महाव-किसानों की तबाही-आखिर ज़िम्मेदार कौन

प्रदीप कुमार 
★मरम्मत के नाम पर हड़प लिया गया है करोड़ों रूपये,सिर्फ़ कागजो मे हुई मरम्मत।
★हो चुकी है घपले की जांच।
★वन विभाग, सिंचाई विभाग व नरेगा कै माध्यम सैकड़ों की गयी कइयो बार करोड़ों की बन्दरबाट।
महराजगंज। नेपाल के पहाड़ों से निकला महाव नाला बरगदवा व परसामलिक क्षेत्र में साल दर साल किसानों के बर्बादी की इबारत लिख रहा है। हर साल नाला का तटबंध पानी के दबाव से टूटने के बाद सिचाई विभाग की निद्रा टूटती और कुछ पल की सतर्कता के बाद पुन: गाड़ी पुरानी पटरी पर ही दौड़ने लगती है। इस तबाही को रोकने को लेकर न तो जनप्रतिनिधि गंभीर है और न ही शासन में बैठे जिम्मेदार। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक किसानों के अरमानों की फसलों पर महाव के पानी के साथ आए रेत की परत चढ़ती रहेंगी।

महाव नाला भारत-नेपाल सीमा पर स्थित 16 नम्बर पिलर के पास नौतनवा तहसील के बरगदवा क्षेत्र में प्रवेश करती है।इसके पेटे में पानी सहन करने की क्षमता 2460 क्यूसेक थी, लेकिन सिल्ट की सफाई न होने के कारण 1000 क्यूसेक पानी के सहने की क्षमता रह गयी है।
जिससे हर साल नेपाल के पहाड़ों से आए पानी का दबाव तटबंध नहीं झेल पाते और टूट जाते हैं। इस साल  फिर महाव का तटबंध कई जगहों से टूट गया और कइयो किसानो की मेहनत व सपनो पे बालू की मोटी परत चढा गया। बता दें कि सिचाई विभाग ने इसकी तबाही पर पूर्ण विराम लगाने के लिए वर्ष 2010-11 में शासन को 5 करोड़ 63 लाख रुपये का प्राकलन प्रस्तुत किया, लेकिन शासन से इस महत्वाकांक्षी योजना को मूर्त रुप न मिल सका। 

शासन द्वारा जारी सिचाई विभाग के लिए रैट होल, रैन कट को ठीक करने का आदेश भी महाव पर लागू नहीं होता है।कारण सिचाई विभाग के दस्तावेजों में महाव अभी भी एक नाला के रूप में दर्ज है। इस कारण वर्ष 2013-14 में सिल्ट सफाई व तटबंधों की मजबूती के लिए ब्लाक क्षेत्र के नौ ग्राम पंचायतों ने मनरेगा के धन से 35.47 लाख रुपए खर्च कर 16 स्थानों पर कार्य कराए। जिसमें मजदूरी के नाम पर 21.42 लाख व सामग्री पर 11.68 लाख रुपए खर्च किए गये। इन 16 स्थानों में शायद ही कहीं ठीक ढंग से कुदाल तक चला हो।

इसी प्रकार की अनियमितता कोई पहली बार नहीं हुई बल्कि यह सिलसिला वर्ष 2007 से ही चल रहा है। 2007 में भी खैरहवा दूबे गांव के सामने मरम्मत कार्य दिखा कर करीब 40 लाख रुपए फर्जी भुगतान का मामला समाने आया था। मामले की जांच पड़ताल हुई, लेकिन कोई कार्यवाही न होने से घपलेबाजों का मनोबल बढ़ गया। वर्ष 2008 में 15 व 22 जून को महाव नाले के टूटे बंधे की मरम्मत के नाम पर तकरीबन 16 लाख रुपए का भुगतान करा लिया गया। वर्ष 2009 में भी इसी के सापेक्ष मनरेगा के तहत लाखों रुपए खर्च कर महाव की मरम्मत कागजों करायी गई। वर्ष 2011 में वन विभाग ने मरम्मत और अन्य कार्यों का एक करोड़ एक लाख रुपए खर्च कर दिया। इसी प्रकार बीते वर्ष भी टूटे तटबंध की मरम्मत में 3.75 लाख रुपए ग्राम पंचायत द्वारा कागज में खर्च खर्च कर दिया। जिला प्रशासन द्वारा जांच में हीलाहवाली से नाराज लोगों की मांग पर इसकी सीबीआई टीम ने जांच की। जिसे लेकर पिछले साल काफी हड़कंप मचा रहा है।
किसानों के इस समस्या के समाधान के लिए तीन दशक बाद भी कोई ठोस पहल इन नेताओं द्वारा नहीं किया गया। आठ स्थान पर जर्जर हैं महाव के तटबंध

महाव के जर्जर तटबंधों की स्थिति देखकर नहीं लगता है कि प्रशासन ने कोई ठोस प्रयास किया है। अभी भी महाव तटबंध आठ स्थानों पर जर्जर में है जिसमें कोहरगड्डी के सामने, छितवनिया, देवघट्टी, अमहवा, विशुनपुरा, जहरी, पिपरहिया, नरायनपुर आदि गांव के किनारे तटबंध जर्जर है।

जहाँ इस महाव मामले मे अधिकारी बात करने से कतरा रहे है वही- क्षेत्रीय विधायक कौशल किशोर उर्फ मुन्ना सिह का कहना है कि महाव नाला के कायाकल्प के लिए शासन को इससे अवगत कराया गया है। इस समस्या को विधान सभा में भी गंभीरता से उठाया गया। किसानों को हर साल महाव की तबाही से बचाने के लिए जर्जर तटबंधों की मरम्मत के साथ नाला की सफाई के प्रयास किए जाएंगे।

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