मुक़द्दस रमजान का पहला रोज़ा आज, जाने क्या है रमजान की फ़ज़ीलत

फारूख हुसैन

आसमान में चांद के दीदार होते ही मानों सबके चेहरे पर खुशी नजर आने लगी, और नज़र भी क्यों न आये आखिर पूरे साल में एक बार ही तो इतना पाक और मुकद्दस रमजान का महीना आता है. यह महीना ऐसा होता है की खुदा की बनायी हुयी हर एक मखलूक इस पाक महीने में खुदा की इबादत करना चाहता है. क्योकि अगले वर्ष पता नहीं उसको यह पाक मुकद्दस रमजान का महीना मिल पाये या नहीं।

जी हां हर वर्ष की तरह इस बार भी रमजान शुरू होते ही बाजारों में रौनक बढनी शुरू हो गयी. बाजारों में जगह जगह, अनेक प्रकार की कचरी (एक प्रकार की नमकीन जो तलकर खायी जाती है) खजूर, सिवाइयां, लच्छे सहित विभिन्न प्रकार के रमजान में खायी जाने वाले खाद्य सामग्री की दुकाने लगनी शुरू हो गयी. जिस पर आज रोजा रखने वाले ने जमकर खरीदारी की जिससे उनको रोजा रखने के बाद किसी प्रकार की कोई परेशानी न उठानी पड़े।

संपन्न हो रहा है आज पहला रोजा

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 9वां महीना रमजान का होता है। रमजान के पाक (पवित्र) महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और उसके बाद रमजान के आखियी दिन चाँद देखकर ईद-उल-फित्र का त्योहार मनाते हैं। रामजान का पाक महीना चांद के दिखाई देने के चलते ही सात तारीख यानी की मंगलवार को पहला रोजा शुरू हुआ है और सोमवार को पहली तराबीह पढ़ी गयी।

मुकद्दस रमजान

इस्लाम धर्म के अनुसार यह माना गया है कि इसी पाक महीने में ही कुरआन नाज़िल (अवतरित) हुई थी और यही कारण है कि रमजान के महीने को पाक और मुकद्दस महीना कहा गया है. इस माह में पूरे रोजे रखना जरूरी होता है और इस पाक महीने यानी की रमजान का महीने में सभी मुसलमानों को अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। बता दें कि यह महीना सब्र का महीना माना जाता है। इसका वर्णन इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरआन में किया गया है। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि रमजान के महीन में रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करके इंसान खुदा के करीब जाता है। ऐसा करने से इंसान खुदा से अपने किए हुए गुनाहों के लिए तौबा (माफी) मांग सकता है। रोजे के दिन रोजादार सुबह सहरी (सूर्योदय से पूर्व का समय, जिसके बाद अन्न,जल प्रतिबंधित होता है) करने के बाद से पूरे दिन भूखे-प्यासे रहते हैं।  वहीं शाम के वक्त सूर्योदय के बाद रोजदार इफ्तारी (कुछ खा पीकर रोजा खोलते हैं) करते हैं। वैसे इसमें इफ्तारी के समय मुस्लिम धर्म में यह मत प्रचलित हैं कि रोजा खजूर खाकर हो खोला जाये, ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस्लामिक ग्रन्थ कुरआन के अनुसार अल्लाह के एक फरिश्ता (दूत) को अपना रोजा खजूर से तोडऩे की बात लिखी गई है। इसी के मुताबिक सभी रोजेदार अपना रोजा केवल खजूर खाकर  इफ्तार मनाते हैं और विज्ञान की माने तो खूजर का सेवन करने से लीवर, पेट में होने वाली परेशानी व कमजोरी और कई अन्य बीमारियों को ठीक करता है। विज्ञान बताता है कि खजूर एक 100% डाईट है, इसलिए रोजा रखने वाला हर व्यक्ति इसे खाता है।

