क्या बहरैन सऊदी अरब के जाल से निकल सकता है?

समीर मिश्रा
बहरैनी अधिकारियों ने एक बार फिर ईरान पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का निराधार आरोप लगाया है। यहां यह कहा जा सकता है कि बहरैन के आले ख़लीफ़ा शासन के पास ऐसे वह कौन से दस्तावेज़ हैं कि जिनके आधार पर वह यह आरोप लगाता है, लेकिन इन दस्तावेज़ों को सामने नहीं लाता। इस संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि बहरैनी जनता पर हो रहे अत्याचारों से विश्व वासियों का ध्यान हटाने और अपनी जनता के दमन को सही ठहराने के लिए मनामा सरकार इस तरह का झूठा प्रोपैगंडा कर रही है।
बहरैनी सरकार ऐसा करके देश की ख़राब आतंकरिक स्थिति पर पर्दा डालना चाहती है, वास्तव में आले ख़लीफ़ा शासन सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए मनगढ़त आरोपों का सहारा ले रही है। इस संदर्भ में ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बहराम क़ासेमी का कहना है कि झूठे आरोपों के तहत बहरैनी शासन, अपने ही नागरिकों को गिरफ़्तार करके उनका संबंध ईरान से जोड़ देता है। जबकि बहरैनी अधिकारियों को चाहिए कि मौजूदा संकट से उबरने के लिए विरोधी नेताओं से बातचीत करें। हालांकि यह सरकार बंद गली से निकलने के लिए दूसरों पर आरोप गढ़ रही है।
आले ख़लीफ़ा शासन की नीतियों पर नज़र डालने से पता चलता है कि समस्या की जड़ कुछ और ही है। वास्तविकता यह है कि मनामा ख़ुद अपने ही जाल में फंस गया है। बहरैन ने देश में जारी जनांदोलन को दबाने के लिए पड़ोसी देश सऊदी अरब का सहारा लिया था, लेकिन सऊदी अरब का अत्याधिक हस्तक्षेप अब मनामा सरकार का सिर दर्द बन चुका है। फ़ार्स खाड़ी का एक दूसरा देश क़तर भी सऊदी अरब की हां में हां मिलाने का नतीजा भुगत रहा है, लेकिन बहरैन के आले ख़लीफ़ा शासन के बारे में यह कहा जा सकता है कि उसके पास इतनी हिम्मत भी नहीं है कि वह इस जाल से छुटाकारे के लिए हाथ पैर मार सके।

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