आ जाओ बिट्टू की घर सुना है।

आगरा। माया। वो उड़ती पतंग सा था, बातें ख्वाबों सी। लैपटॉप पर अंगुलियां चलतीं, तो चौंकातीं। चौदह की उम्र में खुद को बड़ा मानता था। उसकी हर खूबी, हर याद, हर बात अब हर अपने को रुलाती है। पांच जनवरी को साइकिल से कोचिंग पढ़ने गया बिट्टू ऐसा गायब हुआ कि अब तक कोई खबर नहीं आई। उसका बिस्तर सूना है। पुलिस की फाइल में बिट्टू का अपहरण पुराना हो गया, मगर पूरा परिवार इस दौरान पत्थर की मूरत सा हो गया है। यदि उनके दर्द को छू लो तो जैसे पिघलकर आंसू टपकने लगते हैं। 

दो महीने से घर के मेन गेट का ताला इसलिए नहीं लगा कि बिट्टू आ रहा होगा। पिता का दर्द तो इतना है कि कोई आहट हो तो वह आधी रात को बदहवास से गली में दौड़ते हैं कि शायद बिट्टू आ गया।

पांच जनवरी को कमलानगर से व्यापारी संजय अग्रवाल के 14 वर्षीय बेटे अभिषेक उर्फ बिट्टू का अपहरण हो गया। न फिरौती का कोई फोन आया और ना ही बिट्टू लौट कर आया। पुलिस के लिए केस पुराना हो गया होगा, पूरा परिवार नाउम्मीदी के तमाम अंधेरे के बीच ये उम्मीदों का दीया जलाए बैठा है। मां रजनी हर आने-जाने वाले के हाथ जोड़कर फफक पड़ती हैं। गुहार सिर्फ यही कि हमारा सब कुछ ले लो, मेरा बिट्टू मुझे दे दो। इस संवाददाता से बात करते हुए अचानक अंदर के कमरे की ओर दौड़ लगाती हैं। एक अलमारी खोल कर चार-पांच जींस और शर्ट निकाल सीने से ऐसे लगा लेती हैं, जैसे किसी बच्चे को लगा लिया हो। रोते-रोते बताती हैं कि जाने से तीन दिन पहले ही बिट्टू ये कपड़े लाया था। कह रहा था कि अब मैं बड़ा हो गया हूं, खुद कपड़े खरीदूंगा। 

कपड़े तो ले आया, लेकिन पैकिंग नहीं खोल पाया।

रोते-रोते वह जमीन पर बैठ जाती हैं। मगर, हाय ये परिवार का हाल। उनके आंसू कौन पोंछे, दिलासा कौन दे? पिता संजय तो खुद दिन भर फूट-फूट कर रोते हैं। बिलखते हुए बताते हैं कि 27 को बिट्टू का जन्मदिन है। हर साल धूमधाम से मनाते थे। सोचा था कि इस बार अखंड रामायण पाठ कराऊंगा। उससे वादा किया था कि नया मोबाइल दिलाऊंगा। नया मोबाइल तो ले आया हूं, आएगा तो मोबाइल देखकर खुश हो जाएगा। रो-रोकर संजय बेसुध से हो चुके हैं तब तक रजनी कुछ बोलने की स्थिति में आ जाती हैं। बताती हैं कि जिस दिन से बिट्टू गया है, तब से बाहर वाला दरवाजा बंद नहीं किया। सुबह से रात तक उसी तरफ देखते रहते हैं कि वो रहा होगा। ये (संजय) तो रात कोई आहट भी सुन लें तो दौड़ कर गली के नुक्कड़ तक जाते हैं, फिर पार्क का कोना-कोना देखते हैं। लगता है कि शायद कोई बिट्टू को छोड़ गया हो। 

घर में अब नहीं बनते छोले चावल

बिट्टू की बातें बताते-बताते मां रजनी दहाड़ें मार कर रोने लगती हैं। कहती हैं कि मेरे बिट्टू को छोले-चावल बहुत पसंद हैं। वो गया है, तब से नहीं बनाए। वो आ जाएगा, तब उसके लिए फिर छोले-चावल बनाऊंगी। 

आ जाओ बिट्टू बिस्तर सूना है 
बिलखते हुए पिता संजय बताते हैं कि जब से बिट्टू गया उसका कमरा खाली है। उस दिन के बाद इस कमरे में कोई नहीं गया। उसके बिस्तर पर कोई नहीं सोया। सब यही कह रहे हैं कि आ जाओ बिट्टू तुम्हारा बिस्तर सूना है।
मर भी नहीं सकते कि शायद बिट्टू लौट आए

संजय के भाई पंकज अग्रवाल ने बताया कि हताश होकर भैया-भाभी कहने लगे थे कि बिट्टू के बिना जी नहीं सकते। हम आत्महत्या कर लेंगे। एसएसपी को लिखे पत्र में भी इसका जिक्र किया। तब बेटियों अनु और खुशबू ने धैर्य दिया कि फिर बिट्टू लौट आया, तो किसके साथ रहेगा। 

होटल में आराम करती थी पुलिस 
संजय और रजनी को अब पुलिस पर कतई भरोसा नहीं। वह बताते हैं कि बिट्टू को ढूंढने के नाम पर कई शहरों में पुलिस हमारे साथ गई। हमारा पूरा परिवार अनजान शहर में सड़कों पर बेटे को ढूंढता था और पुलिस होटल में आराम करती रहती थी। वह इस तरह से भटके हैं कि ढाई महीने में कार 11 हजार किलोमीटर चल चुकी है। 
हम बड़े नहीं इसलिए नहीं आया कोई अफसर 
बिट्टू के अपहरण के बाद बाजार बंद हुए। परिवार वालों के साथ-साथ पड़ोसियों की आंखें भी नम हुईं। मगर पुलिस के बड़े अफसर ढांढ़स बंधाने तक नहीं पहुंचे। संजय कहते हैं कि शायद हम बड़े नहीं है, इसलिए बड़े अफसर नहीं आए। यदि वे आते तो छोटे अफसरों पर दबाव बढ़ता कि बच्चे को खोजना है।

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