पूर्व DGP गुप्तेश्वर पांडेय – न माया मिली ना राम के तर्ज पर कही के नही रहे पुर्व डीजीपी साहब, आलीशान सियासी दफ्तर पर लगा बड़ा ताला
अनिल कुमार
“सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वो रोज़ा तो नही रखता मगर इफ्तारी समझता है.” सियासी महत्वाकांक्षा रखकर डीजीपी पद से वीआरएस लेकर सियासत के मैदान में आने वाले पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय़ अब कहीं के नहीं रहे. नौकरी छोड़ कर टिकट की चाहत लिए जदयु के सदस्य बने पाण्डेय जी ने खुद को बक्सर का बेटा बताते हुवे टिकट की चाहत पाल लिया. सीट का बटवारा हुआ तो जदयू के खाते में ये सीट थी ही नही तो पाण्डेय जी केवल बक्सर ही नहीं किसी भी जिले की सेवा करने के इच्छुक हो गए. मगर जदयू ने उनकी न सुनी और कही का भी टिकट नही दिया. एक उम्मीद थी कि शायद भाजपा उनको बक्सर का टिकट दे दे. मगर ये भी न हुआ और भाजपा ने भी पाण्डेय जी को गले नही लगाया और आखिर पाण्डेय जी के बक्सर स्थित आलीशान सियासी कार्यालय पर ताला लग गया है.
दरअसल बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने पिछले महीने आनन फानन में वीआरएस ले लिया था. इरादा साफ था-सियासी पारी खेलना. लिहाजा कुछ दिन पहले बकायदा जेडीयू की सदस्यता ग्रहण कर ली. गुप्तेश्वर पांडेय के लोगों ने बक्सर में अपना चुनावी कार्यालय भी खोल लिया था. प्रचार शुरू हो गया था कि पांडेय जी ही बक्सर से उम्मीदवार होंगे. जेडीयू सूत्रों की मानें तो पांच दिन पहले ही जेडीयू ने उन्हें बता दिया था कि टिकट नहीं मिलने वाला.
सूत्रों के मुताबिक गुप्तेश्वर पांडेय रात में सीएम आवास पहुंचे थे. वहां उन्हें साफ साफ कह दिया गया कि बक्सर से टिकट नहीं मिलने वाला. पांडेय जी ने तब बेगूसराय से टिकट देने की मांग रख दी थी. इसके बाद नीतीश कुमार नाराज हो गये थे. पांडेय जी बैरंग वापस लौटे थे. और फिर पाण्डेय जी ने भाजपा में जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया था.
बीजेपी के एक नेता के मुताबिक गुप्तेश्वर पांडेय ने जेडीयू के इंकार के बाद बीजेपी में जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया था. उन्होंने बीजेपी को मैनेज करने की पूरी कोशिश की. पटना से लेकर दिल्ली तक के नेताओं को पकड़ा गया. लेकिन बीजेपी मानने को तैयार नहीं हुई. बक्सर से बीजेपी ने आज अपने उम्मीदवार के नाम का एलान कर दिया. परशुराम चतुर्वेदी को बीजेपी ने टिकट दिया था. वही बक्सर से मिल रही खबर के मुताबिक आज शाम गुप्तेश्वर पांडेय के चुनाव कार्यालय पर फाइनली ताला लगा दिया गया. उनके समर्थक निराश होकर लौट गये हैं. वही पाण्डेय जी की सियासी पारी शुरू होने से पहले खत्म होती दिखाई दे रही है.