पुलिस की ये तस्वीर देख कर आपके मन में उसके लिए सम्मान नही जागता है, तो माफ़ कीजियेगा आप इंसान नहीं है

तारिक खान

अमूमन पुलिस हमारी आपकी आलोचनाओं की शिकार रहती है। जितना भी अच्छा काम करे, मगर उसके लिए आलोचना ही हिस्से आती है। हालात कुछ बयाँन करती हुई एक हमारे दोस्त की पोस्ट काफी मजेदार हो सकती है। उन्होंने मुझे लिखा “समुन्द्र मंथन के बाद निकले अमृत को सभी ने पिया, उसके बाद खाली लोटा पुलिस को थमा दिया गया। पुलिस लोटा खाली देख कर कुछ बोल भी न सकी और समझा गया कि वह अमृत पी कर बैठी है। आज भी पुलिस इस बात को नहीं बता पाती है कि लोटा तो खाली था।”

भले ही पुलिस के लिए ये पोस्ट एक हसी में लिखी गई उसकी तारीफ हो मगर हकीकत देखे तो अक्सर ये देखने को मिलता है। कोरोना काल में कई पुलिस की तस्वीरे ऐसे आ रही है जिसको देख कर मन में पुलिस के लिए इज्ज़त बढ़ जा रही है। अभी पिछले हफ्ते लखनऊ से एक तस्वीर आई थी जिसमे एक व्यक्ति के देहांत होने के उपरांत उसके अंतिम संस्कार हेतु परिजन में कोई नही सामने आया तो स्थानीय पुलिस ने अंतिम संस्कार किया। खुद ही शव को नहलाया, उसको कफ़न पहनाया और फिर उस मय्यत को कन्धा देकर शव का अंतिम संस्कार किया।

लखनऊ में एक पत्रकार के आकस्मिक निधन के बाद उसके परिवारवालों, शुभचिंतकों और अन्य द्वारा अंतिम संस्कार में आने से स्पष्ट मना कर दिया गया। इस पर गोमतीनगर थाने के प्रभारी निरीक्षक ने अपने पुलिसकर्मियों द्वारा पूरे विधि विधान से शव अंतिम संस्कार कराया। इसी तरह लखनऊ के बाजारखाला थाना क्षेत्र में 24 अप्रैल को एक ठेले वाले की मृत्यु हो गई। परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था, इस पर बाजारखाला थाना प्रभारी ने शव को श्मशान ले जाने के लिए वाहन का इंतजाम कराया और अंतिम संस्कार के लिए अपने पास से परिवार की आर्थिक सहायता भी की।

थाना तालकटोरा क्षेत्र में एक पुजारी की मृत्यु हो गई। परिवार में कोई पुरुष नहीं था। पत्नी और बेटी दोनों ही मानसिक रूप से विक्षिप्त थीं। पड़ोसी भी कोरोना के डर से किसी तरह परिवार की मदद नहीं कर रहे थे। पुलिस को जब सूचना मिली तो पार्थिव शरीर का विधि विधान से दाह संस्कार कराया। इसी तरह लखनऊ के रविंद्रपल्ली थाना क्षेत्र में एक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई। उनका बेटा कनाडा और बेटी राजस्थान में रहती है। पुलिस ने खुद आगे बढ़कर बुजुर्ग का अंतिम संस्कार कराया और बुजुर्ग की पत्नी के खाने-पीने आदि की व्यवस्था भी की।

गोरखपुर में एक महिला की मृत्यु होने पर उन्हें श्मशान घाट तक ले जाने के लिए कोई व्यक्ति आगे नहीं आया। ये जानकारी ट्वीट के माध्यम से जब पुलिस को मिली तो एसपी सटी ने नगर आयुक्त और प्रभारी प्रवर्तन दल के सहयोग शव को एंबुलेंस से श्मशान घाट पहुंचाया और उनका दाह संस्कार कराया। साथ ही घर को सैनेटाइज करवाया। 25 अप्रैल को अपनी मां के अंतिम संस्कार के लिए एक व्यक्ति ने बिजनौर पुलिस से गुहार लगाई, जिस पर पुलिस ने शव का दाह संस्कार करवाया।

