आम धारणा है कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में रखे शिवलिंग पर श्मशान की राख से आरती होती है। इस आरती को देखने के लिए भारत से ही नहीं दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। लेकिन उज्जैन में इन दिनों चल रहे कुंभ मेले के मौके पर आरती में काम आने वाली राख को लेकर विवाद हो गया है। कुंभ मेले में आए तांत्रिक कापालिक बाबा ने कहा कि महाकालेश्वर में श्मशान की राख के बजाए गोबर की राख से आरती हो रही है। यह सरासर श्रद्धालुओं की भावनाओं के विपरित है। तांत्रिक बाबा का कहना है कि महाकाल के मंदिर में श्मशान की राख से ही आरती होनी चाहिए। वे स्वयं अपने समर्थकों के साथ श्मशान की राख लेकर जाएंगे और महाकाल की आरती करेंगे। उन्होंने कहा कि श्मशान की राख के बिना महाकाल की आरती का कोई मतलब नहीं है। वहीं महानिर्वाणी के अखाड़े के महंत प्रकाशपुरी महाराज ने कहा कि महाकाल के मंदिर में बरसों से गाय के गोबर से बने उपले से तैयार की गई भस्म से ही भस्म आरती होती है। उन्होंने कहा कि तांत्रिक कापालिक बाबा बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं।
राख पर विवाद क्यों:
हालांकि यह पूरी तरह आस्था और श्रद्धा का मामला है, लेकिन यह बात तो सही है कि अब राख पर विवाद हो रहा है, जो राख किसी काम की नहीं होती वह भी अचानक विवाद का विषय हो गई है। हम सब ने देखा है कि श्मशान में शव को जलाने के बाद राख इधर-उधर उड़ती रहती है। शव के जलने के बाद उस राख का कोई महत्त्व नहीं होता। वैसे भी राख मानव शरीर की नहीं बल्कि शव को जलाने वाली लकडिय़ों की होती है। हो सकता है कि कुछ लोक तांत्रिक क्रियाओं में श्मशान की राख का इस्तेमाल करते हों, लेकिन जब राख हो ही गई तो उसका क्या महत्त्व होगा। यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण सवाल है? अच्छा हो कि राख पर विवाद करने की बजाए जिंदा मनुष्य पर विवाद हो। मनुष्य का जीवन किस प्रकार कष्ट मुक्त हो इस पर विचार होना चाहिए। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में श्मशान अथवा गोबर की राख से आरती होती है, यह विवाद का मुद्दा नहीं होना चाहिए। अच्छा हो भगवान शिव आम मनुष्य का जीवन सरल और सुखमय बनाएं। देवताओं में भगवान शिव को तो भोले भंडारी कहा गया है।