एक दो तीन चार- अजब है ये भ्रष्टाचार- पार्ट-1, पोखरे और भीटे की ज़मीन पर अवैध कब्ज़े का मामला – और उच्च न्यायलय ने तलब किया मऊ के जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी के साथ तहसीलदार को
के मौजा कमालपुर के ग्राम पहाडपुर स्थित ग्रामसभा के पोखरे और भीटे की ज़मीन पर अवैध
अतिक्रमण और अवैध रूप से निर्माण के प्रकरण को गंभीरता से लेते हुवे जनपद के जिलाधिकारी
सहित तहसीलदार और सम्बंधित उपजिलाधिकारी को न्यायालय में तलब कर लिया है.
ज्ञातव्य हो की दिनाक
२९ जुलाई को ग्राम उपरोक्त के निवासी सर्वजीत सिंह आदि ने न्यायालय के कोर्ट
संख्या 38 में वाद संख्या 34913 के द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इस
याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के साथ जिलाधिकारी मऊ, मुख्य विकास अधिकारी, खंड
विकास अधिकारी सहित कुल 21 को पार्टी बनाते हुवे साक्ष्यो सहित दावा किया गया था
कि ग्राम सभा में सरकारी तालाब और उसके भीटे पर अवैध निर्माण का प्रयास किया जा
रहा है. माननीय न्यायालय ने उक्त प्रकरण को संज्ञान लेते हुवे सम्बंधित अधिकारियो
को स्पष्ट निर्देशित किया गया था कि उक्त किसी भी प्रकार का निर्माण उक्त विवादित
भूमी पर न किया जा सके और आगे की कार्यवाही हेतु आज दिनाक 4 अगस्त की तिथि
निर्धारित की गई थी. इस प्रकरण में माननीय न्यायालय के समक्ष वादी के अधिवक्ता ने
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के वाद हिन्चलाल बनाम कमला देवी (वाद संख्या- 4787/2001)
के मुक़दमे में दिए गए आदेश को भी पटल पर रखा था.
:-
कमालपुर के ग्रामसभा पहाडपुर के दस्तावेजों का अगर अध्यन किया जाय तो 228घ, 229क
1356 फ़० वा 1359फ़० में बतौर पोखरी खाते में दर्ज थी. दौरान चकबंदी इसके भीटा
(पोखरी के किनारे की चौहद्दी की ज़मीने) बतौर स्कूल दर्ज कर दी गई जिस पर ग्राम
पंचायत देवसीपुर की प्राथमिक पाठशाला संचालित है जबकि 228घ और 229क पर ग्राम प्रधान
शकुन्तला देवी के ससुर और ससुर के भाई क्रमशः भिखारी और नरोत्तम पुत्रगण रामधनी का
नाम दर्ज है. इस सम्बन्ध में शासकीय अधिवक्ता द्वारा सक्षम न्यायालय उपजिलाधिकारी
मुहम्मदाबाद गोहाना के न्यायालय में अंतर्गत धारा 38 लिपिकीय त्रुटी दाखिल हुई जो
अभी भी विचाराधीन है जिसमे सम्मानित न्यायालय ने पत्रांक संख्या 846, 484, 845/
रीडर के द्वारा तहसीलदार को रिपोर्ट हेतु भेजा, जिस आदेश को सम्बंधित तहसीलदार
द्वारा पत्रांक संख्या 172,170,174 दिनाक 14 मार्च 2016 को सम्बंधित नायब तहसीलदार
को रिपोर्ट हेतु भेज दिया जो आज भी लंबित है.
माने तो इसी बीच मामले को ठन्डे बस्ते में डालने का हर संभव प्रयास किया गया. इस
दौरान जून माह से निर्माण की अन्य तयारिया उक्त ज़मीन पर होने लगी जिस सम्बन्ध में
मैटिरियल भी स्थान पर गिरा दिया गया. वादी मुकदमा ने इस सम्बन्ध में 21 जून 2016
को उपजिलाधिकारी को लिखित प्रार्थना पत्र से अवगत करवाया गया. इसके बाद भी जब
स्थिति वैसे ही बनी रही तो वादी मुकदमा ने दिनाक 4 जुलाई 2016 को मंडलायुक्त से
मिलकर अपनी शिकायत पंजीकृत करवाई गई जिसपर मंडलायुक्त ने उपजिलाधिकारी को स्पष्ट लिखित
निर्देशित किया गया कि उक्त विवादित भूमी पर किसी भी तरह का कोई निर्माण अथवा
परिवर्तन नहीं किया जाय. इस सबके बावजूद दिनाक 28 जुलाई को निर्माण कार्य शुरू
हुवा जिस पर दिनाक 29 जुलाई को वादी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की
गई. याचिका की जानकारी आते ही सरकारी महकमे में हडकंप सा मच गया और नायब तहसीलदार
स्वयं मौके पर पहुच गए. सूत्रों की और प्रत्यक्षदर्शियो के बयान को माने तो नायब
साहेब ने बस एक कोरम पूरा किया और विवादित स्थल पर रखा हौद और नाद हटवा दिया जबकि
पक्के निर्माणों की ओर नज़र उठा कर भी नहीं देखा और दुसरे दिन अख़बार की सुर्खियों
का हिस्सा अतिक्रमण हटवाने के नाम पर बन गए और कोरम पूरा हुवा.
ग्राम सभा की एक और दिलचस्प हकीकत- और आनन् फानन में केवल 72 घंटो में हो गया
पक्का निर्माण, प्रशासन मौन.