सुन मितवा ये धरती अपनी है अपना अम्बर है ये.. पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष

पृथ्वी दिवस पूरे विश्व में 22 अप्रॅल को मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस को पहली बार सन् 1970 में मनाया गया था। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना था। पृथ्वी पर अक्सर उत्तरी ध्रुव की ठोस बर्फ़ का कई किलोमीटर तक पिघलना, सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओज़ोन परत में छेद होना, भयंकर तूफ़ान, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदाओं का होना, जो भी हो रहा है इन सबके लिए मनुष्य ही ज़िम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिग के रूप में जो आज हमारे सामने हैं। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। जीव-जन्तु अंधे हो जाएंगे। लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाके चपेट में आ जाएंगे।

पृथ्वी दिवस नेटवर्क की स्थापना 1970 में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण नागरिकता और साल भर उन्नति को बढ़ावा देने के लिए पृथ्वी दिवस के आयोजकों और डेनिस हायस के द्वारा की गयी थी। पृथ्वी दिवस के नेटवर्क के माध्यम से, कार्यकर्ता, राष्ट्रीय, स्थानीय और वैश्विक नीतियों में परिवर्तनों को आपस में जोड़ सकते हैं। अन्तराष्ट्रीय नेटवर्क 174 देशों में 17,000 संस्थानों तक पहुँच गया है, जबकि घरेलू कार्यक्रमों में 5,000 समूह और 25,000 से अधिक शिक्षक शामिल हैं, जो साल भर कई मिलियन समुदायों के विकास और पर्यावरण सुरक्षा कार्यकर्ताओं की मदद करते हैं।

भारत में प्रतिवर्ष पॉलीथिन का उपयोग

भारत में प्रतिवर्ष लगभग 500 मीट्रिक टन पॉलीथिन का निर्माण होता है, लेकिन इसके एक प्रतिशत से भी कम की रीसाइकिलिंग हो पाती है। यह अनुमान है कि भोजन के धोखे में इन्हें खा लेने के कारण प्रतिवर्ष 1,00,000 समुद्री जीवों की मौत हो जाती है। ज़मीन में गाड़ देने पर पॉलीथिन के थैले अपने अवयवों में टूटने में 1,000 साल से अधिक ले लेते हैं। यह पूर्ण रूप से तो कभी नष्ट होते ही नहीं हैं। जिन पॉलीथिन के थैलों पर बायोडिग्रेडेबल लिखा होता है, वे भी पूर्णतया इकोफ्रेंडली नहीं होते हैं।

ग्लोबल वार्मिंम

पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि ही ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। 20वीं शताब्दी के आरंभ से ही पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी की शुरुआत हो गई थी। पृथ्वी के तापमान में पिछले सौ सालों में 0.18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की वृद्धि हो चुकी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो 21वीं सदी के अंत तक 1.1-6.4 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बढ जाएगा।

ग्रीन हाउस गैसेज

हमारी पृथ्वी पर कई ऐसे केमिकल कम्पाउंड पाए जाते हैं, जो तापमान को संतुलित करते हैं। ये ग्रीन हाउस गैसेज कहलाते हैं। ये प्राकृतिक और मैनमेड दोनो होते हैं। जैसे- वाटर वेपर, मिथेन, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड आदि। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं, तो इनमें से कुछ किरणें (इंफ्रारेड रेज) वापस लौट जाती हैं। ग्रीन हाउस गैसें इन किरणों को सोख लेती हैं और वातावरण में हीट बढाती हैं। ग्रीन हाउस गैस की मात्रा स्थिर रहती है, तो सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचने वाली किरणें और पृथ्वी से वापस स्पेस में पहुँचने वाली किरणों में संतुलन बना रहता है, जिससे तापमान भी स्थिर रहता है। दूसरी ओर, हम लोगों (मानव) द्वारा निर्मित ग्रीन हाउस गैस असंतुलन पैदा कर देते हैं, जिसका असर पृथ्वी के तापमान पर पडता है। यही ग्रीन हाउस प्रभाव कहलाता है।

बचाने के उपाय

बाज़ार जाते समय साथ में कपड़े का थैला, जूट का थैला या बास्केट ले जानी चाहिए।
हम प्रत्येक सप्ताह कितने पॉलीथिन थैलों का इस्तेमाल करते हैं, इसका हिसाब रखें और इस संख्या को कम से कम आधा करने का लक्ष्य बनाएं।
यदि पॉलीथिन थैले के इस्तेमाल के अलावा कोई और विकल्प न बचे तो एक सामान को एक पॉलीथिन थैले में रखने के स्थान पर कई सामान एक ही थैले में रखने की कोशिश करें। घर पर पॉलीथिन थैलों का काफ़ी उपयोग किया जाता है। जैसे लंच पैक करना, कपड़े रखना या कोई अन्य घरेलू सामान रखना, इनमें से कुछ को कम करने का प्रयास करे।
पॉलीथिन के थैलों से जितना बच सकते हैं बचें। पॉलीथिन के थैलों को एक बार इस्तेमाल कर फेंकने के स्थान पर उनका पुन: प्रयोग करने का प्रयास करे। स्थानीय अखबारों में चिट्ठिया लिखकर, स्कूल में पोस्टर के द्वारा या प्रजेंटेशन से इस मसले पर जागरुकता फैलाने का काम करें।
बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे अपने पुराने खिलौने तथा गेम्स ऐसे छोटे बच्चों को दे दें जो कि इसका उपयोग कर सकते हैं। एक तरह से यह रिसाइक्लिंग प्रक्रिया ही होगी क्योंकि एक तो आपके घर की सामग्री नष्ट होने से बच जाएगी, दूसरे जिसे वह मिलेगी उसे बाहर से पर्यावरण के लिए नुकसानदायक सामग्री ख़रीदनी नहीं पड़ेगी। इससे बच्चों में त्याग की भावना भी बलवती होगी। केवल बच्चों ही नहीं बड़े लोग भी अपने कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान तथा पुस्तकें भेंट कर सकते हैं।

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