जाने यूपीएससी में सफलता प्राप्त करने वाले अकरम, फ़िरोज़ और नादिया की मुश्किल हालातो में कामयाबी का सफ़र
तारिक आज़मी
युपीएससी का परीक्षा परिणाम जारी हो चुका है। सफलता प्राप्त करने वाले युवक युवतियों के कसीदो की कलमकारों ने भीड़ जुटा रखी है। इस भीड़ में ख़ास तौर पर उसको जगह तो मिल ही रही है जिसकी अपनी सामाजिक पहचान है। जिसके परिवार भी सामाजिक पहचान के साथ रहता है। मगर इस लिस्ट में कुछ ऐसे भी सेलेक्टेड कैंडिडेट्स है जिनके ऊपर मीडिया की नज़र अभी तक नही पड़ पाई है। शायद स्ट्रीम लाइट से दूर इन अभ्यर्थियों के लिए उनकी सफलता चुप चाप आकर उनके खुद के परिवार तक सीमित रह गई है। आइये आपको तीन ऐसे रैन्कर्स से रूबरू करवाता हु जिन्होंने अभाव के माहोल में भी खुद को निखार कर सोना बनाया है।
मणिपुर मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आज़ादी के बाद अभी तक केवल एक ही आईएएस अधिकारी को जन्म दिया था। इस बार इस ये यूनिवर्सिटी अपने मुकद्दर पर नाज़ कर रहे है क्योकि इस बार युपीएससी के लिस्ट में 188वी रैंक पाने वाला कैंडिडेट इस यूनिवर्सिटी का प्रोडक्ट है। उसने अपनी गरीबी के साथ शिक्षा इसी यूनिवर्सिटी में पाई है।
मोहम्मद अली अकरम शाह ने यूपीएससी में 188 रैंक हासिल करके खुद के नाम के साथ मणिपुर मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम भी रोशन कर दिया है। महज़ 6 साल की उम्र थी अकरम की जब उनके वालिद का साया उनके सर से उठ गया था। माँ ने अपनी गरीबी में दो रोटी कम खाया मगर अपने कलेजे के टुकडो को पढाया। बड़े बेटे को सीआईएसऍफ़ में नौकरी मिली तो माँ का सपना पूरा हुआ और घर में तंगहाली ने अलविदा कहा। घर में माली हालात भी दुरुस्त होने लगे। इसके बाद दुसरे बेटे मुहम्मद अली अकरम शाह ने अपनी पढाई जारी रखा। माँ की दुआ और भाई के प्रोत्साहन से मुहम्मद अली अकरम शाह ने यह सफलता प्राप्त किया। घर में अच्छे पकवान बना कर माँ खुशियाँ मना रही है। भाई अपने दोस्तों और सहकर्मियों से अपने भाई की इस सफलता के लिए खुद का सीना चौड़ा करके बता रहा है कि उसके भाई ने फक्र से उसका सीना चौड़ा कर दिया है। घर में ख़ुशी का माहोल है।
इस सिपाही को अब थानेदार भी करेगा सलाम
फ़िरोज़ आलम दिल्ली पुलिस ने बतौर कांस्टेबल पोस्टेड है। एक कांस्टेबल के तौर पर आने जाने वाले अधिकारियो को सलाम करना उसके कार्यो में आता है। पुलिसिंग के साथ दिन रात की मेहनत से भले फ़िरोज़ आलम का शरीर थकान से टूट जाता है। मगर महत्वाकांक्षा है कि टूटने का नाम नहीं लेती है। कुछ करने के लिये बेताब जागती आँखों से सपने देखने वाले फ़िरोज़ आलम ने अपराधियों का पीछा भी बतौर पुलिस किया तो वही अपने जागती आँखों का सपना भी पाल कर रखा और रोज़ ब रोज़ इस सपने को सजा कर रखा और पाल पोस कर बड़ा किया।
काम के दबाव के साथ साथ पढाई भी जारी रखा। युपीएससी का एग्जाम हुआ। वह पास हुआ और 645वी रैंक हासिल किया। इस परीक्षा के परिणाम को जानकार फ़िरोज़ के परिवार में तो बिन चाँद देखे ही ईद का माहोल कायम हो गया। ईद भी ऐसी की जिसकी सुबह न हो। सभी ख़ुशी से सराबोर हो गए। वही फ़िरोज़ के सहकर्मी अपने साथी की सफलता पर अलग ही इतराते दिखाई दे रहे है। मृदु भाषी और शर्मीले स्वभाव का एक कांस्टेबल जो जब थानेदार और क्षेत्राधिकारी के आने पर उनको सलाम करता था, अब कुछ ही समय के बाद उसको थानेदार और क्षेत्राधिकारी सलाम करेगे। आज का कांस्टेबल फ़िरोज़ आलम अब कल आईपीएस अधिकारी के तौर पर पहचाना जायेगा। सपनो को पंख होते है ये बात फ़िरोज़ ने साबित कर दिया है।
न फोन न इंटरनेट, संगीनों के साये में कैसे पाई नादिया ने सफलता
गुदड़ी में लाल की कहावत तो आपने सुना ही होगा। कुपवाड़ा की रहने वाली नादिया बेग ने इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है। एक शहर जहा एक साल से न इंटरनेट है और न ही फोन शुरू है। पढाई का एक साधन कोचिंग भी बंद है। ज़िन्दगी संगीनों के साये में बीत रही है। इस दरमियान कुपवाड़ा की गलियों में एक चराग-ए-सुखन रोशन रहा और आखिर उसने अपनी रोशनी से पुरे देश को अपने तरफ आकर्षित कर लिया।
नादिया बेग के पास न कोई कोचिंग संस्था का सहारा था और न ही कोई इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी। मगर नादिया के जज्बे को ये सभी मुश्किलें नही रोक पाई। वह अपनी तैयारी में इन मुश्किलों को रोड़ा नही बनने दिया। एकला चलो के तर्ज पर अपने सपनो को साकार करने के लिए नादिया ने न दिन देखा न रात। न देखा कि कोचीन बंद है और न ही देखा कि इंटरनेट बंद है। उपलब्ध किताबो से अपनी जानकारी को इतना बढाया कि नादिया बेग ने खुद का नाम पुरे देश में रोशन कर दिया। नादिया ने यूपीएससी परीक्षा पास करके एक मिसाल कायम किया है।