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मसूद को समाजसेवी और इसा को आतंकी मानने वाले चीन से क्या भारत डर गया—–सुरजीत त्रिपाठी की कलम से कड़वा सच

चीन की दोहरी मानसिकता एक बार फिर से उजागर हुई है इसा के प्रकरण में। जहा चीन इसा को एक आतंकी मानता है वही मसूद अज़हर को एक समाज सेवी का तमगा दिए बैठे चीन की दोहरी मानसिकता जहा उजागर हुई है वही भारत के विदेश मंत्रालय के क्रियाकलापों से।ऐसा लगता है जैसे भारत डर रहा हो चीन से।


क्या है मामला-

25 अप्रैल को भारत ने चीन के निर्वासित मुस्लिम नेता डोल्कन ईसा का वीजा रद्द कर दिया है। ईसा चीन के शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों के नेता हैं। ईसा चीन में लोकतंत्र और मुसलमानों को धार्मिक अधिकार दिलवाने की मांग कर रहे हैं। ईसा का आरोप है कि चीन के निर्दयी शासक मुसलमानों का कत्लेआम करते हैं। यहां तक मुस्लिम धर्म के अनुरूप रहने भी नहीं दिया जाता। चीन सरकार की ज्यादतियों से तंग आकर खुद ईसा को चीन छोडऩा पड़ा है और अब वे जर्मनी में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

क्या करते है इसा-

चीन से बाहर रहने वाले उइगर मुसलमानों को एकत्रित कर ईसा दुनियाभर में चीन के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इसी सिलसिले में ईसा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित एक समारोह में भाग लेने के लिए भारत आ रहे थे। इसके लिए भारत सरकार ने वीजा भी जारी कर दिया था, लेकिन चीन ने भारत के वीजा देने का विरोध किया तो भारत ने 25 अप्रैल को ईसा का वीजा रद्द कर दिया। कहा जा रहा है कि चीन के दबाव में ही ईसा का वीजा रद्द किया गया। यानि भारत चीन से डर गया। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय का बचाव में कहना है कि ईसा के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने की जानकारी नहीं थी, इसलिए पहले वीजा जारी किया।

उठा विदेश मंत्रालय पर सवाल-

सवाल यह है कि रेडकॉर्नर नोटिस की जानकारी मिलते ही वीजा रद्द कर दिया गया। यदि ऐसा है और हमारे विदेश मंत्रालय का यह कथन सही है तो यह बेहद शर्मनाक बात है, क्योंकि कहा जाता है कि चीन ने इंटरपोल पर दबाव डाल कर 1997 में ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवा दिया था। अब प्रश्न या है कि क्या हमारे विदेश मंत्रालय को 19 वर्ष में भी रेड कॉर्नर नोटिस की जानकारी नहीं हुई? जबकि ईसा तो अपनी वल्र्ड उइगर कॉन्फ्रेंस के जरिए पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।

असल मुद्दा-

असल में चीन के दबाव के बाद हमारा विदेश मंत्रालय अब फेस सेविंग कर रहा है। यह बात जाहिर हो गई है कि भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। जहां तक डोल्कन ईसा और रेड कॉर्नर नोटिस का सवाल है तो इस नोटिस के बाद भी ईसा यूएस, जापान जैसे लोकतांत्रिक देशों की यात्रा कर आए हैं और जर्मनी में रह कर उइगर मुसलमानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

चीन का दोहरा चरित्र:

डोल्कन ईसा का भारत का वीजा रद्द करवाकर चीन ने अपना दोहरा चरित्र उजागर किया है। हाल ही में जब भारत ने पाकिस्तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर को प्रतिबंधित सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखा तो चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर भारत का प्रस्ताव रद्द करवा दिया। चीन डोल्कन ईसा को तो आतंकी मानता है लेकिन भारत में खुलेआम आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले मसूद अजहर को आतंकी नहीं समाजसेवी मानता है। यानि चीन मुसलमानों में भी फर्क करता है। चीन एक तरफ तो अपने शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों का कत्लेआम करता है तो दूसरी ओर मसूद अजहर जैसे भारत विरोधी आतंकवादी जिसको भारत के मुसलमान  भी आतंकवादी मानते है कि मदद करता है। भारत के नागरिकों खास कर मुसलमानों को चीन के इस दोहरे चरित्र को समझना चाहिए। असल में चीन न तो पाकिस्तान और न भारत का हितैषी है। चीन को सिर्फ अपना स्वार्थ दिखता है। अच्छा हो मसूद अजहर जैसे पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम दिलवाने के बजाए, डोल्कन ईसा के साथ मिल कर चीन में रहने वाले उइगर मुसलमानों की मदद करें। अगर मसूद अज़हर खुद को मुसलमानो का हितैषी मानता है तो फिर भारत के सुकून से रह रहे मुसलमानो की चिंता छोड़ चीन के मुसलमानो की लड़ाई क्यों नहीं लड़ता है, क्यों नहीं बर्मा के मुसलमानो के साथ खड़ा होता है। भारत में तो मुसलमान सुकून और अपने धर्म के अनुरूप रह ही रहे है। फिर अज़हर को भारत के मुसलमानो में ही दिलचस्पी इतनी क्यों है। क्यों नहीं वह असल मुद्दे पर आकर जापान में मुसलमान की मदद करता है।
असल में जो मसूद को समाजसेवी समझते है उनको समझना चाहिए कि वह एक टुच्चा आतंकवादी है कोई समाजसेवक नहीं है। ऐसे आतंकवादी का साथ देने वाले भी आतंकवादी मानसिकता के ही लोग होते है।


पीएम मोदी की स्थिति पर भी असर:

पीएम नरेन्द्र मोदी बार-बार दावा करते हैं कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा कायम किया है। यदि भारत का रुतबा वाकई बढ़ा होता हो डोल्कन ईसा का वीजा रद्द नहीं होता। जब चीन मसूद अजहर को समाजसेवी बता सकता है, तो हम डोल्कन ईसा को मानवाधिकारों का रक्षक क्यों नहीं मानते? चुनाव पूर्व चीन को नाक रगड़वाने की बात करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने तो उस समय अपने 56 इंच के सीने का हवाला दिया था मगर अब इस तरह चीन के दबाव में झुक जाना ही क्या भारत की छवि को अंतराष्ट्रीय पटल पर धूमिल नहीं कर रहा है।
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