हाथरस केस – अदालत ने पूछा हाथरस डीएम से, क्या पीडिता बड़े आदमी की बेटी होती तो उसे इसी तरह जला देते ?
तारिक खान
लखनऊ. हाथरस के पीड़ित परिवार के पांच लोग आज इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पहुंचे। हाईकोर्ट ने पीड़ित लड़की के देर रात अंतिम संस्कार करने के मामले का खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है। पीड़ित परिवार ने अदालत से कहा कि उन्हें लड़की का मुंह भी नहीं देखने दिया गया और ज़बरदस्ती उसको जला दिया गया। कोर्ट ने डीएम से पूछा कि अगर वो किसी बड़े आदमी की बेटी होती तो क्या उसे इस तरह जला देते?
पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि “कोर्ट का कहना है कि अगर पीड़ित परिवार की जगह कोई बहुत ही रिच पर्सन होता तो क्या इस तरीक़े से आप जला देते। चूंकि कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है, इसलिए पूरा सेंसिटिव होकर सुन रहा है।”
हाथरस के डीएम ने कहा कि रात में लड़की का अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला उनका था। दिल्ली में लड़की का शव पोस्टमॉर्टम के बाद 10 घंटे रखा रहा। गांव में भीड़ बढ़ती जा रही थी। लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने का खतरा था इसलिए ऐसा किया गया। कोर्ट ने पूछा कि क्या और फोर्स बढ़ाकर अंतिम संस्कार के लिए सुबह होने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता था?
एडीशनल एडवोकेट जनरल वीके शाही ने कहा कि ”उन्होंने अपना पक्ष रखा, हमने अपना पक्ष रखा है। हमने किन परिस्थितियों में किया है…प्रिवेलिंग लॉ एंड ऑर्डर सिचुएशन क्या थी।।उन चीज़ों को एक्सप्लेन किया है। बाक़ी कोर्ट का जब आदेश आएगा तो उसके ऊपर है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लड़की के अंतिम संस्कार के मामले का खुद संज्ञान लेकर इस पर सुनवाई का आदेश दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा था कि वह इस बात का परीक्षण करना चाहती है कि क्या यह पीड़ित लड़की और उसके परिवार के मौलिक अधिकार और मानवाधिकार का उल्लंघन है? क्या सरकारी अमले ने लड़की की गरीबी और उसकी जाति की वजह से उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया? क्या अंतिम संस्कार में सनातन हिंदू धर्म की रीतियों का पालन हुआ? क्या सरकारी अमले ने यह सब “दामन पूर्वक”, “गैर क़ानूनी तौर पर” और “मनमाने” ढंग से किया?