पेशे से है बैंकर मगर इन्सानियत की खिदमत में जी जान से जुटे शख्सियत का नाम है मनीष टंडन, रातो के अँधेरे में गरीबो को सहायता प्रदान कर रहा HDFC बैंक सर्किल हेड
ए0 जावेद
वाराणसी। रात के घुप अँधेरे में वीरान सडको पर एक लग्ज़री गाडी उन अंधेरो को चीरती हुई चली जा रही थी। कुछ नई किस्म की खबर के लिए निकले हमारे पाँव यानी मेरे मोटर सायकल उस गाडी के पीछे थी। अचानक मुस्लिम बाहुल्य एक ग्राम (किसी के अनुरोध पर हम गाँव का नाम नही लिख रहे है) के सकरे रास्ते में वह गाडी उतर गई। गरीब तबके के इस गाव में इस लग्ज़री गाडी के जाने का सबब हम समझ नही पाए तो अपनी बाइक को भी हम वही दिशा देकर बढ़ चले। कुछ ही आगे जाने के बाद वह गाडी रुक जाती है। हम भी अपनी बाइक इस तरीके से किनारे करते है कि किसी की नज़र न पड़े।
हमारी नज़र उस गाडी पर थी। तभी तीन चार युवक जो पहले से ही वहा मौजूद थे और पहनावे से सभ्य लग रहे थे उस गाडी के पास आते है। गाडी की ड्राइविंग सीट से एक मजबूत कदकाठी का शख्स लोवर और टीशर्ट में बाहर आता है। गाड़ी की डिग्गी और पिछली सीट से कुछ पैकेट निकाले जाते है। हमारी जिज्ञासा बढने लगी। आखिर कौन है ये लोग ? क्या कोई स्मगलिंग गैंग तो नहीं। पहले सोचा सहायता हेतु पुलिस को फोन करू। मगर थोडा संयम रखकर आगे का सीन देखना सही समझा।
लगभग काफी पैकेट निकले गाडी से। युवक उन पैकेटो को लेकर घरो के आगे जाते और दरवाज़ा खटखटा कर धीरे से देकर वापस गाडी के पास आकर दुसरे पैकेट लेकर जाते दुसरे को देते। हमारे सब्र की सभी दहलीज़ खत्म हो चुकी थी। आखिर कार के पास खड़े उस व्यक्ति से जाकर मैं मैंने मिलने का फैसला किया। पास जाकर देखा तो ये एचडीऍफ़सी बैंक सर्किल हेड मनीष टंडन थे। मनीष को मैं पहले से जानता हु। पिछले लॉक डाउन में मनीष टंडन ने काफी जनसेवा किया था। मुझको देख कर थोडा मनीष टंडन भी चिहुक गये। सबसे पहले उनकी नज़ारे हमारे मोबाइल पर पड़ी। मैं समझ सकता था वो क्या कहना चाहते है तो मैंने मोबाइल अपने जींस की पाकेट में रख लिया।
हमने देखा उन पैकेटो में सिवईया, चीनी, राशन, तेल घी और कपडे थे। इसके अलवा एक शरबत रूहअफज़ा और खजूर की पैकेट थी। हमको समझते देर न लगी कि मनीष इस बार कुछ अलग रात के अँधेरे में कर रहे है। मनीष टंडन वो कमाई कमा रहे है इन रात के सियाह अँधेरे में जिसको कमाने के लिए जिगर चाहिए होता है। हमने एक फोटो की दरख्वास्त किया तो मनीष ने बड़े ही मुलामियत से मुझे इसके लिए मना कर दिया। उनके साथ युवक तेज़ी के साथ लोगो के घरो तक पैकेट पंहुचा रहे थे। जिन घरो के दरवाज़े बजते, जिनके हाथो में पैकेट होती उनके चेहरे पर एक सुकून और अचम्भे का भाव होता।
आखिर हमने मनीष से पूछ ही लिया। मनीष, लोग समाजसेवा करते है। फोटो खिचवाते है। दिन के उजाले में करते है। आप इस तरीके से बिना शोर शराबे के रात के अँधेरे में ये कार्य कर रहे है। मनीष टंडन के चेहरे पर एक सुकून की मुस्कराहट थी। उन्होंने कहा, “देखिये, समाज हमारा है। हम इस समाज के एक हिस्सा है। हमारा कर्तव्य जैसे हमारे परिवार के लिए बनता है वैसे ही हमारे समाज के लिए भी बनता है। हम जब अपने परिवार के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते है तो किसी को बताते नही। कोई समाचार संकलन नही करवाते है। कोई फोटो नही खिचवाते है। फिर इस कर्तव्य के निर्वहन में कैसे शोर शराबा करना ?”
बताते चले कि मनीष टंडन पिछले वर्ष अप्रैल के अंत से लेकर अभी तक ज़रुरतमंद लोगो को अपने पास से राशन उपलब्ध करवा रहे है। जब समाज में लॉक डाउन खुलने के बाद लोगो ने इस प्रकार के कार्य करने बंद कर दिए थे तब भी मनीष लोगो तक राशन भेजते रहते थे। अभी जब महामारी में दुबारा आपदा सर पर आकर खडी है तो मनीष ने अपने कामो में और भी तेज़ी ला दिया है। रोज़ ही उनके द्वारा समाज के गरीब तबके के लिए कुछ न कुछ किया जा रहा है। पेज थ्री के चकाचौंध से दूर रहने वाले मनीष टंडन इसी प्रकार से लोअर टीशर्ट में निकल जाते है और खिदमत-ए-खल्क करते रहते है।
मनीष हर माह अपने वेतन का 25% समाजसेवा के कार्यो में खर्च करते है। आज मनीष टंडन को ऐसे काम करते देख मन प्रफुल्लित हो गया। बेशक मैं मनीष टंडन से किये गए अपने वायदे के मुखालिफ काम कर रहा हु। मैंने उनसे वायदा किया था कि मैं इस सम्बन्ध में कुछ भी नही किसी को बताऊंगा। बेशक मनीष मुझसे बुरा मान सकते है कि मैंने अपना वायदा नही निभाया। मगर मनीष के इस समाज सेवा को आम जन के सामने आना भी ज़रूरी है। सियासत के पैरोकार जिस वक्त घरो में दुबके पड़े है ऐसे वक्त में एक बैंकर खुद के जेब से खर्च करके लोगो की खिदमत कर रहा है। हम दिल से ऐसे समाजसेवक को सलाम करते है और उनके कार्यो की सराहना करते है। मनीष टंडन जैसे लोगो के नाम से आज इन्सानियत जिंदा है।