परम धर्म पर्चा 21 – जमकर मोदी मोदी कर रही मीडिया पर बरसे स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद, कहा ये ‘मोदी-मैजिक’ है या ‘मोदियाबिन्द’ ?

तारिक आज़मी

वाराणसी. मंदिर बचाओ आन्दोलन के अगुआ स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद सरस्वती ने आज एक हिदी दैनिक अखबार में प्रकाशित खबर के बाद मोदी मोदी कर रही मीडिया पर जमकर बरसे. परम धर्म पर्चा 21 के माध्यम से जारी प्रेस नोट में तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि मोड़ो मोदी कर रही मीडिया अपने असली कार्य भूलती जा रही है. उन्होंने प्रातः कालीन अखबार का हवाला देते हुवे कहा कि आज जो अखबार अपने को शीर्ष कहता है उसके वाराणसी संस्करण के पृष्ठ संख्या 16 पर प्रकाशित ‘मुद्दों पर भारी मोदी-मैजिक’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार को देखा। जिसका शीर्षक पूरे लेख का सार है। सिद्ध यह करने की चाह है कि मोदी के प्रचार के आगे वाराणसी क्षेत्र के मुद्दे गायब हो गये हैं और अब वे मुद्दे हैं ही नहीं। मैं कहना चाहता हु उस लेखक से कि यह मोदी मैजिक नही बल्कि मोतियाबिंद है शायद जो हकीकत नही दिखा रहा है.

उन्होंने कहा है कि इसी लेख का एक अंश है जिसमें कहा गया है-‘श्रीकाशी विश्वनाथ कारीडोर का विरोध हुआ गायब’। अब प्रश्न यह है कि क्या अखबार मुद्दे बना या बिगाड़ सकते हैं?  क्या उन्हें यह करने का अधिकार है ? क्या वे ऐसा कर सकते हैं ? और क्या उनका ऐसा करना उचित है ? ये प्रश्न इसलिये मन में उठ रहे हैं कि एक अग्रगामी अखबार प्रमुखता से यह सब लिख रहा है। जब विश्वनाथ कारीडोर में तोड़े गये मन्दिरों और मूर्तियों को आधार बनाकर वाराणसी सहित देश के अनेक भागों से सन्त-महन्त मोदी जी के इतना विरोध में आ गये हों कि उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने के लिये नामांकन कर रहे हों तब यह कहना कि ‘श्रीकाशी विश्वनाथ कारीडोर का विरोध हुआ गायब’ कहां तक उचित है ?

उन्होंने कहा कि मीडिया को सूक्ष्मेक्षिका सम्पन्न माना जाता है। मोदी जी के विरुद्ध विगत लगभग एक वर्ष से भी अधिक से मन्दिर बचाओ आन्दोलन चल रहा है। तो क्या यह माना जा सकता है कि फिर भी वे इतनी बड़ी बात की निरन्तर अनदेखी करते आ रहे हैं ? शायद नहीं, क्योंकि वे स्वीकार कर रहे हैं कि मोदी के प्रचार के आगे सब फीका पड़ जा रहा। इसे अखबारों ने ‘मोदी मैजिक’ का नाम दिया है। पर मोदी जी का प्रचार तो मीडिया ही कर रही है। मीडिया यहां तक मोदी जी के प्रचार मे लग गई है कि उसे उनके किये के सिवा कोई और घटना दिखाई ही नहीं देती। क्या यही ‘मोदी-मैजिक’ है ? यदि यही ‘मोदी-मैजिक’ है तो इसे ‘मोदी-मैजिक’ न कहकर मोदियाबिन्द कहना अधिक उपयुक्त होगा। क्योंकि मैजिक तो जादूगर की कला का नाम है। वह इस तरह से अपने करतब करता है कि देखने वाले उसके रहस्यों को देख नहीं पाते हैं। इसमें कुछ कला-कौशल और अभ्यास होता है जिसके लिये ‘मैजीशियन ’को कई वर्षो साधना करनी पड़ती है। इसलिये मैजिक जो भी हो हमारे समाज में आदरणीय हो जाता है।

उन्होंने कहा कि इसके विपरीत ‘मोतियाबिन्द’ एक बीमारी है जो किसी की आंखों में हो जाये तो उस व्यक्ति को साफ-साफ दिखना बन्द हो जाता है। वह कुछ का कुछ देखने लगता है। मोतियाबिन्द ही मोदी जी के सम्बन्ध में ‘मोदियाबिन्द’ हो गया है। हममें से बहुतों को आज यह बीमारी लग चुकी है। हमें चीजें सामने होने पर भी दिखाई नहीं दे रही हैं। इसी स्थिति को कुछ लोगों ने ‘अन्धभक्ति’ तो कुछ लोगों ने ‘भक्त का चश्मा’ नाम भी दिया है।  असल में यह बड़ी दयनीय स्थिति है जब सामने ही गड़बड़ी हो फिर भी न दिखे। तो दयनीय और शोचनीय स्थिति तो बन ही जाती है।