इसी तरह जौनपुर में एक बुजुर्ग को अकेले ही पत्नी का शव साइकिल पर लेकर चलना पड़ा, क्योंकि गांव वालों ने अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था। मामले में पुलिस ने शव को साइकिल से उतारकर विधि विधान से दाह संस्कार कराया। मुरादाबाद में एक व्यक्ति की कोरोना से मौत के बाद उसकी अर्थी को कंधा देने के लिए चौथा शख्स नहीं मिला रहा था। बावजूद इसके लिए मौके पर भीड़ उपस्थित थी। ऐसे में एक सिपाही ने खुद आगे बढ़कर कंधा दिया। नोएडा में एक व्यक्ति की मौत के बाद कई घंटे शव लोगों के इंतजार में पड़ा रहा। आखिरकार सेक्टर 19 पुलिसकर्मियों ने अर्थी को कंधा श्मशान पहुंचाया और चिता के लिए लकड़ियों की भी व्यवस्था की।

कानपुर नगर कमिश्नरेट में 29 अप्रैल को एक व्यक्ति की मौत के बाद कोई आगे नही आ रहा था, यहां बारा थाने के चौकी प्रभारी ने नगर निगम से शव वाहन बुलवाया और अंतिम संस्कार करवाया। एटा के गांव सिंहपुर में जब कोविड संक्रमित युवक की मौत के बाद परिजनों ने शव तक लेने से इंकार कर दिया तो बागवाला थाना प्रभारी ने अंतिम संस्कार करवाया। कुछ ऐसा ही जालौन में भी हुआ। यहां 16 अप्रैल को प्रभारी निरीक्षक कोतवली ने मृतक का अंतिम संस्कार कराया। मैनपुरी और बदायूं में भी व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए जब कोई नहीं आया तो पुलिस ने ही कधा दिया और पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कराया।

इस तस्वीर को देखकर आप भी कह उठेगे….. जय हिन्द

ऐसी ही एक तस्वीर हमारे एक दोस्त ने हमको भेजी है। तस्वीर 11 माह पुरानी भले हो मगर आगरा के थाना एतमातुद्दौला में तैनाते के समय एसआई प्रशांत कुमार ने अपने हमराही के साथ एक लावारिस लाश को उसके अंतिम संस्कार का हक़ दिलवाने का काम पुलिस के एक दरोगा और कांस्टेबल ने किया। अंतिम संस्कार में लोग आसपास नही आ रहे थे। दोनों ने शव को अपने कंधे पर लादा और ले जाकर पोस्टमार्टम करवाया। भले अभी भी कुछ चम्पट लोग ये कहे कि शायद इसमें उनका स्वार्थ हो। शायद इसमें उनको कोई लाभ हो। मगर ऐसी सोच रखने वालो से सिर्फ इतना ही कहूँगा कि इस तस्वीर को एक नहीं बल्कि 100 बार देखे। बार बार देखे ज़ूम करके देखे। और फिर सोचे क्या वो कभी ये काम कर सकते है। शायद एक जन्म नही बल्कि पुरे 7 जन्म लेकर भी ये मनावता का काम नही कर सकते है। मैं कभी पुलिस का समर्थक नही रहा हु। मैं मानता हु कि मैं उनका गुड वर्क की जगह बैड वर्क दिखाना पसंद करता हु। मगर हकीकत है इस तस्वीर को देख कर दिल से यूपी पुलिस को सलाम करता है। गर्व है यूपी पुलिस पर हमको जिसके हिम्मत ने और इन्सानियत ने एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है। आपदा के इस काल में वाकई यूपी पुलिस ने सेवा का अवसर तलाश लिया है।

 

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