पैसे, पावर और सत्ता का खेल –

शीतल सिंह माया
हमाम में सब नंगे हैं… जी हां राज्यसभा की 27 सीटों पर हुए चुनाव को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि पैसा बोलता है. पैसा हो तो सत्ता की कुर्सी तक पहुंच आसान हो जाती है. ऐसे कई मामले हैं जो ये बताने के लिए काफी है कि पैसे से लोकतंत्र की ऊपरी सदन की सीट खरीदी जा सकती है.
किंगफिशर के मालिक विजय माल्या की बात हो या प्रसिद्ध दवा निर्माता कंपनी अलकेमिस्ट के मालिक केडी सिंह या इन जैसे कई बड़े बिजनेस धनाढ्यों की, जिन्होंने पैसे के बल पर राज्यसभा पहुंचने में कामयाबी हासिल की ये अलग बात है कि माल्या राज्यसभा तो पहुंचे लेकिन इसकी गरीमा बरकरार नहीं रख सके और एक जिम्मेदार प्रतिनिधि होने के बावजूद देश का माल लेकर फरार हो गए.

इसी तरह 2008 में केडी सिंह चुने तो गए झारखंड मुक्ति मोर्चा से लेकिन बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. चुनाव के वक्त खूब पेटियां खोली गईं, हॉर्स ट्रेडिंग भी हुई, हॉर्स ट्रेडिंग को अब राजनीति में फैशन के तौर पर देखा जाने लगा है जिनके पास ज्यादा माल है वो अपने लिए उतने अधिक घोड़ों का इंतजाम कर सकते हैं ये घोड़े अस्तबल में रहने वाले घोड़ों से थोड़े अलग हैं क्योंकि ये दाना और घास नहीं खाते इन्हें तो करारे नोट लुभाते हैं.
इस बार भी इन नोटों की गर्मी देखी गई,कर्नाटक में तो कैमरे के सामने विधायक महोदय करोड़ों की डील करते नजर आए. सवाल ये है कि क्या ऊपरी सदन में भी अब वो पुरानी शालिनता खत्म होती जा रही है जो कभी देखी जाती थी.
लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले ऊपरी सदन की परिकल्पना इसलिए की गई थी, ताकि एक ऐसे सदन का निर्माण किया सके जहां के प्रतिनिधि राजनीति से उपर उठकर देश के बारे में सोंच सकें, देश को रास्ता दिखा सकें. इसीलिए इस सदन में अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध लोगों को भी जगह देने की परंपरा शुरू हुई, जिनकी निष्ठा किसी एक राजनीति दल से न होकर देश के प्रति हो लेकिन लगता है कि अब ये थ्योरी फेल हो रही है.
अब तो राज्यसभा विधेयक पारित कराने के लिएCसंख्याबल की मशीन बन गई है जिसके जितने सांसद होंगे उन्हें सत्ता चलाने में उतनी आसानी होगी. इस लिहाज से इस बार बीजेपी मजबूत होकर उठी है 12 नए बीजेपी के सांसद सदन में पहुंचे हैं तो वहीं कांग्रेस की स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है. कांग्रेस के सिर्फ 6 सांसद राज्यसभा पुहंचने में कामयाबी हासिल की तो वहीं समाजवादी पार्टी को 7 सीटें मिलीं जबकि बसपा के खाते में 2 सीटें गई हैं.
अब सवाल है कि जब राज्यसभा की सीटें राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन जाए तो जोड़ तोड़ तो होनी ही है. हरियाणा में हुए चुनाव इसका उदाहरण है जहां कांग्रेसी विधायकों के बगावत से पार्टी समर्थित उम्मीदवार आरके आनंद हार गए. यहां कांग्रेस के 14 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. आनंद को इनेलो के प्रत्याशी के तौर पर खड़ा किया गया था, जिसे कांग्रेस समर्थन कर रही थी.
कांग्रेसी विधायकों की बगावत के कारण मीडिया मुगल सुभाष चंन्द्रा राज्यसभा पहुंचने में कामयाब रहे. सुभाष चन्द्रा के राज्यसभा पहुंचने पर हैरानी नहीं हुई क्योंकि पिछले काफी दिनों से वो बीजेपी के मंच पर सक्रिय दिखाई दे रहे थे और राजनीति के जानकारों को उम्मीद थी कि एक न एक दिन वे राज्यसभा में बैकडोर इंट्री जरूर करेंगे.
आंध्र प्रदेश से आने वाले और मोदी सरकार में मंत्री वेंकैया नायडू राजस्थान से राज्यसभा पहुंचे हैं
यूपी में भी मतदान के दौरान खूब क्रॉस वोटिंग चली हालांकि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार ही जीतने में कामयाब रहे. राजस्थान में भाजपा ने विपक्ष के लिए कोई मौका नहीं छोड़ा यहां चारों सीटें बीजेपी को मिली. वेंकैया नायडू भी राजस्थान से राज्यसभा पहुंचने में कामयाब रहे. तो सवाल फिर वही कि क्या राज्यसभा सिर्फ पैसे और पावर वाले लोगों की पनाहगाह बन गई है? क्या राज्यसभा को कभी स्थानीय प्रतिनिधि मिल पाएगा?
ऐसा प्रतिनिधि जो अपने क्षेत्र की सामाजिक और भौगोलिक ताने बाने को अच्छी तरह से समझते हुए विकास के लिए काम कर सके. ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है, अगर ऐसा होता तो झारखंड से पायलट उम्मीदवार नहीं उतारे जाते. झारखंड की जमीन से जुड़े लोग ही चुने जाते लेकिन विडंबना है कि यहां से बीजेपी के उम्मीदवार मुख्तार अब्बास नकवी राज्यसभा पहुंचने में कामयाब हो गए. ये आश्चर्य की बात नहीं है…ये हमेशा होता रहा है, पूर्व प्रधानमंत्री खुद असम से जीत कर आते रहे हैं. तो क्या हम ये कह सकते हैं कि हमाम में सभी नंगे है

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