उत्तर प्रदेश पुलिस – कही वेतन विसंगति का शिकार तो नहीं है।

                                              ★तारिक़ आज़मी की कलम से।
आज की सुबह भी बड़ी विचित्र थी। पता नहीं किसका मुह देख लिया कि आधा दिन सिर्फ चपड़गंजुवो से झक झक में ही निकल गया। लगता है शायद आइना देख लिया होगा। भूल ही गया था कि जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता वो भी गाज़ियाबाद के नुक्कड़ पर उधार की चाय पीते हुवे खुद को देवबंद का महाराजा साबित करने पर तुला रहता है। शायद मति ही मारी गई थी मेरी कि मैंने बन्दर को घर बनाने की सलाह दे डाली। अब बन्दर तो घर बनाने से रहा मैं अपना घर ही बनाना भूल गया। अर्थात आज का अपना काम ही ध्यान से उतर गया। शायद भूल गया था कि रोड साइड रोमियो लड़कियो के सामने सुपर मैंन बनते ही है।
चलो साहब देर आये दुरुस्त आये। अब की जाय काम की बात और लगा जाय काम पर। आज तक के अपने पत्रकारिता के जीवन मे मैंने पुलिस की कमिया लाख गिनवाई है, मगर आज मन किया कुछ कड़वा सच अपने प्रदेश के उन इंसानो के लिए भी लिखा जाय जिनके दम्भ पर हम खुले आसमान के नीचे साँसे लेते है। चलिए आज उत्तर प्रदेश पुलिस के सम्बन्ध में कुछ ज़मीनी हकीकत से रूबरू होते है और पता करने की कोशिश करते है कि जिस विभाग पर हम सर्वाधिक उंगलिया उठाते है कही वह विभाग खुद किसी शोषण का शिकार तो नहीं है।
आइये सबसे पहले पुलिस विभाग के कांस्टेबल के वेतन पर ध्यान दिया जाय और इसकी समीक्षा की जाय। तीसरा वेतन आयोग यह मानता था कि एक पुलिस कांस्टेबल उतनी ही मेहनत करता है जितनी एक शिक्षक करता है और उससे थोडा सा कम राज्य कर्मचारी करता है। इसी कारण वेतनमान जो दिया वह शिक्षक और कांस्टेबल को 364 रुपया और राज्य कर्मचारी को 354 रुपया दिया गया। समय बदला और चौथे वेतन आयोग ने माना कि राज्यकर्मचारी शिक्षक और से ज़्यादा मेहनत करता है और सबसे कम मेहनत कांस्टेबल करता है। तो उसने राज्यकर्मी को 1200 शिक्षक को 1150 और कांस्टेबल को 950 रुपयो का वेतनमान दिया। यहाँ से शुरू हुई वेतन विसंगति जो समय समय पर एक बड़ा गैप लेती गई। पंचम वेतन आयोग ने शिक्षक को सर्वोपरि मानते हुवे 4500 राज्यकर्मी को 4000 और कांस्टेबल को 3050 का वेतनमान प्रदान किया।
छटवे वेतन आयोग ने इस गैप को अत्यधिक बढ़ा दिया और शिक्षक को 9300 तथा राज्यकर्मी व कांस्टेबल को 5200 को वेतनमान दिया। इसके साथ आया पे बैंड जिसको ठेठ भाषा में बेसिक पे कहा गया। इसमें शिक्षक को 4200 राज्यकर्मी को 2400 और पुलिस कांस्टेबल को 1900 का मान प्रदान किया गया। बाद में इस 1900 को 2000 कर दिया गया।
अब हम बात करते है कुछ अचम्भे की। जिसको सुनकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जायेगे कि आखिर क्या ऐसा संभव है। चलिए पहले अपराध और अपराधी की बात करते है। आज अपराधी हाईटेक और तेज़ रफ़्तार वाहनो से चलते है मगर हमारी प्रदेश सरकार आज भी यह आशा करती है कि उसका कांस्टेबल 150 रुपया महीने का ले और अपनी सायकल को मेंटेन करके मोटरसाइकल से भागते अपराधी को दौड़ा कर पकड़ ले। अब आप सोचो कितने कमाल की बात है न। मैं तो कहता हु साहेब आज तक जितने भी कांस्टेबल ने किसी अपराधी को पकड़ा हो तो उन सभी को ओलम्पिक की सायकल दौड़ में भेजा जाय, कसम से सारे सोने के तमगे अपने प्रदेश के ये सिपाही जीत लेंगे।
यही यह खत्म नहीं होता है। सरकार सभी कांस्टेबल से आशा करती है कि वह 50 रुपया महीना ले और रोज़ वर्दी धुलवा कर बढ़िया प्रेस करवा कर अपनी ड्यूटी पर आये। कसम से आज तक उस दुकानदार का पता नहीं चला है जो महीने का 50 रुपया लेकर रोज़ एक वर्दी धोकर उसको बेहतरीन प्रेस करके दे। तलाश तो आज भी उस दूकान की है साहेब।
अब आते है वर्दी की बनवाई पर, दो जोड़ी वर्दी सालाना हर सिपाही की अति आवश्यकता होती है। एक गर्म कपड़ो की ठण्ड के दिनों हेतु और एक सूती गर्मी के दिनों के लिए। इस वर्दी को बनवाने के लिए सरकार वर्दी अलवेन्स भी देती है जो प्रति 2 वर्षो में 1280 रुपया होता है। अब ये समझ सकते है आपलोग की कपड़ो की खरीद और फिर उनको सिलवाना इतने पैसो में कैसे संभव है। नार्मल पेंट शर्ट की सिलवाई इस समय 500 प्रति जोड़े है। दो की सिलवाइ लगभग 1000 हुई नार्मल पेट शर्ट की। वर्दी की सिलवाई इससे कुछ ज़्यादा होती है मगर हम इतनी ही मानते है तो फिर 280 रुपयो में कपडे कहा मिलेगे ये मुझको आज तक नहीं पता।
इसके बाद अब ड्यूटी की बात करता हु, एक शिक्षक और एक राज्य कर्मचारी की ड्यूटी अमूमन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक होती है जबकि पुलिस कर्मियो की ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं है। अब ऐसी स्थिति में शिक्षक और राज्यकर्मी अपनी एसोसिएशन बना सकते है परंतु पुलिस कर्मी अपनी एसोसिएशन भी नहीं बना सकते है।
अब समय है जब पुलिस कर्मियो के वेतन हेतु सरकार को विचार करना चाहिए।
नोट- वेतन वर्गीकरण के आंकड़े 2 वर्ष पुराने है।

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