उन्होंने उदहारण देते हुवे कहा कि दूर न जाइये। काशी को ही लीजिये। यहां सैकड़ों मन्दिर तोड़ दिये गये। उनके अन्दर की हजारों मूर्तियों को तोड़ फोड़ कर मलबे में बदल दिया गया। फिर भी ‘मोदियाबिन्द’ हुये लोगों को कोई मन्दिर टूटा हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। वे बार-बार सोशल मीडिया पर हमारी आलोचना करते हुये हमें झूठा साबित करने की चेष्टा कर रहे थे। हमने अनेक प्रमाण दिये और उन्हें समझाने की कोशिश की परन्तु निराशा ही मिली। वे समझने को तैयार नहीं दिखाई देते।  अन्ततः थक हार कर हमें घोषणा करनी पड़ी कि उनके होने के कागजी प्रमाण हम देंगे। उन प्रमाणों को देखकर जो व्यक्ति उन मन्दिरों और मूर्तियों को दिखा देगा उसे हम ‘एक करोड़ रूपये का नकद ईनाम’ देंगे। जैसे ही हमने यह बात कही सबको सांप सूंघ गया और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। आज कई दिन बीत जाने के बाद भी कोई एक व्यक्ति ‘एक करोड़ रूपये का इनाम’ लेने के लिये अभी तक सामने नहीं आया है।

उन्होंने कहा कि आयेगा भी कैसे ? जब वे मन्दिर अब उनकी जगहों पर हैं ही नहीं। क्या दिखायेगा आकर। अब तथाकथित ‘भक्त’ हमें सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि – अरे स्वामी जी ! दो चार मन्दिर टूट भी गये तो क्या? इतना बड़ा काम हो रहा है तो कुछ तो टूटेगा ही। अब भला सर्जिकल स्ट्राइक करने वालों को यह कौन समझाये कि सर्जिकल कट केवल उतनी ही दूर लगाया जाता है जितने के सुधार की जरूरत है। यदि बड़ा काम हो रहा है तो उसका स्तर भी बड़ा होना चाहिये और किसी को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिये। पर यह तो वे कुतर्क हैं जो सदा से मोदियाबिन्द के शिकार ‘भक्तों’ की तरफ से दिये जाते रहे हैं। ‘भक्तों’ को कुतर्क करने का बहुत बड़ा संस्कार मिला हुआ है। इसलिये इससे हम लोगों को कोई आश्चर्य भी नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि आश्चर्य मात्र इस बात का है कि मीडिया भी ‘मोदियाबिन्द’ की बीमारी से ग्रसित नजर आ रही है। काशी में गंगा जी की अविरल निर्मल धारा के बारे में नरेन्द्र मोदी की नाकामी और विश्वनाथ कोरीडोर के नाम पर तोड़े गये मन्दिरों और मूर्तियों का इतना सुस्पष्ट विरोध भी उन्हें दिखाई नहीं दे रहा। जिस घटना से देष के सौ करोड़ सनातनधर्मी देश की सनातन धर्म विरोधी हिन्दू राजनीति के तिरस्कार के लिये कमर कसने को बाध्य हो रहे हों वह घटना छोटी या परिदृश्य से गायब कैसे हो सकती है? और उसके लिये कोई मीडिया ‘विरोध गायब’ का तमगा कैसे लगा सकता है? पर यह हो रहा है और धड़ल्ले से हो रहा है। ‘मोदी-मैजिक’ यही है कि जो मुद्दा जमीन पर दौड़ रहा हो उसे अखबार या खबरिया चैनल से गायब करवा दो। लेकिन यह बताइये कि जमीन पर जो चीज मौजूद होगी वह अखबार में न भी रहे, गायब भी करा दी जाये तो वह मुद्दा तो बना ही रहता है।

उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ कारीडोर के नाम पर तोड़े गये मन्दिरों और मूर्तियों का मुद्दा आज अखबारों से गायब कराने की चाल भले चली जा रही हो और अखबार इस काम को मोदी मैजिक भले कह रहे हों पर यह इतना बड़ा मुद्दा है कि आने वाले दिनों में इस पर किताबें लिखी जायेंगी और इतिहास कार अपने लेखों में इस घटना का जिक्र करते दिखाई देंगे। आखिर यह घटना औरंगजेब द्वारा तोडे गये मन्दिरों की घटना से किसी प्रकार छोटी नहीं है।

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