छपरा (बिहार मोबलीचिंग) – इन दोनों गाँवों की दर-ओ-दीवारे आज भी है ग़मगीन

तारिक आज़मी (इनपुट अनिल कुमार)

बिहार के छपरा जिले में हुई माबलीचिंग की घटना ने भीडतंत्र के ऊपर उठ रहे सवालो को और भी ज्यादा तवज्जो देना शुरू कर दिया है। बिहार के छपरा जिले को सारण नाम से जाना जाता है। इसी जिले में पशु चोरी के इलज़ाम पर तीन लोगो को भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दिया था। ज़िले में बीते शुक्रवार सुबह भीड़ की पिटाई से हुई तीन लोगों की मौत के इस मामले में जिला पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में आठ लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। इसके अलावा पुलिस ने कई अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। हालांकि बिहार पुलिस इस घटना को मॉब लिंचिंग मानने से इनकार कर रही है। मगर अगर अपराध का तरीका देखा जाये तो यह माब लीचिन ही दिखाई देता है।

यह घटना छपरा के बनियापुर थाना क्षेत्र के पठोरी नंदलाल टोला गांव में हुई थी। भीड़ ने एक अल्पसंख्यक और दो महादलित समुदाय के लोगों को मिला कर कुल तीन लोगो को इतनी बेरहमी से पीटा कि उनकी मौत हो गई। जिन तीन लोगों की मौत हुई, वो घटनास्थल से करीब 15 किलोमीटर दूर बसे पैगंबरपुर गाँव के रहने वाले थे। पैगम्बरपुर गाव एक मिश्रित आबादी वाला गाव है और इस गाव में लगभग 500 से अधिक परिवार है। इस गांव के कई लोग देश-विदेश में नौकरी कर रहे हैं। आज घटना के कई दिनों बाद भी इस गाव में सन्नाटा पसरा हुआ है। गांव में गम और गुस्से का माहौल है।

गांव के बीच में मृतक नौशाद कुरैशी का पक्का और खुबसूरत मकान है। इस मकान की एक एक ईंट नौशाद कुरैशी की याद में आंसू बहा रही है। गम में डूबे परिवार के प्रति संवेदना जताने वालों की भारी भीड़ रोज़ ही आती है। जानकारी मिलने पर दूर दराज़ के रिश्तेदारों और नातेदारो का भी आना जाना लगा हुआ है। मगर आज भी घर का माहौल ग़मगीन है। घर के एक एक ज़र्रे के आंसू समझ में आते है। कभी नौशाद के भाई की रोने की आवाज़े तो कभी उसके बच्चो के आंसू माहोल को ग़मगीन करते रह रहे है। घर के माहोल को देख कर लगता तो नही है कि कोई सजा या कोई गिरफ़्तारी शायद इस घर के गम को दूर कर सकता है। वक्त ही एक ऐसा मरहम है जो शायद इस गम को भर दे।

उधर गांव के दूसरे छोर पर मृतक विदेश नट के पिता अपने नौजवान बेटे के मौत पर आज भी लगातार रोये जा रहे थे। उनकी जुबान पर सिर्फ एक ही बात बरबस आ रही थी कि नवंबर में उसकी शादी होनी थी। विदेश नट का विवाह इसी वर्ष नवम्बर में होना था। पुरे परिवार में ख़ुशी का माहोल था। इस शादी के ख़ुशी के माहोल को एक भीड़ ने मौत के सियापे में तब्दील कर दिया है। एक बुज़ुर्ग बाप अपने नवजवान बेटे की लाश को कन्धा देकर उसके बोझ से टूट चूका है। बरबस कोई भी मिलता है और तस्किरा करता है तो वह यही कहता है कि मेरे बेटे की नवम्बर में शादी थी।

ऐसा ही लगभग माहोल इस गाव में तीसरे मृतक के घर का है। राजू नट के घर के भी तसल्ली देने वालो का आज भी ताँता लगा हुआ है। राजू की पत्नी और बच्चों की आँखे आज भी अपने सुहाग और अपने पिता के वापसी की आस में पथराई हुई है। उनकी आंखे सवाल उस भीड़ से पूछना चाहती है कि अगर तुम्हे चोरी का शक था तो फिर खुद तुम फैसला करके सजा देने वाले कौन होते हो। दुनिया का कोई भी मुल्क चोरी की सजा मौत दे ऐसा कानून कहा है ? घर में मौत का सियापा छाया है। रह रह कर कभी राजू की पत्नी तो कभी बच्चो के रोने की आवाज़े बाहर निकलती है।

दूसरी तरफ जिस गांव में ये घटना हुई उस महादलित बाहुल्य पिठौरी नन्दलाल टोला गांव के लोगों का आरोप है कि शुक्रवार की सुबह तीन लोग गांव में पिकअप वैन पर मवेशियों को लाद रहे थे तभी उन्हें पकड़ लिया गया। बीबीसी ने इस घटना के ग्राउंड रिपोर्टिंग का दावा करते हुवे अपने समाचार में मोहित कुमार का हवाला देते हुवे लिखा है कि मोहित उसी गाव का है, जहा घटना हुई है। बीबीसी ने अपनी खबर में कहा है कि मोहित ने उन्हें बताया कि  “रात करीब दो बजे के आसपास पिकअप वैन से कुछ लोग आये थे। उन्होंने पहले एक बकरी को चुरा कर कहीं रख दिया और फिर दुबारा यहां आए। पिकअप वैन में बकरी की लेड़ी (गोबर) मिली थी। ये लोग दोबारा आए और उन्होंने गांव के मुहाने पर बंधी दो भैसों को वैन में चढाने की कोशिश किया। इसी दौरान भैंस ने उनमें से एक को धक्का मार दिया जिसके बाद हल्ला मच गया और वो ग्रामीणों के हत्थे चढ़ गए। हम लोगों ने उन्हें पकड़ कर दरवाजे पर लाकर बांधा। उनसे पूछताछ की गयी। उसी बीच थाने को फोन किया। उन्होंने कहा कि पकड़ कर रखिये हम लोग आ रहे हैं। इसी दौरान लोगों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया जिससे दो लोगों की यहीं मौत हो गई।

फिलहाल जिस गाव में घटना हुई है उस गाव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। इस गांव में भी एक अजीब सी ख़ामोशी है। गाव में किसी प्रकार की कोई हलचल नही है। यहाँ की ख़ामोशी बयान करती है कि दर्द तो इस गाव में भी है। घटना को अंजाम चंद मुट्ठी भर लोगो ने ही दिया होगा मगर इस घटना को गलत कहने वाले भी गाव में लोग है। वही मृतक के गाव में भी ख़ामोशी है। आप खुद सोचिये इस भीड़ का किसको फायदा हुआ। क्या नतीजा आज सामने है। दो इंसानी बस्तियां जो हमेशा खुशहाल रहा करती थी आज गम के साये में है। लोग ग़मगीन है। वो जो उत्तेजक भीड़ रही होगी, उस भीड़ में घटना करने वाले जो भी दस बीस या फिर जितने भी रहे होंगे उससे कही ज्यादा वहा की जनता रही होगी, जिसका कोई कसूर नही होगा, मगर आज गम के साए में दोनों गाव है। एक गाव को गम है कि उसने अपने तीन नवजवान खोये है वही दुसरे गाव को तकलीफ है कि उसकी ज़मीन पर खून बह गया। सोचे आखिर इस बेवजह के गुस्से का क्या नतीजा निकला ?

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