पहले बीच सड़क पर हुई ज़लील, फिर अदालत में भी भारी पड़ी खाकी पर दलील

वाराणसी। शुक्रवार को रात एक भाजपा नेता और एक अधिवक्ता को पुलिस ने घर से गिरफ्तार कर लिया था। लंका पुलिस की इस कार्यवाही का मुख्य कारण था सुन्दरपुर सब्जी मंडी के पास पुलिस कर्मियों और भाजपा नेता तथा एक अधिवक्ता की मारपीट। घटना से सम्बंधित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। वायरल वीडियो में साफ़ दिखाई दे रहा था कि कुछ लोग पुलिस से धक्का मुक्की कर रहे है। यही नहीं आम जनता दिखाई देने वाले लोगो ने पुलिस का कालर कुछ इस तरीके से पकड़ रखा था जैसे सड़क पर गुंडई हो रही हो।

घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामले ने तुल पकड़ लिया और उच्चाधिकारियों के आदेश पर लंका पुलिस ने कार्यवाही करते हुवे एक भाजपा नेता था एक अधिवक्ता को मामले में गिरफ्तार कर लिया। देर रात तक लंका थाने पर भाजपा नेताओं द्वारा जमकर हंगामा हुआ। मगर सड़क पर ज़लील हुई खाकी भी अपने सम्मान के लिए खडी दिखाई दी और कोई दबाव काम न आया। सुबह होने के बाद मामले में रिमांड बना कर दोनों को न्यायालय में पेश किया गया। इस दौरान ड्यूटीरत दरोगा की लिखित तहरीर पर मुकदमा भी गंभीर धाराओ में हुआ था।

अचानक सुबह का माहोल बदल पड़ा। सुबह अधिवक्ता अचानक विरोध के मूड में आ गए। कचहरी परिसर में पुलिस बल की तैनाती कर दिया गया था। ACJM कोर्ट के बाहर सुबह के समय अधिवक्ताओ और पुलिस में हल्की नोकझोक भी हुई। मगर प्रशासन ने खुद का संयम बनाये रखा। वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अदालती प्रक्रिया में खुद को व्यस्त रखा। लोअर कोर्ट में मामला जाते ही ज़मानत अप्लिकेशन ख़ारिज हो गई और तत्काल अधिवक्ताओ ने अधिवक्ताओ ने तत्काल जिला न्यायाधीश का रुख किया और उनकी अदालत में पहुचे। और जमानत की अर्जी डाली। 307, 392, 364 सहित गंभीर धाराओ में रिमांड होने के कारण ज़मानत मिलना मुश्किल क्या नामुमकिन था।

इसके बाद कानूनी और प्रशासनिक जोर लगने शुरू हुवे और जब सेशन में रिमांड दाखिल हुई तो ये गंभीर धाराये कम हो चुकी थी। अब जिन धाराओं में पुलिस ने पर्चा काटकर भेजा था उनमे सजा सात साल से कम होने के कारण अधिवक्ता सहित भाजपा नेता को जमानत मिल गई। अधिवक्ताओं का कहना है कि न्याय पाने के लिए न्यायालय के सामने स्वच्छ मानसिकता से आना जरूरी होता है। लेकिन पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की थी वह स्वच्छ मानसिकता से नहीं बल्कि द्वेष के तहत की गई कार्रवाई है। अधिवक्ताओं ने कहा कि पुलिस का तर्क है कि हॉकी, डंडे से लैस होकर मारपीट की गई जबकि यह निराधार है। पुलिसकर्मी द्वारा लूट के आरोप लगाए गए जो सरासर गलत है और घटना के समय यह बताया गया कि दुकाने खुली थी जिससे साफ जाहिर है कि पुलिस कानून व्यवस्था को कायम रख पाने में फेल है। जिलाधिकारी का स्पष्ट निर्देश है कि दुकाने 7 बजे के बाद नहीं खुलेंगी। यदि ऐसा था तो पुलिस कार्यप्रणाली जांच के दायरे में आती है। इन सभी दलीलों के बीच एक दलील ने सब पर भारी भरकम वज़न रखा जब एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील देते समय कहा कि कोई अधिवक्ता आखिर अपराध कैसे कर सकता है।

बहरहाल, लम्बी जिरह के बाद दोनों अभियुक्तों को ज़मानत मिल गई। पुलिस को इस दौरान काफी हुटिंग भी झेलनी पड़ी। सड़क पर ज़लील होने के बाद उसी दलील से अदालत में भी पुलिस खुद लगभग कटघरे में खडी थी। ऐसा नही है कि मामला यही रुका बल्कि एक अधिवक्ता ने फेस बुक लाइव करके अपना 17 मिनट का वीडियो डाला है। अधिवक्ता दिनेश दीक्षित ने बड़े सम्मान से वीडियो बनाया है जिसको आप खुद देख सकते है। (वीडियो देखने के लिए इस लाइन को क्लिक करे)। मगर जज्बा उनका बीच बीच में भी जागा और आखिर में तो काफी जाग गया। इस दौरान वकील साहब ने सीतापुर का भी उदहारण देते हुवे कप्तान साहब को बताया है कि ये वाराणसी है सीतापुर नही।

क्या राजनैतिक दबाव में हटाये जायेगे लंका इस्पेक्टर और दर्ज होगा पीड़ित दरोगा पर मुकदमा

मामले को लेकर सियासत अपने चरम पर है। एक तरफ जहा भाजपा इस मुद्दे को अपनी सियासत के इकबाल से जोड़ कर देख रही है और जिलाधिकारी ने प्रकरण में जाँच बैठा दिया है। वही दूसरी तरफ पुलिस विभाग में भी कानपुर की घटना के बाद हुई इस घटना को लेकर उदासी का माहोल है। राजनैतिक सूत्रों की माने तो सियासत इसमें अब अपने काम में लग चुकी है। सियासत की एक लाबी इस मामले में जहा दरोगा के खिलाफ उलटे ऍफ़आईआर दर्ज करवाने के लिए लामबंद है वही दुसरे तरफ भाजपा की ही एक लाबी मामले में लंका इस्पेक्टर के खिलाफ भी कार्यवाही को अपने सियासी इकबाल से जोड़ कर देख रही है। अब देखना होगा कि उच्चाधिकारी क्या सियासत के दबाव में आते है अथवा फिर अपने विभाग के तरफ खड़े रहते है।

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