सपा और सुभासपा हुए एक, बोले ओमप्रकाश राजभर- भाजपा ने बिगाड़ रखा है माहौल, अबकी बार भाजपा साफ
ए0 जावेद संग शाहीन बनारसी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में आगामी होने वाले चुनाव के मद्देनज़र सियासी सरगर्मियां तेज़ हो गयी है। भले ही मौसम सर्द हो रहा हो मगर सियासत गर्म हो रही है। इस दरमियान आज ओमप्रकाश राजभर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 27 अक्टूबर को मऊ के हलधरपुर में होने वाली सभा में सपा के साथ गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य जनता की भलाई है। प्रदेश में महंगाई बढती जा रही है। शान्ति, अमन, चैन सब बिगड़ रहा है। जो पत्रकार सच दिखा रहे है, उनके ऊपर मुक़दमे लगाये जा रहे है। हिन्दू-मुसलमान की नफरत फैलाया जा रहा है। इन्ही मुद्दों को लेकर हमारा गठबंधन चुनाव लडेगा।
गौरतलब हो कि सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच बुधवार को हुई मुलाकात के बाद दोनों ही पार्टियों की तरफ से इस बात के संकेत दे दिये गए थे। माना जा रहा है कि सीटों पर बातचीत फाइनल होते ही गठबंधन की औपचारिक घोषणा भी कर दी जाएगी।
दोनों पार्टियों के मिलकर लड़ने का एक बड़ा असर पूर्वांचल की सीटों पर देखने को मिल सकता है। यहां दो दर्जन से ज्यादा सीटों का समीकरण बदल सकता है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा लगभग दो दशक से चुनावी मैदान में उतर रही है। हमेशा ही राजभर ने छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इसके कारण कभी किसी सीट पर जीत नहीं मिली थी। पिछले चुनाव में ओमप्रकाश ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और पूर्वांचल की आठ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से चार सीटों पर सुभासपा ने जीत भी हासिल की थी। अन्य चार सीटों पर भी कड़ा मुकाबला किया था।
यूपी के पिछड़े खासकर राजभर समाज में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले ओमप्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी का गठन 27 अक्टूबर 2002 को किया था। 15 साल बाद पहली बार पार्टी ने 2017 के चुनाव में कोई सीट जीती थी। ओमप्रकाश राजभर की मानें तो 100 सीटों पर राजभर समाज के वोट हार जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। इनमें वाराणसी की पांच, आजमगढ़ की 10, जौनपुर की 9, बलिया की 7, देवरिया की 7 और मऊ की चार सीटों पर राजभर वोटरों की अच्छी तादाद है। राजभर की मानें तो यूपी की 66 सीटों पर 40 से 80 हजार और 56 सीटों पर 25 से 39 हजार तक राजभर वोट हैं।
ओमप्रकाश राजभर ने 1981 में कांशीराम के साथ राजनीति शुरू की थी। 2001 में बहुजन समाज पार्टी में मायावती से विवाद हो गया था। जिसके बाद ओमप्रकाश ने अपनी पार्टी बना ली थी। 2004 से चुनाव लड़ रही भासपा यूपी और बिहार के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े करती रही।
कभी एकता मंच तो कभी मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने वाले ओमप्रकाश राजभर की गिनती जीतने से ज्यादा खेल बिगाड़ने वालो में होती रही है। 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन ने इन्हें जीत का स्वाद तो चखाया और ये योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। मगर मुख्यमंत्री की नीतियों को लेकर अक्सर सवाल उठाने वाले ओमप्रकाश राजभर कभी भी सत्ता के करीबी न हो सके और उन्हें अपने मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा तथा सरकार ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया।