इमरान सागर की कलम से – हम स्वतंत्र है।

हम स्वतंत्र हैं! हम स्वतंत्र है क्यूंकि हमे कभी भी, कहीं भी किसी को भी कुछ भी बोलने का अधिकार है! यह अलग बात है कि हम ठीक से बोल नही बोल पाते हैं इस लिए हमें हमेशा उन लोगो की जरूरत पड़ती है कुछ बोलने के लिए जो हमें चलाते है! जरूरत इस लिए पड़ती है कि हम स्वतंत्र हैं..??
किसी पर कोई शब्दिक टिम्पणी करना आसान हो सकता था क्यूंकि हम स्वतत्र हैं…..?? परन्तु मामूली टिम्पणी करना भर हमारे लिए बबाल-ए-जान बन जाता है क्यूंकि हम स्वतंत्र है…..?? हम स्वतंत्र हैं और देश का भविष्य तय करते हैं परन्तु हमसे बोलने का अधिकार छीन लिया गया, हमसे अपना पक्ष रखने का अधिकार छीन लिया गया क्यूंकि हम स्वतंत्र हैं….? हम अपने देश के लिए जीते हैं और धरती की कोख में फसले उगाते है अपने देश का जीवन यापन करवाने के लिए लेकिन हमसे हमारी ही धरती का कब्जा छिनता जा रहा है क्यूंकि स्वतंत्र हैं ? हम स्वतंत्र है उनके पीछे खड़े रह कर राष्ट्रगान और बन्दे:मातरम बोलने के लिए लेकिन अपनी इच्छाओं पर काबू रख कर, भूले से भी जरूरत की इच्छा जाहिर हो गई तो हम पर बबाल मचा दिया जाता है और हमे अन्धेरो की ओर ढ़केल दिया जाता है! 
हम स्वतंत्र हैं लेकिन अपनी इच्छा से बिना कुछ अधिक खर्च किए फसलो में लगाने हेतु कीट नाशक दवाएें और खाद नही ले सकते और न ही नहरो से खेतो की ओर पानी का रुख मोड़ सकते हैं! 
हम स्वतंत्र हैं लेकिन अपने बच्चो को अच्छे स्कूलो में शिक्षा के लिए दाखिला नही करा सकते जबकि हमारे भारतीय सरकारी स्कूलो की हालते जग जाहिर हैं!
हम स्वतंत्र हैं लेकिन अपनी मर्जी से अपनी गली को सरकारी खर्चे पर ठीक नही करा सकते जबकि देश की सरकारे हम स्वतंत्र ही बनाने में मुख्य भुमिका निभाते आ रहे हैं। हम स्वतंत्र है इस लिए गांव में बाढ आने पर हमारा सब कुछ नष्ट होने के बाद चन्द तथाकथित लोग घड़ियाली आंसू बहाने पहुंच जाते हैं मात्र राजनीत की रोटियां सेकनें!
हम स्वतंत्र हैं इस लिए हमें राशन की लाईन में लग कर भी दिन में भी आसानी से राशन न मिलने  के साथ सैकड़ो गालियों का सामना करना पड़ता है। हम स्वतंत्र हैं इस लिए अस्पतालों में हमारे मरीजो के साथ हमेशा से सौतेला व्यवहार होता आ रहा है जबकि हमारी ही देन होती है कि क्षेत्र में अस्पताल का निर्माण हो पाता हैं क्यूंकि उसके निर्माण में हम सस्ती मजदूरी लेकर मजदूरो के रूप उसके निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं!???
हमारी स्वतंत्रता के लाखो एैसे सच्चे किस्से है जिन्हे बयान करने और लिखने में लेखको का जीवन गुजर जाए परन्तु शायद कभी पूरे हो सके परन्तु क्या करें यह बेर्शम जीवन देश के लिए है जिसे हर हाल में वतन परस्ती को बरकरार रखना है क्यूंकि यह देश हमारा है और हम इसके वासी, न हिन्दु हैं हम न मुसलमां, हम है पहले हिन्दुस्तानी।
हम स्वतंत्र है तभी तो उन्होने हमारा तिरस्कार कर अपनी जेबो को मोटी रकम से भरने के लिए हमारी धरती का श्रंगार मिटाते हुए हरे भरे सारे जंगलो से कीमती वृक्षो को काट कर मैदानी इलाका बनाने के साथ जमीनो का बंटबारा कर रिहाईशी बना दिया! हम स्वतंत्र है तभी तो उन्होने हमें झोपड़ी में ही रखने का लगातार प्रयास किया, खुद ऊंचे महलो में रहकर। देश के लिए लाखो करोड़ो  इच्छाए रखने के बाद भी हम आज स्वतंत्र हैं लेकिन वे……… वे तो गुलाम हैं अपनी इच्छाओं के आकाक्षांक्षों के अपने आकाओं के, परन्तु जिस स्वतंत्रता का जरिए वें ऊंची पहुंच और रसूख पाए उन्ही को गुलामी की जंजीरो में जकड़ने का लगातार प्रयास करते आ रहे हैं! शायद उन्हे यह कामयाबी मिल गई होती लेकिन उनमें भी फाड़ होता दिखाई पड़ने लग गया! स्वतंत्रता के सही मायनो में हम ही हकदार हैं लेकिन हमें जाति के नाम पर बांटने का किस किस प्रकार से प्रयास किया जा रहा है लेकिन भला हो हमारी स्वतंत्रता का कि वे कमसे कम इस प्रयास में अब तक सफल नही हो पा रहे हैं! 
हम स्वतंत्र हैं और हम ही जान पाए हैं लेकिन देर से कि उन्हे हर वार अपना मुखिया बनीने में गल्ती कर गये परन्तु करते भी क्या, वे हर वार भिखारियों की तरह कीचड़ भरी बदबूदार हमारी अन्धेर गलियों में अपने मतलब के लिए सफेद लिबास गन्दा करते हुए भींख मागने आ जाते हैं और हम उन्हे भीख देते हैं लेकिन उनके दबाव में बल्कि हम स्वतंत्र हैं इस लिए!

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