कहा खो गया इन देशभक्तों का इतिहास – बनारस के हरिश्चंद्र कालेज से तालीम हासिल किया था नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर उस्मान ने, पाकिस्तान ने रखा था उन पर इनाम

लगभग 900 से अधिक पाकिस्तानी सैनिको को हलाक कर देने वाले नौशेरा के शेर का आखरी लफ्ज़ था कि हम तो जा रहे है मगर ज़मीन के एक टुकड़े पर भी दुश्मनों का कब्ज़ा न होने पाये

तारिक़ आज़मी

बनारस की शान है हरिश्चंद्र कालेज। मगर यहाँ तालीम हासिल कर रहे छात्रो को भी शायद इसकी जानकारी नहीं होगी कि महान देशभक्त, नौशेरा के शेर का लकब पाए ब्रिगेडियर उस्मान, जिनकी देशभक्ति और बहादुरी के चर्चे सिर्फ सरज़मीन-ए-हिन्द में ही नहीं बल्कि दुश्मन मुल्को में भी थे, पकिस्तान जैसे दुश्मन पड़ोसियों ने अपनी आर्मी का चीफ बनाने का न्योता तक भेज दिया था। मगर वो देश भक्त, अपने मादर-ए-वतन से मुहब्बत करने वाले ने ठुकरा दिया। उसकी बहादुरी से आजिज़ आकर पाकिस्तान ने उसके ऊपर इनाम तक रख दिया था। जी हां, हम नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर उस्मान की बात कर रहे है। ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी शिक्षा बनारस के हरिश्चंद्र स्कूल में भी हासिल किया था।

आजमगढ़ के रहने वाले मुहम्मद फारुख के घर में अल्लाह ने उनको एक बेटा दिया जिसका जन्म 15 जुलाई, 1912 को हुआ। पिता मोहम्मद फारूख जो पुलिस में आला अधिकारी थे और माँ जमीलन बीबी जो घरेलू महिला थीं ने बड़े लाड दुलार से उस बच्चे का नाम उस्मान रखा। घर में हुई प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई वाराणसी के हरश्चिंद्र स्कूल में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला हुआ और डिग्री हासिल किया। एक बढ़िया खिलाड़ी और एक ज़बरदस्त वक्ता के तौर पर उस्मान को याद किया जाता है। कहा जाता है कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई देते है तो ऐसा हुआ भी। महज़ 12 साल की उम्र में ही उनका एक दोस्त कुआ में गिर गया। इसकी जानकारी होते ही उस्मान ने कुआ में छलांग लगा दिया और अपने उस दोस्त को बचा लिया।

भारतीय सेना में सेवा करते हुवे ब्रिगेडियर के पद पर तैनात उस्मान से पाकिस्तानी फौजे खौफ खाती थी। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जंग के मैदान में शहीद होने वाले बड़ी रैंक के पहले अफसर थे। बहादुरी ऐसी कि इंडियन आर्मी के इस अफसर को “नौशेरा का शेर” भी कहा जाता है। वतन परस्ती की ऐसी मिसाल पेश किया कि आज तक वैसी कोई मिसाल नही है। बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी सेना का चीफ बनने का मोहम्मद अली जिन्ना का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर थे,जिस दिलेर पर पाकिस्तान ने इनाम रखा था। आज भारत मां के उस वीर पुत्र और भारतीय सेना के महान अफसर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की जयंती है। 1948 को भारत पाकिस्तान की जंग में कश्मीर में नोशेरा की हिफाज़त करते हुए वह शहीद हो गए। उन्हें जामिया मिल्लिया के परिसर में सुपुर्द-ए-खाक़ किया गया। बाद में उन्हें महावीर चक्र से नवाज़ा गया। लेकिन आज मीडिया और न ही कोई नेता उनकी शहादत पर उन्हें याद करता है। ये तो छोड़े साहब इतिहास के पन्नो में उनका ज़िक्र अब तलाशना पड़ता है। हरिश्चंद्र स्कूल जहा से उन्होंने शिक्षा पाई उसको गर्व होना चाहिए कि ब्रिगेडियर उस्मान जैसे छात्रो को उन्होंने पढ़ा कर इस लायक बनाया। मगर उस विद्यालय में भी उनकी जयंती पर कोई कार्यक्रम आज तक मैंने नहीं सुना।

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