तापमान की बढ़त के चलते कठिन हो गया है रोज़ा

वैसे देखा जाये तो इस बार रोजदारों को काफी परेशानी भी उठानी पड़ सकती है. क्योंकि जिस तरह से इस बार मौसम में काफी बदलाव नजर आ रहा है और बढ़ता तापमान, गर्मी और तेज चिलचिलाती धूप रोजदारों के लिये परेशानी का सबब बन सकती है। लेकिन इसके लिये भी इस्लाम धर्म में यह मान्यता है कि रमजान के गर्मियों में पडऩे पर खास महत्व भी हो जाता है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि सूरज की तपिस आग और गर्मी में सभी रोजेदारों के गुनाह (पाप) माफ हो जाते हैं। इसके साथ ही मन साफ हो जाता है और उनके  दिलों-दिमाग से सभी बुरे विचार खत्म हो जाते हैं और पूरे महीने रोजा रखकर खुदा की इबादत करने वाला रमजान का पाक महीना ईद-उल-फितर का त्यौहार यानि ईद पर मुकम्मल (समाप्त) हो जाते है साथ ही ईद के दिन मुस्लिम धर्म के अनुसार यह महीने का पहला दिन भी बोला जाता है। इस दिन सारे रोजेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों में जाते हैं और इस दिन वह रमजान के आखिरी दिन नमाज पढ़कर अल्लाह को शुक्रिया आदा करते हैं। इसके साथ ही सभी हर प्रकार के गिले शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की बधाई देते हैं।

सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नही है रमजान

मुस्लिम धर्म के अनुसार रोजदारों के लिये कुछ नियम भी बनाये गये हैं. सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम रमजान नही है बल्कि उसके अतिरिक्त भी काफी बंदिशे है.

सहरी÷ रमजान के पाक मुकद्दस (पवित्र) महीने में सहरी का विशेष महत्व है। कुरआन के मुताबिक इसके लिए सुबह सूरज निकलने से से डेढ़ घंटे पहले जागना चाहिए और कुछ खाने के बाद ही रोजा शुरू करना चाहिए। इसके बाद पूरे दिन कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। इफ्तार: शाम को सूरज डूबने के बाद कुछ समय का अंतराल रखते हुए रोजा खोला जाता है। इसके लिए समय निश्चित होता है। सहरी करना अति आवश्यक है ऐसा नही हो सकता है कि देर रात भरपेट खाना खाकर सो जाए. इसके लिए एक बार उठाना और नींद से बेज़ार होना ज़रूरी होता है.

तरावीह: रमजान के दिनों में रात के समय तरावीह की नमाज अदा की जाती है। यह समय लागभग रात्रि के 08 बजे का होता है। इसके साथ ही मस्जिदों में कुरान पढ़ी जाती है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा पूरे माह होता है। इसके बाद चांद के अनुसार 29 या 30 दिन बाद ईद का जश्न मनाया जाता है।

बंदिशे: रोज़े की बंदिशे भी है. किसी की गीबत (उसके पीठ पीछे उसकी बुराई), झूठ, मक्कारी, फरेब, से बचना, अच्छे और नेक काम करना, बुरी आदतों से बचना, बदजुबानी न करना आदि कई बंदिशे भी है.

रमजान से जुड़ी कुछ मान्यताये

1.ऐसा कहा जाता है कि रमजान के पाक महीने के दौरान जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। इस महीने में अच्छे कर्मों का फल गई गुना ज्यादा मिलता है। ऊपर वाला अपने बंदों के अच्छे कामों पर नजर करता है उनसे खुश होता है।

2.ऐसी मान्यता है कि इस पाक महीने में दोज़ख (नर्क) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और सभी बुरी ताकतों को कैद कर लिया जाता है

3.अल्लाह से अपने सभी बुरे कर्मों की माॅफी रमजान के पाक महीने में मांगी जाती है। पूरे महीने तौबा के साथ खुदा की इबादतें की जाती हैं। कहा जाता है ऐसा करने से व्यक्ति के सभी गुनाह खत्म हो जाते हैं।

4.माहे रमजान में नफिल नमाजों का शबाब फर्ज के बराबर माना जाता है।

5.रमजान के दिनों में रोजा रखा जाता है। रोजादार भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह  की इबादत करते हैं। रोजादार सिर्फ सहरी और इफ्तार ही ले सकते हैं। रोजादार को झूठ बोलने ,चुगली,गाली-गलौज,औरत को बुरी नजर से देखना,खाने को देखकर लालच से देखने से हमेशा बचना चाहिए।

6.कहा जाता है कि रमजान के पाक महीने में फर्ज नमाजों का शवाब(पुण्य) 70 गुना बढ़ जाता है।

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