मथुरा: मुड़िया मेला पर विशेष
125 करोड़ रुपये का होगा आस्था का सैलाब
ब्रज के प्रसिद्ध गुरु पूर्णिमा मेले का वक्त एक बार फिर आ चला है। इस दौरान आस्था का बड़ा कारोबार होता है। अनुमान है कि अबकी यह 125 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर जाएगा।
जूता-चप्पल रखने वाले आठ करोड़ की कमाई करेंगे
गिरिराज भक्तों से करीब दो करोड़ तो भिखारियों के हिस्से में ही आ जाएंगे। जूता.चप्पल रखने वाले आठ करोड़ की कमाई करेंगे जूते.चप्पलों को रखने के लिए पाँच सौ से ज्यादा दुकानें परिक्रमा मार्ग में खोली जाती है । एक जोड़ी जूते व सामान का कुछ घंटों का किराया ही दस से बीस रुपए के बीच लिया जाता है।
होटल गेस्टहाउस धर्म शालाओं में कई महीनों पहले बुकिंग हो जाती है जिनकी अनुमानतः कमाई पांच करोड़ से ऊपर हो जाती है यहाँ तक की लोग अपने घरो मे यात्रियों को ठहरवाते है तो मंदिरों की कमाई भी पंद्रह करोड़ के आसपास होगी। मुड़िया पूनो मेला के दौरान गोवर्धन-राधा कुंड में वाहनों की पार्किंग के लिये तीन दर्जन पार्किंग स्थल बनाये जायेंगे यह सारी रोकड़ आने वाले करीब तीन करोड़ यात्रियों की जेब से निकलेगी।
यहाँ तिल रखने की भी जगह नहीं होगी
एक हफ्ते तक चलने वाले गुरु पूर्णिमा मेले में 21 किमी की नंगे पैर परिक्रमा देने का अटूट सिलसिला चलेगा। इस दौरान इतने लंबे मार्ग में तिल रखने की जगह नहीं होगी।
तो इस बार तीन करोड़ यात्री पहुंचेंगे यहाँ
दुनिया भर में आस्था के केंद्र के रूप में सबसे आगे हो चुके गिरिराज महाराज ने श्रद्धालु यात्रियों को लुभाने के मामले में अब तिरुपति बालाजी (एक करोड़ ) और वैष्णो देवी मंदिर और शिरडी के साईं बाबा (एक करोड़ से ज्यादा) को पीछे छोड़ दिया है। एक साल में गिरिराज महाराज के दर्शन को तीन करोड़ से ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं।कमी इतनी है कि कोई श्रइन बोर्ड या गिनती न होने के कारण इस ‘कुंभ’ को सरकारों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया है।
यहाँ के भिखारी भी करोड़ो कमाते है
ओआरजी मार्ग के पूर्व में कराए गए सर्वे के अनुसार इन चार दिनों में करीब दो करोड़ की भीख तो भिखारी हासिल कर लेते हैं। जबकि पचास लाख से ज्यादा की चिनौरी और चिरवा का प्रसाद यात्री खरीद कर ले जाते हैं। तीन से चार करोड़ रुपये की कंठी माला दुपट्टे चुन्नी लगभग इतनी ही कीमत के फूल गिर्राज धाम में बिक जाते है
सात से दस लाख किलो दूध गिरिराज शिलाओं पर चढ़ेगा
खाने-पीने की चीजों के अलावा प्रसाद के लिए दूध की डिमांड इतनी बढ़ जाती है कि मानसी गंगा पर पूर्व में लगाए चिलर प्लांट फेल हो जाते हैं। मेले के दौरान अब बड़ी संख्या में परिक्रमार्थियों की यह कामना भी पूरी नहीं हो पाती, क्योंकि आम तौर पर उन्हें मिलावटी दूध ज्यादा मिलता है। अनुमान है कि सात से दस लाख किलो दूध परिक्रमा क्षेत्र में बनी गिरिराज शिलाओं पर चढ़ जाता है।