काशी के “अक्षयवट” वृक्ष को संरक्षित करने के लिए एडवोकेट शशांक शेखर ने लिखा चिट्ठी
ए जावेद
वाराणसी। काशी के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवक एड शशांक शेखर ने एक पत्र लिख कर काशी के “अक्षयवट” वृक्ष को संरक्षित करने की मांग किया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि यह काशी विश्वनाथ परिसर स्तिथ अत्यंत पौराणिक एवं दैवीय “अक्षयवट” वृक्ष है। अक्षय वट वृक्ष भारत मे 3 जगहों पर दर्शन हेतु उपलब्ध है। मुख्य अक्षयवट प्रयागराज में है, दूसरा काशी एवं तीसरा गया में है। अक्षयवट का धार्मिक महत्व शास्त्र-पुराणों में कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज के संगम तट पर आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है- नगर में एक देव मंदिर पातालपुरी है। यह अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष अक्षयवट है, जिसकी शाखाएं, पत्तियां और जड़ें दूर-दूर (काशी और गया) तक फैली हैं।
पत्र में उन्होंने उल्लेख किया है कि भारत की आजादी के बाद भी अभी मात्र 2 वर्ष पूर्व तक अकबर के किले में बंद इस अक्षय वट का दर्शन एवं पूजन आमजन के लिए प्रतिबंधित था। किसी ने इस विषय की सुध कभी नहीं ली थी। लेकिन दिसम्बर 2018 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस विषय को संज्ञान लेकर, अकबर के किले में खुद जाकर इस दैवीय वृक्ष का दर्शन पूजन किया था एवं आमजन पर वृक्ष के दर्शन एवं पूजन पर लगे प्रतिबंध को समाप्त करवाया था। ये सनातन संस्कृति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
उन्होंने लिखा है कि एक तरफ़ जहां प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री एक अक्षयवट का पूजन करतें हैं, उसके प्रतिबंधों को खत्म करातें हैं वहीं दूसरी तरफ़ काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण में उसी अक्षयवट को छल पूर्वक हटाने की तैयारियां हो रही हैं? क्या धर्म और पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी मन्दिर परिसर में एक वृक्ष को 8-10 स्क्वायरफुट की जगह नहीं मिल सकती? विस्तारीकरण में सैकड़ों विग्रहों को हटा दिया गया, दसियों मंदिरों को तोड़ दिया गया परन्तु अब आस्था और पर्यावरण से जुड़े एक वृक्ष को तो कम से कम संरक्षित कर दीजिए।।मुझे पूर्ण आशा एवं विश्वास है की उपरोक्त विषय पर आप संज्ञान लेके काशी के इस अत्यंत पौराणिक एवं धार्मिक महत्व वाले अक्षयवट को संरक्षित करने की दिशा में प्रयास करेंगे।