..ये हैं “जयगुरुदेव” के अतीत का “काला सच”, ऐसे बनी थी “4000 करोड़” की संपत्ति , चलती काफिले में “लग्जरी कारें”

नई दिल्ली। 23 जनवरी 1975 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 78वीं जंयती के अवसर पर कानपुर के फूलबाग में हजारों की संख्या में भीड़ एकत्र थी क्योंकि शहर में कई महीनों से पर्चियों, होर्डिंग्स और संदेशों के जरिये बताया जा रहा था कि इस दिन नेताजी वापस लौटकर जनता के सामने आएंगे और लोग इसी का इंतजार कर रहे थे। कई घंटों के सस्पेंस के बाद एक सफेद दाढ़ी वाला इंसान मंच पर लोगों के सामने आया और अचानक ही भीड़ के बीच से कुछ लोगों ने ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, उसके बाद अगले कुछ मिनटों तक बिल्कुल शांति छा गई और फिर जैसे ही मंच पर नेताजी बनकर पहुंचे उस इंसान ने बोलना शुरू किया तो लोगों ने उस पर जूते और पत्थर फेंकना शुरू कर दिये। वह यकीनन नेताजी नहीं थे। उसने भागने की खूब कोशिश की लेकिन नेताजी के इंतजार में खड़ी भीड़ ने उसे पकड़कर खूब पीटा। क्योंकि लोग बड़ी उम्मीद से नेताजी की झलक देखने जमा हुए थे और उसे देखकर लोग गुस्सा हो गए। अगर उस दिन पुलिस ने वहां पहुंचकर उस शख्स की जान नहीं बचाई होती, तो शायद भीड़ ने उसे पीट-पीटकर मार डालती। खुद को नेताजी का अवतार बताने वाले इस जय गुरूदेव के नेताजी अवतार का यह अंत था।
1980 के दशक में इस तथाकथित गुरुदेव ने सामाजिक सुधार और आध्यात्मिक उत्थान का संदेश देते हुए अपनी ‘दूरदर्शी पार्टी’ का गठन किया। 1989 के लोकसभा चुनाव में उसने करीब 12 राज्यों में 298 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी खड़े किए जिसमें बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल महाराष्ट्र और दिल्ली शामिल था। हालांकि उसके हिस्से में एक भी जीत नहीं आई। अपने अस्तित्व के इन 2 दशकों में दूरदर्शी पार्टी का कोई चुनावी आधार तो नहीं बन सका, लेकिन गुरुदेव के लिए पैसों की गंगा बहनी शुरू हो गई। 18 मई 2012 को जब उनकी मौत हुई, तो उनकी संपत्ति 4,000 करोड़ की बताई गई।
जिसमें जमीन के अलावा 100 करोड़ रुपये नकद और 250 लक्जरी कारें शामिल थी जिनकी कीमत 150 करोड़ रुपये थी। खुद को ‘आध्यात्मिक गुरु’ कहने वाल वह इंसान जो अपना नाम जय गुरुदेव बताता था वो कहता था कि भक्तों के दिए दान से उनके पास संपत्ति जमा हुई है। हालांकि इस संपत्ति के बाबत कुछ और बातें भी कही जाती हैं। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम ने मथुरा की अलग-अलग अदालतों में गुरुदेव के आश्रम पर सैकड़ों एकड़ औद्योगिक जमीन हड़पने का आरोप लगाते हुए 16 मामले दर्ज कराए। मथुरा के तत्कालीन जिलाधिकारी संजीव मित्तल ने कहा था कि उन्हें गुरुदेव के आश्रम द्वारा किसानों की जमीन पर जबरन कब्जा करने संबंधी 23 शिकायतें मिली थीं।
गुरुदेव के इस कृत्य को देखें तो लगेगा कि गुरुवार को अदालत के आदेश के बाद मथुरा पुलिस द्वारा जवाहर बाग में की गई कार्रवाई करने में काफी देर हो गई और इस बाग पर उसी गुरुदेव के समर्थकों ने 2 साल से कब्जा जमाया हुआ था। जिस रामवृक्ष यादव इसका संचालक था वो कभी इन्हीं गुरूदेव का शिष्य हुआ करता था।
साभार : लाइवइंडिया 24

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