भदोहीः मातृभूमि पर लौटे 50 साल बाद और यहीं निकली अंतिम सांस

भदोही(रविन्द्र दुबे)। विधाता के विधान और संविधान को कोई नहीं टाल सकता। जब जहां जिसकी मौत लिखी है वहीं होगी। प्रकृति और विधाता के सत्य से जुड़ी एक घटना सोमवार को उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के हरीपुर -पूरेदरियाव अभिया गांव में देखने को मिली। जहां तीन सगे भाईयों में दो 15 दिन से मुंबई अपने बड़ा कारोबार छोड़ कर पैतृक गांव में आवास बसाने की चाहत में आए थे। गांवा वालों के सहयोग से बातचीत भी चल रही थी। लेकिन दिल की बीमारी ग्रसित बड़े भाई के प्राण पखेरु मातृभूमि में उड़ गए। बाद में उनका शव भदोही अस्पताल से सीधे गांव पूरेदरियाव लाया गया। जहां लोगों ने उनकी अर्थी को अंतिम कंधा दिया। 55 साल के दौरान इस बीच वह कभी अपनी पैतृक भूमि यानी गांव नहीं आए थे। आए भी तो प्राणांत यही हुआ। ईश्वर की इस लीला को देख और सुनकर गांव वाले हतप्रभ हैं।
जिले के सुरियावां थाने के अभिया के पूरेदरियावां गांव में गणेश दूबे, धनेश दूबे और महेश दूबे तीन भाई थे। गणेश और धनेश की शादी नहीं हुई थी। महेश दूबे गांववालों के अनुसार बचपन में मुंबई चले गए। जहां उन्होंने अपनी शादी किया और गृहस्थी बसायी। बाद में महेश को तीन बेटे रामजी दूबे, श्यामजी दूबे और घनश्याम दूबे के साथ तीन बेटियां पैदा हुई। बच्चे काफी छोटे थे तभी महेश की मौत हो गयी। इसके बाद सभी भाई मुंबई में धीरे-धीरे अपना कारोबारा स्थापित किया। तीनों बहनों की शादियां भी मड़ियाहू, बादशाहपुर के बेलवार और दूसरी जगहों पर किया। खुद अपनी शादियां भी की। बाद में मुंबई में  मूर्ति बनाने का बड़ा कारखाना लगाया। तीनों भाईयों ने काफी संघर्ष किया और अच्छा कारोबार खड़ा करने के बाद अपने पैतृक गांव हरीपुर पूरेदरियाव में बसने की इच्छा जतायी। लेकिन बचपन से कभी गांव से लगाव न होने से उन्हें गांव खोजना मुश्किल था। लेकिन अपने खानदानी करीबियों का पता लगाने के बाद तीनों भाईयों में बड़े भाई रामजी दूबे और श्यामजी अपने पैतृक गांव की खोज किया और 15 दिन पूर्व अपने मुंबई मि़त्रों के साथ ज्ञानपुर के गांव कांवल और सुधवै आए। यहां गांव वालों के सहयोग से पूर्वजों की जमीन पर बसने की इच्छा जतायी। गांव के मानिंद और सामाजिक लोगों के सहयोग से उन्हें बसाने की विचार किया जा रहा था। तभी आज सुबह नौ बजे के करीब बड़े भाई रामजी दूबे 55 की तबियत कांवल में खराब हो गयी। उनके हार्ट की सर्जरी हुई थी। यहां उन्हें गर्मी काफी खल रही थी। वहां डाक्टर बुला कर दवा दी गयी। सुबह सांस की शिकायत होने पर एबुलेंस के जरिए भदोही के एक निजी अस्पताल ले जाया गया। जहां अस्पताल पहुँचते ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गयी। बाद में मित्रों के सहयोग से रामजी का शव एबुलेंस के जरिए पैतृक गांव और कुल के करीबी रामश्रृंगार दूबे के यहां  पूरेदरियाव लाया गया। यहां गांव वालों ने उन्हें अंतिम बिदाई दिया। सभी ने मिल कर उन्हें कंधा दिया। सभी रिश्तेदार भी यहां पहुंच गए। लोगांे में यह चर्चा रही की ईश्वर की लीला अजीब है। जन्म के बाद रामजी अपने पैतृक गांव नहीं आए थे। 55 साल की उम्र में मौत उन्हें अपने मातृभूमि में खींच लायी। जबकि पिता की मौत मुंबई और मां की मौत अभी छह माह पहले हुई है। भाई का जोड़ा विछड़ने पर करोबारी श्यामजी का बुरा हाल था। वह बिलखते हुए बोले हम अकेले आ रहे थे लेकिन भाई ने कहा मुझे भी साथ ले चलो। मेरा भाई मुझसे हमेशा के लिए अलविदा हो गया। अब कहां और किसके लिए पैतृक गांव में घर बनाउंगा। भाई की इच्छा थी अपने पैतृक गांव में घर बनाने की। भगवान की इस लीला पर लोगों को आश्चर्य हो रहा था। उनका अंतिम संस्कार वाराणसी के मणिकर्णिका गंगा घाट पर किया जाएगा। अंतिम संस्कार में शामिल होने के के लिए मतृक रामजी दूबे की धर्मपत्नी और तीसरे भाई घनश्याम मुंबई से प्लेन से चल दिए हैं। उनकी मौत पर रविशंकर दूबे, सेवाशंकर दूबे, कौशलेश दूबे, रामअधार दूबे, दिनेश शुक्ल, शोभाशंकर शुक्ल, दिनेश दूबे, मुकेश दूबे, कड़ेदीन दूबे, संतोष दूबे उर्फ बब्बू, नेमधर दूबे, रमेश शुक्ल, पंकज दूबे समेत कई लोगों ने शोक जताया है।

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