बेलगाम है बस्ती स्वास्थ्य विभाग
गिरफ्त में स्वास्थय विभाग,
बना दलालो का अड्डा
समय से नहीं पहुंचते चिकित्सक और बाहर से लिखी जाती हैं जांच व दवाईयां
भर्ती मरीजों से जमकर की जाती है वसूली, पैसा न देने पर शोषण
बस्ती। सिम्मी भाटिया। जिला अस्तपताल मरीजों का उत्पीड़न व जेबतराशी का गढ़ बन गया है. सरकार की तरफ से उपयुक्त इलाज के लिये चिकित्सक व अन्य स्टाफ के अलावा दवा की माकूल व्यवस्था है, किन्तु बिना पैसे के किसी को दवा नहीं मिल पा रही है. चिकित्सक मरीजों को दवा व जांच के लिये बाहर भेज रहे है, जो मरीज भर्ती है उनसे भी जमकर वसूली हो रही है. वही दूसरी ओर पिछले 20 दिनों से बंद पड़े अल्ट्रा साउंड में आ रहे मरीजों को दलालो का सहारा लेना पड़ रहा है.
सरकारी अस्तपताल में रोजाना 9 सौ से 14 सौ के करीब मरीज इलाज कराने के लिये आते हैं. शासन स्तर से दवा व तमाम व्यवस्थाओं का इंतजाम है. पर नीचे स्तर पर भष्टाचार के चलते मरीजों को उपयुक्त इलाज नही मिल पा रहा है. साथ ही उनकि जेब तराशी हो रही है जिसकी भूमिका वहां सक्रिय दलाल निभा रहे हैं.
अस्तपताल में आने वाले अधिकत्तर मरीज गरीब हैं. जिनको दो जून की रोटी के लिये संर्घष करना पड़ता है. स्वास्थय सेंवाओं के नाम पर इनके लिये जिला अस्तपताल है. पर हैरत इस बात की है कि यहां भी गरीबों को नि:शुल्क उपचार नहीं मिल पा रहा है. जैसे तैसे पर्ची बनने के बाद उन्हें घंटों लाईनों में लगकर इंतजार करना पड़ता है. इतना ही नहीं जैसे तैसे नम्बर भी आ जाये तो चिकित्सक देख तो लेते हैं, पर बाहर से जांच व दवा लिख देते हैं. नतीजतन मरीजों को बाहर से ही दवा खरीदने के लिये विवश होना पड़ता है. इलाज करने वाले चिकित्सकों का कहना रहता हैं कि जिला अस्तपताल में घटिया दवाईयां है,
सरकारी अस्तपताल में रोजाना 9 सौ से 14 सौ के करीब मरीज इलाज कराने के लिये आते हैं. शासन स्तर से दवा व तमाम व्यवस्थाओं का इंतजाम है. पर नीचे स्तर पर भष्टाचार के चलते मरीजों को उपयुक्त इलाज नही मिल पा रहा है. साथ ही उनकि जेब तराशी हो रही है जिसकी भूमिका वहां सक्रिय दलाल निभा रहे हैं.
अस्तपताल में आने वाले अधिकत्तर मरीज गरीब हैं. जिनको दो जून की रोटी के लिये संर्घष करना पड़ता है. स्वास्थय सेंवाओं के नाम पर इनके लिये जिला अस्तपताल है. पर हैरत इस बात की है कि यहां भी गरीबों को नि:शुल्क उपचार नहीं मिल पा रहा है. जैसे तैसे पर्ची बनने के बाद उन्हें घंटों लाईनों में लगकर इंतजार करना पड़ता है. इतना ही नहीं जैसे तैसे नम्बर भी आ जाये तो चिकित्सक देख तो लेते हैं, पर बाहर से जांच व दवा लिख देते हैं. नतीजतन मरीजों को बाहर से ही दवा खरीदने के लिये विवश होना पड़ता है. इलाज करने वाले चिकित्सकों का कहना रहता हैं कि जिला अस्तपताल में घटिया दवाईयां है,
ऐसे में आराम मिलना संभंव नही है।नतीजतन मरीज भी बाहर से दवाई लेने को विवश हो जाते हैं. यह स्थिति तब है जबकि सरकार हर वर्ष मरीजों की दवाईयों के लिये करोड़ों रूपये खर्च करती है और दवाईयों का जिला महिला अस्तपताल में उपयुक्त स्टाक है.
महिला अस्तपताल में दलाली-रिश्वत
जिला महिला अस्तपताल में बिना दलाल-रिश्वत के कोई काम ही नहीं रो रहा है. आलम यह है कि वहां दलाल से बात किये बिना जच्चा का उपचार करना संभंव ही नहीं. जहां सुविधा शुल्क के नाम पर तीन से चार हजार रूपये तक मांगा जाता हैं. लड़का पैदा होने पर बधाई के नाम पर भी चिकित्सीय स्टाफ हजारों रूपये मांगता है. अस्तपताल के अल्ट्रा सांउड कक्ष में पिछले 20 दिनों ताला लगा हैं. जो दलालों से सुविधा शुल्क पर सहमती बन जाने के बाद लगा ताला खुल जा सिमसिम की तरह मरीजों के लिये खुल जाता हैं. महिला अस्तपताल में वैसे भी नवजात गुम हो जाने के मामले, रिश्वतकांड व अविवाहितों के ईबोशन के मामले में सुर्खियों में रहे है।
नर्सें मनमानी कर कर रही उत्पीड़न
जिला महिला अस्तपताल में नर्सें भी मरीजों का जमकर उत्पीड़न कर रही हैं, वही मरीजों के तीमारदारों पर रौब-गालिब कर अपनी मनमानी करती है. जो मरीज जिला महिला अस्तपताल में भर्ती हो जाते हैं, तो उनके इलाज के नाम पर नर्सों द्वारा धन की मांग की जाती है, न देने पर जबरदस्त वसूली की जाती है. इतना ही नहीं कई बार तो मरीजों को गलत इंजैक्शन तक लगवा दिये जाते हैं. यह स्थिति तब है जबकि समय-समय पर जिलाधिकारी समेत अन्य अधिकारी जिला अस्तपताल का औचक निरिक्षण कर स्थिति का जायजा लेते रहते हैं. इतना ही नहीं जिला अस्तपताल में आपरेशन की चिकित्सकों ने अपने स्तर से फीस रखी हुई है. जिसे देने के बाद ही वे मरीजों का उपचार करते हैं. इस स्थिति को रोकने के लिये सीएमएस भी गंभीर नहीं.
लेखिका साभार-सिम्मी भाटिया (लेखिका बस्ती यूपी की विख्यात पत्रकार है।)
लेखिका साभार-सिम्मी भाटिया (लेखिका बस्ती यूपी की विख्यात पत्रकार है।)