प्रशासन कितना भी दावा करले बिचौलीयो से बचने के लिए लेकिन सारे दावा फेल है
वीरेंदर प्रजापति।
मऊ – एक कहावत है कि घर के भेदिया लंका ढाहे। मैं बता रहा की बिचौलीयो कौन है। हकीकत बात यह है कि बिचौलीयो कोई और नहीं है बल्कि उसी विभाग के कर्मचारी हैं। जो बिना पैसा लिए फाइल को आगे नहीं बढाते है जब कर्मचारी ही बिचौलीयो है तो हम किस पर आरोप लगाते है। मैं अपने ऊपर बिती हुई आज की घटना बता रहा हूँ। मैने मधुबन बाजार स्थित विश्वकर्मा आटो की एक दुकान से 1 जुलाई को एक 4 के वी का एक पम्प सेट नया खरिदा था। नया पम्प सेट खरीदने पर सरकार के तरफ से 10000 रु० का राहत राशि प्रदान किया जाता है। लेकिन हुआ क्या मेरे साथ जब मैं सारा पेपर लेकर पहुँचा कृषि विभाग कार्यालय पर तो वहां पर सबसे पहले मुझे 3 बार ऊपर नीचे दौडा़या गया फिर भी फार्म नहीं जमा हुआ। विभाग का कहना यह है कि बजट नहीं है ईसलिए हम फार्म जमा नहीं कर रहे है। जब मैं खर्चा का बात कहाँ तो उन्होंने कहा कि ना तो हम फार्म लेंगे अभी और ना ही पैसा जब तक पुराना फार्म पुरा नहीं हो जाता है। साथ में ये भी कहा गया है कि दो महीने बाद पैसा और फार्म लेकर आईयेगा इससे साफ मालूम चल रहा है कि कौन विचौलिया? और कौन सही है और ये घटना आज ही घटी है।