी संगठनो के द्वारा इस प्रथा पर लगातार उंगलिया उठाई जाती है। नकाब अथवा बुर्का प्रथा से महिलाओ के चेहरा ढकने की प्रथा पर्दा प्रथा के तहत ही आती है। यदि चेहरा ढकने की प्रथा पर ही प्रतिबन्ध होना है तो फिर भारत में कई ऐसी बिरादरी है जहा घर की बहुओ को लम्बे घुघट से चेहरे को ढकने की प्रथा है।
इसमें उत्तर प्रदेश में यादव समुदाय से लेकर बिहार और देश के कई अन्य हिस्से में सवर्ण भी इस प्रथा का पालन करते है। जहा घर की बहु चेहरे को घूँघट से ढक कर रखती है और उनका चेहरा नहीं दिखाई देता है। ये सिर्फ एक प्रथा है जिसको महिलाये स्वेच्छा से ग्रहण करती है। ऐसा नही है कि इस प्रथा को जोर ज़बरदस्ती से उनसे करवाया जाता है। मैं यहाँ अपवादों की बात नही कर रहा हु मगर अधिकतर के प्रकरण में ऐसा ही है कि महिलाए स्वेच्छा से इस प्रथा को अपनाती है। ऐसे ही नकाब प्रथा पर भी है। नकाब महिलाओं ने स्वेच्छा से पहनती है। फैशन के इस दौर में नकाब का भी एक फैशन है और विभिन्न फैशन के नकाब मार्किट में उपलब्ध है। इसके लिए महिलाओं को जोर ज़बरदस्ती करके उनको नकाब नही पहनवाया जाता है। मगर दक्षिणपंथी विचारधारा के हाशिये पर केवल मुस्लिम समाज रहता है।
खैर लोकतान्त्रिक देश में बोलने और मांग करने की आज़ादी सभी को है। हम देश में लागू होने वाले हर कानून को सम्मान देते थे, देते है और देते रहेगे। अगर देश की सरकार इस सम्बन्ध में अपने आदेश जारी करती है तो हम खुद उसके सम्मान में नकाब को प्रतिबंधित कर देंगे। मगर बात यहाँ किसी धर्म विशेष को टारगेट करके उसके धार्मिक मौलिक अधिकारी को छिनने की नही होनी चाहिये।