आ जाओ बिट्टू की घर सुना है।
पांच जनवरी को कमलानगर से व्यापारी संजय अग्रवाल के 14 वर्षीय बेटे अभिषेक उर्फ बिट्टू का अपहरण हो गया। न फिरौती का कोई फोन आया और ना ही बिट्टू लौट कर आया। पुलिस के लिए केस पुराना हो गया होगा, पूरा परिवार नाउम्मीदी के तमाम अंधेरे के बीच ये उम्मीदों का दीया जलाए बैठा है। मां रजनी हर आने-जाने वाले के हाथ जोड़कर फफक पड़ती हैं। गुहार सिर्फ यही कि हमारा सब कुछ ले लो, मेरा बिट्टू मुझे दे दो। इस संवाददाता से बात करते हुए अचानक अंदर के कमरे की ओर दौड़ लगाती हैं। एक अलमारी खोल कर चार-पांच जींस और शर्ट निकाल सीने से ऐसे लगा लेती हैं, जैसे किसी बच्चे को लगा लिया हो। रोते-रोते बताती हैं कि जाने से तीन दिन पहले ही बिट्टू ये कपड़े लाया था। कह रहा था कि अब मैं बड़ा हो गया हूं, खुद कपड़े खरीदूंगा।
रोते-रोते वह जमीन पर बैठ जाती हैं। मगर, हाय ये परिवार का हाल। उनके आंसू कौन पोंछे, दिलासा कौन दे? पिता संजय तो खुद दिन भर फूट-फूट कर रोते हैं। बिलखते हुए बताते हैं कि 27 को बिट्टू का जन्मदिन है। हर साल धूमधाम से मनाते थे। सोचा था कि इस बार अखंड रामायण पाठ कराऊंगा। उससे वादा किया था कि नया मोबाइल दिलाऊंगा। नया मोबाइल तो ले आया हूं, आएगा तो मोबाइल देखकर खुश हो जाएगा। रो-रोकर संजय बेसुध से हो चुके हैं तब तक रजनी कुछ बोलने की स्थिति में आ जाती हैं। बताती हैं कि जिस दिन से बिट्टू गया है, तब से बाहर वाला दरवाजा बंद नहीं किया। सुबह से रात तक उसी तरफ देखते रहते हैं कि वो रहा होगा। ये (संजय) तो रात कोई आहट भी सुन लें तो दौड़ कर गली के नुक्कड़ तक जाते हैं, फिर पार्क का कोना-कोना देखते हैं। लगता है कि शायद कोई बिट्टू को छोड़ गया हो।
बिट्टू की बातें बताते-बताते मां रजनी दहाड़ें मार कर रोने लगती हैं। कहती हैं कि मेरे बिट्टू को छोले-चावल बहुत पसंद हैं। वो गया है, तब से नहीं बनाए। वो आ जाएगा, तब उसके लिए फिर छोले-चावल बनाऊंगी।
संजय के भाई पंकज अग्रवाल ने बताया कि हताश होकर भैया-भाभी कहने लगे थे कि बिट्टू के बिना जी नहीं सकते। हम आत्महत्या कर लेंगे। एसएसपी को लिखे पत्र में भी इसका जिक्र किया। तब बेटियों अनु और खुशबू ने धैर्य दिया कि फिर बिट्टू लौट आया, तो किसके साथ रहेगा।