औराई कैरमऊ का वह 25 जुलाई 2016 जब पढ़ने जा रहे 8 नौनिहाल समां गये थे मौत के गाल में

प्रदीप दुबे

औराई भदोही। सरकारी तंत्र की विफलता का दिन था यह जब उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के कैयरमऊ के नौनिहालों का वह काला दिन था। आज के ही दिन ये शोक संतप्त कर देने वाली हृदय विदारक रेलवे हादसे में हमारे 8 बच्चे हमसे हमेशा के लिए दूर हो गए। 8 देश के भविष्य नौनिहालों की जान ले चुकी कैयरमऊ रेल हादसे मे मारे गये बच्चो के लिए पूरा देश अपनी पलकों को भिगो रहा था। आज उसी काले दिन की एक और बरसी थी।

वक्त गुज़र चूका है। लोग अपने अपने कामो में इतना मशगुल हो चुके है कि वह घटना भूल भी गए होंगे। मगर शायद वह परिवार जिसने अपनी आँखों का चश्मों चिराग आज के दिन ही खोया था, वह परिवार आज भी आंसू बहा रहा है। मृतक बच्चो के पिता जब अपने कामो से घर वापस आते है तो घरो के दरवाज़े पर अचानक आज भी ठिठक कर खड़े हो जाते होंगे कि उनका लाडला या लाडली आकर दरवाज़े पर उनसे चिपक जायेगा। मगर आखे पथरा जाती है जब उनके कलेजे का वह टुकड़ा नही नज़र आता।

तीन साल गुज़र गए है मगर वो माँ जिसका लाल इस घटना में दुनिया से चला गया वह आज भी सुबह स्कूल के समय उठ कर पहले उसको जगाने जाती होगी। मगर खाली बिस्तर देख वह वही आँखों में यादो का आंसू देख कर रुक जाती होगी। दिन भर बच्चो की वह किलकारिया जो उसके दिन भर के थकान को एक मुस्कराहट के साथ दूर कर देती थी, अब वह टानिक के रूप में हंसी अब कहा उनके सामने है। उस माँ को तो आज भी घर की दर-ओ-दिवार काटने को दौड़ती होगी।

सवाल आज तक अधुरा है कि आखिर उन मासूमो का असली अपराधी कौन था ? आखिर क्या गलती थी उन मासूम बच्चो की ? घटना से भले ही रेलवे ने सीख हासिल किया और रेलवे का अंडर पास बन गया, मगर स्थानीय निकाय आज भी अपनी आँखे महाभारत की गांधारी के तरह बंद किये है। बरसात में 4 से 5 फिट तक का इस अंडरपास में जानी जमा हो जाता है। पिछले बरसात में ही एक स्कूल वाहन इस पानी में फस गया था। स्थानीय लोगो ने मदद करके उस वाहन में सवार बच्चो को बाहर निकाला। मगर सबक तो कान्वेंट स्कूल ने भी नही सीखा और आज भी गैर मानक के तहत स्कूल वाहन चल रहे है।

सबक तो हम अभिभावकों ने भी तीन साल बाद नहीं सीखा और इलाको में प्राइवेट स्कूलों का कारोबार जोरो शोर पर है। हम खुश होते रहते है कि हमारा बच्चा अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहा है। होमवर्क से लेकर प्रोग्राम और सूचनाये तक मल्टीमिडिया मोबाइल सेट पर आने लगी है। हम सोचते है बच्चा अडवांस हो गया है। मगर इस अडवांस के दौड़ में संस्कार पीछे छूटते जाते है उसका क्या ?

कभी इन अंग्रेजी विद्यालयों के किसी कार्यक्रम में जाकर देखे तो एक बार और अपना बचपन याद करे। फ़िल्मी धुनों पर नाचते हमारे बच्चे हमको काफी अच्छे लगते है। हम ये भूल जाते है कि यही कार्यक्रम शिक्षा प्रद मुंशी प्रेम चन्द्र की किसी कहानी का नाट्य रूपांतर होता अथवा देशभक्ति गीत होता तो कितना अच्छा होता। मगर हम तो हज़ारो खर्च करके फ़िल्मी गानों पर नाचने को अपने बच्चो को सजा धजा कर भेजते है। तो असल में कही न कही से जवाबदेही हमारी खुद की है। PNN24 न्यूज़ परिवार मृतक बच्चो को दिल से श्रधांजलि देता है।

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