क्षेत्र के लिए पहाड़ी नाला बना अभिशाप, कई वर्षों से सैकड़ों एकड़ फसल व खेतों को बर्बाद कर अन्नदातावो को कर रहा कंगाल
★ प्रशासन के लिए बना हुआ है कमाई का जरिया
★ सिंचाई की जगह बर्बादी का प्रयाय बना किसानो के लिए
★ कई वर्षों से सैकड़ों एकड़ फसल व खेतों को बर्बाद कर अन्नदातावो को कर रहा कंगाल
महाराजगंज। बरगदवा व परसामलिक क्षेत्र के लोगों के लिए महाव नाला कई वर्षों से अभिशाप बना हुआ है। हर वर्ष जून- जुलाई माह में अपने बाढ़ के पानी से तबाही मचाने वाला महाव सुर्खियों में रहता है। बुधवार की सुबह अचानक बढे पानी के दबाव के कारण दोगहरा गांव के पास महाव के पश्चिमी तटबंध टूटने से सैकड़ों एकड़ खेत फिर जलमग्न हो गये रेत की मोटी परत से उपजाऊ जमीन ढक गई। इसके साथ किसानों के अरमान भी बाढ़ के पानी में बह गए।
प्रत्येक वर्ष की भांति तटबंध के टूटने के बाद सिंचाई विभाग के अधिकारी टूटे हुए तटबंध की निरीक्षण किया और सीमेंट की बोरियों में रेत की जगह नाले की सिल्ट को ही भरवा कर मरम्मत का खेल शुरु कर दिया। जिससे की मरम्मत के नाम पर लाखों रुपए आसानी से हजम किया जा सके। क्योंकि हर साल टूटे तटबंधों के मरम्मत तो करायी जाती, लेकिन बढ़ते पानी के दबाव को वह झेल नहीं पाते और टूट कर किसानों की खेतों पर कहर बनकर रेत की एक मोटी परत जमा उनके अरमानों का खून कर देते हैं।
क्षेत्रीय किसानों का कहना है कि वर्षों से महाव तटबंध के मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किये जा रहे है, लेकिन हर वर्ष बाढ़ से बचाने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे है । पिछ्ले वर्ष इसके कहर से बरगदवा- चकरार मार्ग पर बने पुलिया जल धारा में समा गयी, जो अभी तक नहीं बन सका। हालत यह है कि इस गांव के लोगों को चार किलोमीटर अतिरिक्त यात्रा कर गांव पहुंचना पड़ रहा है। इतना ही नहीं बरगदवा- नौतनवा मार्ग पर बने दो मकान भी इसकी जलधारा मे समाहित हो गए। महाव की बाढ़ के पानी से प्रभावित गांव बरगदवा, दोगहरा, नरायनपुर खैरहवा, छितवनिया व हरपुर पाठक आदि गांव के किसानों के मन में यह प्रश्न है कि आखिर कब मिलेगी महाव के कहर से निजात??